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कैसे महज 4 से 6 मिनट में इंसान का जीवन खत्म हो जाता है? जानिए दिल से दिमाग तक कैसे पूरा शरीर हार मान लेता है

BY: Prachi Jain • LAST UPDATED : August 29, 2024, 5:00 pm IST
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कैसे महज 4 से 6 मिनट में इंसान का जीवन खत्म हो जाता है? जानिए दिल से दिमाग तक कैसे पूरा शरीर हार मान लेता है

India News (इंडिया न्यूज), Death Mystery: जब एक इंसान का जन्म होता है, तो परिवार और रिश्तेदारों के बीच खुशी की लहर दौड़ जाती है। चाहे लड़का हो या लड़की, यह खुशी लगभग समान ही होती है। लेकिन एक ऐसी घड़ी भी आती है जब यह खुशी गम में बदल जाती है—जब इंसान की मृत्यु होती है। मृत्यु का सवाल सदियों से मानवता के मन में गूंजता रहा है। आखिर इंसान क्यों मरता है? यह प्रश्न विज्ञान के लिए भी एक बड़ा रहस्य रहा है। आइए जानते हैं, विज्ञान इस बारे में क्या कहता है।

उम्र और शारीरिक परिवर्तन

इंसान की उम्र के साथ शरीर में कई बदलाव आते हैं, जो मृत्यु के कारणों को समझने में मदद करते हैं। जब इंसान 30 वर्ष की उम्र तक पहुंचता है, तो उसके शरीर में धीरे-धीरे ठहराव आने लगता है। 35 की उम्र में यह महसूस होता है कि शरीर में कुछ गड़बड़ी हो रही है। 30 वर्ष की आयु के बाद, हर दशक में हड्डियों का द्रव्यमान लगभग एक प्रतिशत कम होने लगता है। यही नहीं, 30 से 80 साल की उम्र के बीच इंसान का शरीर 40 प्रतिशत तक मांसपेशियों को खो देता है, और जो मांसपेशियां बचती हैं, वे कमजोर हो जाती हैं।

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कोशिकाओं के विभाजन में गड़बड़ी

उम्र बढ़ने के साथ-साथ शरीर की कोशिकाओं में भी परिवर्तन होता है। कोशिकाओं के विभाजन में गड़बड़ी शुरू हो जाती है। डीएनए, जो कोशिकाओं की संरचना को नियंत्रित करता है, क्षतिग्रस्त हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप नई कोशिकाएं कमजोर या बीमार पैदा होती हैं। गड़बड़ डीएनए वाली कोशिकाएं अक्सर कैंसर या अन्य बीमारियों का शिकार हो जाती हैं, जिससे इंसान की उम्र और स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

आरामदायक जीवनशैली के परिणाम

आजकल की आरामदायक जीवनशैली भी शरीर पर भारी पड़ती है। इंसान का शरीर मांसपेशियों के बजाय वसा जमा करने लगता है। अधिक वसा जमा होने पर शरीर को लगता है कि उसके पास ऊर्जा का पर्याप्त भंडार है। इससे शरीर में हॉर्मोन संबंधी बदलाव आने लगते हैं, जो बीमारियों को जन्म देते हैं।

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प्राकृतिक मृत्यु की प्रक्रिया

प्राकृतिक मृत्यु शरीर के शटडाउन की प्रक्रिया का हिस्सा है। मृत्यु से ठीक पहले शरीर के कई अंग धीरे-धीरे काम करना बंद कर देते हैं। सबसे पहले इसका असर सांस पर पड़ता है। जब स्थितियां नियंत्रण से बाहर होने लगती हैं, तो मस्तिष्क में गड़बड़ शुरू हो जाती है। सांस रुकने के कुछ ही समय बाद दिल भी काम करना बंद कर देता है। दिल की धड़कन बंद होने के 4 से 6 मिनट बाद मस्तिष्क ऑक्सीजन की कमी से संघर्ष करने लगता है, जिससे मस्तिष्क की कोशिकाएं मरने लगती हैं। मेडिकल साइंस में इसे ही “प्राकृतिक मृत्यु” कहा जाता है, जिसे हम “प्वाइंट ऑफ नो रिटर्न” के नाम से भी जानते हैं।

मृत्यु के बाद के परिवर्तन

जब शरीर की मृत्यु हो जाती है, तो इसके बाद भी कुछ परिवर्तन होते हैं। शरीर का तापमान हर घंटे लगभग 1.5 डिग्री सेल्सियस गिरने लगता है। शरीर कठोर हो जाता है, क्योंकि खून कुछ जगहों पर जमने लगता है। हालांकि, त्वचा की कोशिकाएं मौत के 24 घंटे बाद तक जीवित रह सकती हैं, और आंतों में मौजूद बैक्टीरिया भी जीवित रहते हैं, जो शरीर को प्राकृतिक तत्वों में तोड़ना शुरू कर देते हैं।

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मृत्यु जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है, और इसके पीछे का विज्ञान यह समझने की कोशिश करता है कि कैसे शरीर धीरे-धीरे अपने कार्यों को बंद करता है। यह प्रक्रिया हमें यह समझने में मदद करती है कि इंसान क्यों और कैसे मरता है, और जीवन की इस अनिश्चितता को स्वीकार करने के लिए तैयार करता है।

Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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