जहांदार शाह का चढ़ाई और शासन
जहांदार शाह ने 1712 में अपने पिता बहादुर शाह प्रथम की मौत के बाद दिल्ली के तख्त पर कब्जा किया। वह अपने भाइयों के खिलाफ संघर्ष करके सम्राट बने। हालांकि वह बादशाह बनने के बाद अपनी असली शक्तियों का इस्तेमाल करने में सफल नहीं रहे और उनके शासन का मुख्य आकर्षण उनकी व्यक्तिगत आदतों और अय्याशी ही रही।
रंगीन मिजाजी और अय्याशी
जहांदार शाह बचपन से ही अपनी रंगीन मिजाजी और अय्याशी के लिए प्रसिद्ध था। वह अक्सर शराब और महिलाओं के बीच व्यस्त रहता था। मुग़ल साम्राज्य के अन्य बादशाहों की तरह उसे राजकाज में दिलचस्पी नहीं थी और वह अधिकतर समय अपनी इच्छाओं और फिजूलखर्ची में बिता देता था।
लाल कुंवर और हरम के अंदर का मंजर
जहांदार शाह की अय्याशी का सबसे बड़ा उदाहरण उसकी पसंदीदा तवायफ लाल कुंवर के साथ संबंध है। लाल कुंवर उम्र में जहांदार शाह से दोगुनी थी, लेकिन उसका आकर्षण इतना था कि वह दिल्ली दरबार में बहुत प्रभावशाली हो गई थी। जहांदार शाह ने उसे अपनी बेगम बना लिया और उसकी बातों को दरबार में ही हुक्म मान लिया। लाल कुंवर ने न केवल खुद को बल्कि जहांदार शाह के परिवार और दरबार के अन्य उच्च पदाधिकारियों को भी प्रभावित किया।
कपड़े पहनकर नाचना और दरबार में बेअदबी
जहांदार शाह के अजीबोगरीब आचरण ने उसे एक ऐसी छवि दी कि वह कभी औरतों के कपड़े पहनकर दरबार में आता था, तो कभी नंगा होकर अपनी गद्दी पर बैठ जाता था। इसके अलावा, वह नशे में चूर होकर नाचता था, जो उसके शाही कद और सम्मान को नष्ट करता था। उसकी इन हरकतों ने उसे “मूर्ख और लंपट” का तमगा दिलवाया।
मनोवैज्ञानिक असंतुलन और नदियों में नाव डुबाने का आदेश
जहांदार शाह का मानसिक संतुलन इतना बिगड़ चुका था कि उसने नदी में नाव डुबाने का आदेश दिया, ताकि वह लोगों की चीखों को सुन सके। यह उसकी मानसिक स्थिति की गंभीरता को दर्शाता है, जो स्पष्ट रूप से उसकी अय्याशी और नशे की आदतों का परिणाम था।
जनता का गुस्सा और फर्रूखसियर की हत्या
जहांदार शाह की अजीब हरकतों और कमजोर प्रशासन के कारण जनता में असंतोष फैल गया था। उनके शासन में मुग़ल साम्राज्य की स्थिति भी कमजोर होती जा रही थी। इस असंतोष का फायदा उठाकर उनके भतीजे फर्रूखसियर ने 1719 में जहांदार शाह की हत्या कर दी और खुद बादशाह बन गया। फर्रूखसियर ने जहांदार शाह को कमजोर और मानसिक रूप से असंतुलित मानते हुए उसे खत्म कर दिया।
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इतिहास में जहांदार शाह का स्थान
जहांदार शाह का शासन इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि वह मुग़ल साम्राज्य के अंतिम दौर का एक स्पष्ट उदाहरण हैं। उनका शासन एक तरफ़ जहां मुग़ल साम्राज्य के पतन की ओर बढ़ रहा था, वहीं दूसरी ओर यह बादशाह अपनी अय्याशी और मानसिक असंतुलन के कारण इतिहास में एक नकारात्मक स्थान बना गया।
जहांदार शाह को “लंपट मूर्ख मुग़ल” के रूप में पुकारने का कारण उसकी अय्याशी, नशे की आदतें, और मानसिक असंतुलन थे। उनका शासन मुग़ल साम्राज्य के इतिहास में एक काले धब्बे की तरह है, जिसमें न केवल उनका व्यक्तिगत जीवन, बल्कि उनके शासन की असफलता भी झलकती है। उनका शासन एक ऐसा उदाहरण है, जो यह दर्शाता है कि अगर शासक अपनी शक्तियों और जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेता है, तो उसका साम्राज्य और जनता दोनों ही संकट में पड़ सकते हैं।
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