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India News (इंडिया न्यूज), Mahakumbh 2025 Naga Sadhu: महाकुंभ 2025 प्रयागराज में धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। महाकुंभ 13 जनवरी से शुरू हुआ था जो 25 फरवरी तक चलेगा। इस समय, पूरे देश और विदेश से श्रद्धालु पुण्य स्नान के लिए यहां आ रहे हैं। महाकुंभ में आए नागा साधुओं ने सभी लोगों का ध्यान आकर्षित किया है, नागा साधु अपने तप और अनोखी जीवनशैली के कारण लोगों का ध्यान आकर्षित करते हैं। इन साधुओं का जीवन अन्य साधु-संतों से बहुत अलग होता है। उनके पहनावे के साथ-साथ इनका भोजन भी अन्य साधुओं से बिल्कुल अलग होता है।
नागा साधु वे योगी होते हैं, जो भगवान शिव के परम भक्त होते हैं और उनके मार्ग पर चलने का सच्चा संकल्प लेते हैं। ये साधु हमेशा नग्न रहते हैं और अपने शरीर पर भस्म या धुनी लपेटते हैं। इनका विश्वास है कि व्यक्ति नग्न जन्मता है और यही प्राकृतिक अवस्था है। इसी कारण ये साधु किसी भी मौसम में अपने शरीर पर कोई वस्त्र नहीं पहनते। ठंड, गर्मी, या वर्षा, हर मौसम में ये साधु निर्वस्त्र ही रहते हैं।
नागा साधुओं का जीवन पूरी तरह से तप और साधना में डूबा होता है। वे सांसारिक सुखों को त्याग कर भगवान शिव की भक्ति में पूरी तरह से रम जाते हैं। नागा साधु बनने की प्रक्रिया बहुत ही कठिन होती है और इसमें 12 साल का समय लगता है। जब कोई व्यक्ति नागा साधु बनने का संकल्प करता है, तो उसे पहले 12 साल की कठिन तपस्या करनी होती है। महाकुंभ जैसे आयोजनों में वो अपने तप के अंतिम चरण में होते हैं, जहां वे लंगोट का त्याग करके पूरी तरह से निर्वस्त्र हो जाते हैं।
इन साधुओं का भोजन भी बहुत खास होता है। नागा साधु दिन में केवल एक बार भोजन करते हैं, और वह भी भिक्षा मांगकर। हालांकि, उन्हें भिक्षा मांगने के लिए कुछ विशेष नियमों का पालन करना पड़ता है। वे केवल सात घरों से भिक्षा मांग सकते हैं। यदि इन सात घरों से भोजन नहीं मिलता, तो वे भूखे ही रहते हैं।
ठंड के मौसम में नग्न रहकर ठंड से बचने के लिए नागा साधु कुछ खास योगाभ्यास करते हैं। इन साधुओं का मानना है कि अगर शरीर और मन पर कंट्रोल रखा जाए तो कोई भी मौसम प्रभावी नहीं होता है। ये साधु नाड़ी शोधन, अग्नि साधना और कठोर तपस्या करते हैं, जो उनके शरीर को ठंड से बचाए रखते हैं। साथ ही, इनका आहार भी सात्विक होता है, जिससे शरीर को शक्ति मिलती है और वे बाहरी परिस्थितियों से unaffected रहते हैं।
नागा साधु का जीवन भिक्षाटन और योग के माध्यम से सिद्धि प्राप्ति का होता है। ये अपने जीवन का कोई स्थिर स्थान नहीं रखते और हमेशा कहीं न कहीं अपने तप के साथ निवास करते हैं। इन्हें ना तो सोने के लिए बिस्तर की आवश्यकता होती है, न ही ओढ़ने के लिए चादर की इन्हें कोई जरुरत होती है। ये साधु जमीन पर सोते हैं और केवल साधना में ही लगे रहते हैं।
नागा साधु भगवान शिव के 17 श्रृंगार में विश्वास रखते हैं, जिनमें प्रमुख रूप से भभूत, चंदन, रुद्राक्ष की माला, डमरू, चिमटा, और पैरों में कड़े शामिल हैं। इन श्रृंगारों का महत्व शिवभक्ति और तपस्या में होता है और ये उनके साधना के प्रतीक माने जाते हैं। नागा साधु केवल धार्मिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी मजबूत होते हैं, जो संसारिक बंधनों से मुक्त होकर भगवान शिव के ध्यान में समर्पित रहते हैं।
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