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ताकत बढ़ाने के लिए क्या खाते थे राजा महाराजा और नवाब? व्यंजनों का नाम सुनकर चकरा जाएगा दिमाग

BY: Sohail Rahman • LAST UPDATED : October 5, 2024, 9:17 pm IST
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ताकत बढ़ाने के लिए क्या खाते थे राजा महाराजा और नवाब? व्यंजनों का नाम सुनकर चकरा जाएगा दिमाग

Special Dish Of King ( ताकत बढाने के लिए राजा महाराजा और नवाब क्या खाते थे?)

India News (इंडिया न्यूज), Special Dish Of King: आजादी से पहले भारत में 550 से ज्यादा देसी रियासतें हुआ करती थीं। सबके अपने-अपने राजा, महाराजा, नवाब और निजाम थे। इन राजा महाराजाओं के खानपान और शौक भी निराले थे। उनके पास पैसों की कोई कमी थी तो वो जो चाहते थे वो कर देते थे। हम आपको जानकारी के लिए बता दें कि, पटियाला के महाराजा भूपेंद्र सिंह इन सब राजा महाराजाओं में से सबसे ज्यादा मशहूर थे। अगर उनकी लंबाई की बात करें तो वे 6 फीट लंबे थे और उनका वजन करीब 136 किलो था। इन महाराज के हरम में 350 महिलाएं थीं। इतिहासकार डोमिनिक लापियर और लैरी कॉलिन्स लिखते हैं कि, सर भूपेंद्र सिंह कामोत्तेजक दवाओं पर निर्भर हो गए थे।

अपनी ताकत बढ़ाने के लिए क्या-क्या खाते थे महाराजा?

जानकारी के अनुसार अपनी ताकत बढ़ाने के लिए पटियाला के महाराजा मोतियों, सोने, चांदी और तरह-तरह की जड़ी-बूटियों का सेवन करते थे। उनके लिए एक खास औषधि बनाई जाती थी, जो गौरैया के भेजे यानी दिमाग से तैयार की जाती थी। बताया जाता है कि, गौरैया के भेजे को निकालकर उसमें बारीक गाजर मिलाकर खास दवा बनाई जाती थी, जो ताकत बढ़ाने वाली मानी जाती थी। इसके अलावा महाराजा नियमित सोने का भस्म भी लिया करते थे। 

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अवध के नवाब किस चीज का सेवन करते थे?

इतिहासकारों की मानें तो अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह ने भी अपनी सेहत का ध्यान रखने के लिए खास हकीम रखते थे, जो उनके लिए हर रोज नए नुस्खे बनाया करते थे। अगर उनके पसंदीदा नुस्खे की बात करें तो नवाब का पसंदीदा स्वर्ण भस्म था, जिसका सेवन वो दूध के साथ करते थे। नवाब वाजिद अली शाह को मुतंजन भी खासा पसंद था। केसरी रंग के चावल को काजू, किशमिश, बादाम और दूसरे मेवों में पकाया जाता था। फिर उसपर खोया और चांदी का वर्क लगाकर नवाब वाजिद अली शाह को परोसा जाता था। 

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क्या है मुतंजन?

अगर हम मुतंजन की बात करें तो वो मुख्य रूप से मिडिल ईस्ट से आया व्यंजन माना जाता है। कई फूड एक्सपर्ट दावा करते हैं कि मुगलों के खानसामों ने भारत में मुतंजन को बनाना शुरू किया और फिर धीरे-धीरे लोकप्रिय हो गया था। लेखक मिर्जा जाफर हुसैन अपनी किताब ‘कदीम लखनऊ की आखिरी बहार’ में मुतंजन के बारे में काफी विस्तार पूर्वक लिखते हैं और इस किताब में बताया गया है कि, ये व्यंजन मुगलों से लेकर नवाब तक के लिए खास था और इसे बहुत पसंद किया जाता है। 

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