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अजीत मैंदोला, नई दिल्ली :
Current Status of Congress Party : कांग्रेस की अंतरिम अध्य्क्ष सोनिया गांधी पार्टी को टूट से बचाने की कोशिश में जुट तो गई हैं, लेकिन लगता नही है कि संगठन में वह विशेष कुछ बड़ा बदलाव कर पाएंगी। हालांकि अंसन्तुष्ठ 23 ग्रुप के नेताओं से बारी बारी मिल उन्हें उनकी मांगों पर भरोसा और पार्टी को संकट के समय मजबूत करने का आग्रह कर रही है।
एक तरह से सोनिया गांधी की यही कोशिश है कि अभी जैसे तैसे आये संकट से पार्टी को किसी तरह से बाहर निकाला जाए। लेकिन सब कुछ बहुत आसान दिख नही रहा है। एक तो अभी किसी भी पदाधिकारी को हटाने का मतलब सीधे सीधे उनके बेटे पूर्व और भावी अध्य्क्ष राहुल गांधी के खिलाफ फैसला माना जायेगा।
सन्देश जाएगा सोनिया अंसन्तुष्ठ नेताओं के दबाव में आ गई। क्योंकि जिन तीन नेताओं को हटाने को लेकर दबाव माना जा रहा है वह राहुल के सबसे भरोसे के नेता माने जाते हैं। इनमे सबसे ऊपर हैं संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल,फिर महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला और अजय माकन हैं। आज के दिन में राहुल गांधी सबसे प्रमुख सलाहकार यही तीनों नेता माने जाते हैं। (Indian national congress Latest News)
राहुल इनमें से सबसे ज्यादा भरोसा वेणुगोपाल पर करते हैं। 12 तुगलक लेन में होने वाली महत्वपूर्ण राजनीतिक बैठकों में कई बार राहुल खुद शामिल न हो कर अपनी जगह वेणुगोपाल को सब फैसलों के लिये अधिकृत कर देते हैं। अंसन्तुष्ठ नेताओं की दूसरी अहम मांग संसदीय बोर्ड जैसे ताकतवर बोर्ड का गठन करना भी सोनिया गांधी के लिये आसान नही है।
क्योकि यह एक ऐसा बोर्ड होगा जो कार्यसमिति से भी ज्यादा ताकतवर होगा। अध्य्क्ष के फैसले भी सीमित हो जाएंगे। पीवी नरसिंह राव के समय यह बोर्ड होता था, जिसे सोनिया गांधी ने पार्टी की कमान सँभालते ही भंग कर दिया गया था। फिर सारे फैसले वह खुद करने लगी थी।2018 में राहुल गांधी के अध्य्क्ष रहते हुये बोर्ड के गठन की चर्चा फिर हुई थी। लेकिन कुछ हुआ नही। अंसन्तुष्ट नेताओं की कोशिश है बोर्ड का गठन फिर हो। (Congress Ruling States in india 2022)
राहुल गांधी जब ताकतवर रहते हुए बोर्ड का गठन नहीं कर पाये तो अब कमजोर हालात में फेसला आसान नहीं है। सोनिया गांधी के सामने अंसन्तुष्ट नेताओं को राजी करने के सीमित रास्ते हैं। इनमें एक दो को राज्यसभा में एडजस्ट किया जाये, कुछ को संगठन में जिम्मेदारी दी जाये। भूपेंद्र हुड्डा जैसे जनाधार वाले नेता को हरियाणा की जिम्मेदारी दे कर राजी किया जाए आदि। (Congress party Membership)
हालांकि कांग्रेस में आज भी ऐसे नेता हैं जिन्हें उम्मीद है कि पार्टी फिर से सत्ता में लौटेगी। उनका तर्क है बीजेपी का हिंदुत्व का एजेंडा बहुत दिनों तक नही चलने वाला है। मोदी ज्यादा से ज्यादा एक बार और 2024 में प्रधानमंत्री बन जाएंगे।उसके बाद जनता का हिंदुत्व से मोह भंग होने लगेगा और कांग्रेस की विचारधारा के तरफ लौटेंगे। मतलब 2029 तक कांग्रेस वापसी कर लेगी।
ये नेता आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल की बढ़ती ताकत को अभी भी कोई महत्व नही दे रहे हैं। इसी तरह यूपी के सीएम योगिआदित्य नाथ की बढ़ती लोकप्रियता भी इनके लिये कोई अर्थ नही रखती है। हो सकता है कांग्रेस के ये नेता सही हों। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि कमजोर होती पार्टी में कितने नेता संघर्ष करेंगे और कितने टिकेंगे। जिस तरह की चर्चाएं हो रही हैं वह कांग्रेस के लिये चिंता जनक है। लोकसभा में तो प्रतिपक्ष का नेता पद से पहले ही हाथ धो बैठे हैं। (Indian National Congress History)
राज्यसभा में सांसदों की संख्या भी धीरे धीरे उसी तरफ बढ़ रही है। 31 तक संख्या पहुंच गई है। 25 से नीचे जाते ही प्रतिपक्ष के नेता पद पर संकट आ जायेगा। राज्यसभा की संख्या बढ़ाने के लिये राज्य जीतने जरूरी हैं। उसमें कांग्रेस हारती जा रही है। ऐसे में पार्टी में अगर टूट हुई तो चुनाव चिन्ह तक संकट में आ सकता है। बीजेपी यूं भी जिस तरह से कांग्रेस मुक्त भारत के रास्ते पर निकली है तो कुछ भी संभव है। सोनिया गांधी अगर सब खतरों को भांप अहम फैसले करने की हिम्मत करती हैं तो तब बात अलग है। वर्ना बैठकों से कुछ निकलेगा नही। (Who Established indian National Congress)
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