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निकाह के बाद मुस्लिम दुल्हनों को मिलती है ऐसी खास चीज, शौहर का नहीं होता कोई हक, शादी टूट जाए तब भी नहीं बदलता नियम

BY: Raunak Pandey • LAST UPDATED : November 23, 2024, 8:46 am IST
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निकाह के बाद मुस्लिम दुल्हनों को मिलती है ऐसी खास चीज, शौहर का नहीं होता कोई हक, शादी टूट जाए तब भी नहीं बदलता नियम

Muslim Marriage: निकाह के बाद मुस्लिम दुल्हनों को मिलती है ऐसी खास चीज

India News (इंडिया न्यूज), Muslim Marriage: देश में शादियों का बहुत खास माहौल होता है। जिसमें कई रश्म और रिवाज होते हैं। ऐसा ही एक रिवाज मुस्लिम शादियों में देखने को मिलता है। जिसको मेहर कहा जाता है। दरअसल, यह एक ऐसी रकम होती है जो दूल्हा निकाह के समय दुल्हन को देता है। यह एक तरह का तोहफा है, लेकिन इसका धार्मिक और कानूनी महत्व भी है। अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या इस मेहर पर पति का कोई अधिकार होता है? आइए इस बारे में जानते हैं।

मेहर क्या है?

बता दें कि, मुस्लिम शादियों में मेहर एक अहम हिस्सा होता है। यह एक ऐसी रकम होती है जो दूल्हा निकाह के समय दुल्हन को देता है। मेहर नकद, सोना, चांदी या किसी अन्य संपत्ति के रूप में दिया जा सकता है। मेहर कितना होगा यह निकाह के समय तय होता है और यह दुल्हन का निजी अधिकार होता है। यह दुल्हन का कानूनी अधिकार होता है जो उसे आर्थिक सुरक्षा देता है। इसके अलावा मेहर शादी के बंधन का प्रतीक भी होता है। अगर निकाह टूट जाता है तो दूल्हा दुल्हन को मेहर की तय रकम देता है। वहीं दुल्हन को दी जाने वाली मेहर की रकम पर पति का कोई अधिकार नहीं होता। मेहर पूरी तरह से दुल्हन का अधिकार है। पति किसी भी परिस्थिति में इसे वापस नहीं मांग सकता। चाहे शादी टूट जाए या पति की मौत हो जाए, मेहर दुल्हन को ही दिया जाता है।

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मेहर को लेकर भारतीय कानून क्या है?

आपको बता दें कि मेहर दो अलग-अलग तरह का होता है। पहला मुअज्जल मेहर, यह वह मेहर है जो निकाह के समय या उसके तुरंत बाद दिया जाता है और मुअक्खर मेहर, यह वह मेहर है जो बाद में दिया जाता है, जैसे तलाक की स्थिति में या पति की मौत पर। वहीं मुस्लिम विवाह अधिनियम, 1954 के तहत भारत में मेहर को मान्यता दी गई है। इस अधिनियम के अनुसार, मेहर दुल्हन का व्यक्तिगत अधिकार है और पति का इस पर कोई अधिकार नहीं है। अगर एक बार मेहर की रकम तय हो गई है, तो उसे वापस नहीं लिया जा सकता। इसके अलावा अगर इस रकम को बढ़ाना या घटाना है, तो निकाह के समय दोनों पक्षों की सहमति से ऐसा किया जा सकता है।

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