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ये है देश का VVIP पेड़, एक भी पत्ता टूट जाए तो मच जाता है कोहराम, सुरक्षा पर पानी की तरह बहता है पैसा

BY: Yogita Tyagi • LAST UPDATED : January 23, 2025, 5:21 pm IST
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ये है देश का VVIP पेड़, एक भी पत्ता टूट जाए तो मच जाता है कोहराम, सुरक्षा पर पानी की तरह बहता है पैसा

First VVIP Bodhi Tree Of India

India News(इंडिया न्यूज), First VVIP Bodhi Tree Of India: भारत में एक पेड़ ऐसा भी है जिसे वीवीआईपी (VVIP) ट्रीटमेंट दिया जाता है और उसकी सुरक्षा में चार गार्ड हर वक्त तैनात रहते हैं। ये पेड़ न केवल धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसकी देखभाल पर लाखों रुपये खर्च होते हैं। मध्य प्रदेश के सलामतपुर की पहाड़ियों पर स्थित यह पेड़, बोधि वृक्ष के अद्वितीय रूप का एक प्रतीक है। इसे श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने 2012 में भारत दौरे के दौरान लगाया था। बोधि वृक्ष वह पेड़ है, जिसके नीचे गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।

बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए एक पवित्र वृक्ष

यह VVIP बोधि वृक्ष बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए एक पवित्र स्थान है और इसके महत्व को समझते हुए इस पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इसकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए चार सुरक्षा गार्ड तैनात किए जाते हैं, जिनमें से प्रत्येक को हर महीने 26,000 रुपये वेतन दिया जाता है। इस तरह से पेड़ की सुरक्षा के लिए हर महीने कुल 1,04,000 रुपये खर्च होते हैं।

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देखभाल में आता है लाखों का खर्चा

इसके अलावा, इस पेड़ की देखभाल पर सालाना लगभग 12 से 15 लाख रुपये खर्च होते हैं। पर्यावरण और पेड़ की सेहत का ध्यान रखते हुए टैंकर से सिंचाई की जाती है। इसे जल संकट से बचाने के लिए सांची नगर पालिका विशेष रूप से पानी के टैंकर की व्यवस्था करती है। इसके अलावा, कृषि विभाग के अधिकारी हर सप्ताह इस पेड़ का निरीक्षण करने के लिए आते हैं ताकि किसी प्रकार की बीमारी से बचाव हो सके। इस पेड़ की देखभाल जिले के कलेक्टर की निगरानी में होती है और अगर इसके एक भी पत्ते में सूखने का लक्षण पाया जाता है, तो तुरंत उसकी देखभाल की जाती है। इसके आसपास सुरक्षा के लिए 15 फीट ऊंची लोहे की जाली लगाई गई है, ताकि किसी भी प्रकार का नुकसान न हो।

इसी पेड़ के नीचे हुआ गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त

इतिहास के अनुसार, बोधि वृक्ष वह पेड़ है, जिसके नीचे गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। बौद्ध धर्मगुरु चंद्ररतन के अनुसार, इस वृक्ष को तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक की पुत्री संघमित्रा द्वारा भारत से श्रीलंका ले जाया गया और वहां अनुराधापुरम में इसे लगाया गया। बाद में इस वृक्ष का एक हिस्सा सांची बौद्ध विश्वविद्यालय में लगाया गया। यह पेड़ न केवल भारत में, बल्कि विदेशों से आने वाले पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। लोग इसके धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व को समझने के लिए दूर-दूर से यहां आते हैं। यह पेड़ पर्यावरण और इतिहास के प्रति हमारी जागरूकता को भी बढ़ावा देता है।

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Gautam Buddha

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