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बिन पानी की मछली तरह तड़प उठती थी मुग़ल हरम की तवायफें, जो रात होते ही नहीं मिलती थी ये 3 चीजें, ऐसा भी क्या था वो राज?

BY: Prachi Jain • LAST UPDATED : January 9, 2025, 6:00 pm IST
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बिन पानी की मछली तरह तड़प उठती थी मुग़ल हरम की तवायफें, जो रात होते ही नहीं मिलती थी ये 3 चीजें, ऐसा भी क्या था वो राज?

Mughal Harem Mein Tavaayaphon ke Shauk: बिन पानी मछली तरह तड़प उठती थी मुग़ल हरम की तवायफें जो रात होते नहीं मिलती थी ये 3 चीजें

India News (इंडिया न्यूज), Mughal Harem Mein Tavaayaphon ke Shauk: भारत के ऐतिहासिक समाज में तवायफों का स्थान एक विवादास्पद और जटिल रहा है। जहां एक ओर तवायफों को कला और शाही सभ्यता की प्रतीक माना जाता था, वहीं दूसरी ओर उन्हें समाज में एक हाशिए पर रखा जाता था। खासकर ब्रिटिश शासन के दौर में, तवायफों की कोठियों का समाज में एक विशिष्ट स्थान था, जहां पर काव्य, संगीत, नृत्य और कला का संगम होता था। इसके साथ ही तवायफों की जिंदगी से जुड़ी कई जटिलताएँ भी थीं, जिनमें से एक नशे की लत का होना था।

तवायफों की नशे की लत

तवायफों के जीवन में नशे की लत एक महत्वपूर्ण पहलू थी, जो उनके शाही जीवन के हिस्से के रूप में शामिल हो गया था। इन महिलाओं की नशे की आदतें विशेष रूप से उनके उच्च समाज से जुड़ी हुई थीं। तवायफों के कोठे पर नशे के विभिन्न रूपों का प्रचलन था, जो उनके कद्रदानों और समाज के उच्च वर्ग द्वारा प्रोत्साहित किए जाते थे।

भांग और ठंडई

तवायफों के बीच भांग का सेवन एक आम आदत थी, जो न केवल उनके मनोरंजन का हिस्सा बन गया था, बल्कि यह उनकी जीवनशैली का भी एक अंग था। भांग की ठंडई, जो खासकर गर्मी के मौसम में बनाई जाती थी, एक प्रसिद्ध पेय बन चुका था। तवायफें इस ठंडई का सेवन करतीं, जिससे उन्हें एक ताजगी और मानसिक शांति का अनुभव होता था। इसके अलावा, भांग के लड्डू भी तवायफों के बीच लोकप्रिय थे, जो शारीरिक और मानसिक विश्राम के लिए सेवन किए जाते थे।

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पान-जर्दा

पान, जो भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा रहा है, तवायफों के कोठों पर एक महत्त्वपूर्ण परंपरा बन चुका था। पान के विभिन्न प्रकार, जिनमें पान-जर्दा, गुलाब-पान और मिंट-पान शामिल थे, तवायफों के दैनिक जीवन का हिस्सा होते थे। तवायफें अपने कद्रदानों को महंगे पान भेजने के लिए भी जानी जाती थीं। इसके अलावा, उनके कोठे पर पान के साथ-साथ मसालेदार चीजों का भी सेवन किया जाता था, जो उनके शाही जीवन का प्रतीक थे।

अंग्रेजी शौक वाइन, सिगार और सिगरेट

ब्रिटिश शासन के दौरान, तवायफों के जीवन में नशे की आदतों में भी एक नया मोड़ आया। अंग्रेजों का भारतीय संस्कृति पर प्रभाव बढ़ा, और इसके साथ ही तवायफों की नशे की आदतों में भी परिवर्तन आया। अंग्रेजी शराब, खासकर वाइन का सेवन, तवायफों के बीच बहुत आम हो गया। अंग्रेज अधिकारी और रईस तवायफों को यह तोहफे में देने लगे थे। लखनऊ, दिल्ली और पटना जैसे शहरों में तवायफों के कोठे पर अंग्रेजी वाइन और महंगी शराब एक शाही आदत बन गई थी।

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इसके अलावा, सिगार और सिगरेट का सेवन भी तवायफों के जीवन का हिस्सा बन गया। नवाबों और रईसों से लेकर अंग्रेज अधिकारियों तक, इन महंगे नशे के सामान को तवायफों को तोहफे के रूप में दिया जाता था। सिगार और सिगरेट का यह आदान-प्रदान, खासकर तवायफों और उनके कद्रदानों के बीच, एक शाही रस्म बन गया था। यह न केवल एक निजी शौक था, बल्कि तवायफों की उच्च सामाजिक स्थिति और समृद्धि का प्रतीक भी था।

तवायफों की शाही जिंदगी और उनके खर्चीले शौक

तवायफों का जीवन शाही था, और उनके नशे की लत भी उतनी ही महंगी और खर्चीली थी। नवाबों और रईसों से प्राप्त तोहफे, जैसे महंगे शराब, वाइन, सिगार, सिगरेट, भांग और पान, उनकी जीवनशैली का हिस्सा बन गए थे। तवायफों के कोठे पर आयोजित होने वाले संगीत, नृत्य और कवि-सम्मेलनों के दौरान, इन सभी वस्तुओं का सेवन होता था। उनके पास समृद्धि और विलासिता थी, लेकिन इसका एक स्याह पक्ष भी था – यह नशे की लत तवायफों के जीवन को प्रभावित करने लगी थी।

शाही जीवन के इन शौक और नशे की आदतों के बावजूद, तवायफों का जीवन अक्सर समाज से अलग-थलग और विवादास्पद होता था। हालांकि वे कला और संगीत की महान उस्ताद थीं, लेकिन समाज में उन्हें नीची निगाहों से देखा जाता था। उनके जीवन की विलासिता और शाही आदतें, समाज के उच्च वर्ग के लिए आकर्षण का केंद्र तो थीं, लेकिन इसके साथ ही उनका शोषण भी किया जाता था।

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आजादी के बाद: तवायफों की स्थिति में बदलाव

भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, तवायफों की स्थिति में बदलाव आना शुरू हुआ। उनके शाही जीवनशैली और रुतबे में कमी आने लगी, क्योंकि समाज में एक नई दिशा की आवश्यकता महसूस होने लगी थी। तवायफों के कोठे, जो पहले समृद्धि और कला का केंद्र थे, अब धीरे-धीरे अपनी अहमियत खोने लगे थे। इसके साथ ही नशे की आदतें भी कम होने लगीं, और तवायफों की जिंदगी की चमक भी धुंधली हो गई।

आजादी के बाद, तवायफों की दुनिया में उथल-पुथल आई। जहां पहले उनके कोठों पर शाही नशे के सामान का प्रचलन था, अब वह समाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से हाशिए पर चला गया। तवायफों की भूमिका और उनके रुतबे में गिरावट आई, और उनका नशे की लत का इतिहास भी धीरे-धीरे लुप्त होने लगा।

तवायफों का इतिहास न केवल कला और संस्कृति का हिस्सा है, बल्कि उनके जीवन की जटिलताओं और सामाजिक स्थिति का भी एक अद्वितीय उदाहरण है। उनकी नशे की लत, जो कभी शाही और खर्चीली हुआ करती थी, आज एक पुरानी याद बन गई है। इन महिलाओं का जीवन भले ही आज के समय में बदल चुका हो, लेकिन उनके योगदान और प्रभाव को भुलाया नहीं जा सकता।

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डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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