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हिंदुओं के खून का प्यासा था ये मुग़ल बादशाह…क्रूरता का था जीता-जाता चेहरा, नाम सुनकर कानों को नहीं होगा यकीन!

BY: Prachi Jain • LAST UPDATED : January 6, 2025, 7:00 pm IST
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हिंदुओं के खून का प्यासा था ये मुग़ल बादशाह…क्रूरता का था जीता-जाता चेहरा, नाम सुनकर कानों को नहीं होगा यकीन!

Facts About Mughals: हिंदुओं के खून का प्यासा था ये मुग़ल बादशाह क्रूरता का था जीता-जाता चेहरा

India News (इंडिया न्यूज), Facts About Mughals: मुगल साम्राज्य का इतिहास भारतीय उपमहाद्वीप के सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य पर गहरा प्रभाव डालता है। मुगल शासकों में अकबर को सबसे सहिष्णु और उदार शासक के रूप में जाना जाता है। उनके शासनकाल में सर्वधर्म समभाव और प्रशासनिक सुधारों की शुरुआत हुई। लेकिन, यह छवि सर्वसम्मति से स्वीकार्य नहीं है। कई इतिहासकार, विशेषकर पी.एन.ओक, इस धारणा को चुनौती देते हैं। आइए, अकबर की ऐतिहासिक छवि पर विस्तार से चर्चा करें।

अकबर का सर्वधर्म समभाव

अकबर को उनके धार्मिक सहिष्णुता के दृष्टिकोण के लिए सराहा गया है। उन्होंने 1562 में जजिया कर (गैर-मुस्लिमों पर लगाया जाने वाला कर) को समाप्त किया और सभी धर्मों के अनुयायियों के साथ समान व्यवहार की नीति अपनाई। उन्होंने ‘दीन-ए-इलाही’ नामक धर्म की स्थापना की, जिसमें हिंदू, मुस्लिम, जैन, पारसी और ईसाई धर्मों के मूल तत्व शामिल थे। उनके दरबार में विभिन्न धर्मों के विद्वानों को सम्मान और स्थान मिला, जो उनकी समावेशिता को दर्शाता है।

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अकबर पर आलोचनाएं और पी.एन.ओक का दृष्टिकोण

पी.एन.ओक जैसे इतिहासकार अकबर की इस छवि से सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि अकबर का व्यक्तित्व इतिहास में जिस प्रकार से प्रस्तुत किया गया है, वह वास्तविकता से भिन्न है। अपनी पुस्तक में ओक ने अकबर को एक कुरूप और खूंखार शासक बताया, जिसने हिंदुओं पर अत्याचार किए। उनके अनुसार, अकबर ने खूबसूरत हिंदू लड़कियों को अपने हरम में शामिल किया और साम्राज्य विस्तार के लिए जबरदस्त हिंसा का सहारा लिया।

हालांकि, पी.एन.ओक का दृष्टिकोण मुख्यधारा के इतिहासकारों द्वारा विवादास्पद और एकतरफा माना जाता है। उनकी लेखनी में अकबर को नायक के बजाय खलनायक के रूप में दर्शाया गया है, जबकि महाराणा प्रताप को एकमात्र सच्चा शूरवीर बताया गया।

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इतिहासकारों की सहमति और असहमति

मुख्यधारा के इतिहासकार अकबर को एक कुशल शासक और महान प्रशासक मानते हैं। उनका तर्क है कि अकबर ने अपने शासनकाल में हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया और युद्धों के बावजूद आम जनता की भलाई के लिए कई सुधार किए। उदाहरण के लिए, भूमि राजस्व प्रणाली का पुनर्गठन और समाज में महिलाओं की स्थिति को सुधारने के प्रयास उनके दूरदर्शी नेतृत्व का प्रमाण हैं।

दूसरी ओर, पी.एन.ओक जैसे इतिहासकार यह दावा करते हैं कि अकबर की उदार छवि ब्रिटिश शासनकाल में भारतीय इतिहास को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करने का परिणाम है।

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महाराणा प्रताप बनाम अकबर

महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हल्दीघाटी का युद्ध भारतीय इतिहास का एक अहम अध्याय है। ओक के अनुसार, महाराणा प्रताप ने अपनी भूमि, संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए संघर्ष किया, जबकि अकबर ने अपनी सत्ता और साम्राज्य विस्तार के लिए क्रूर नीतियां अपनाईं। इस दृष्टिकोण में अकबर की छवि एक आक्रमणकारी शासक की बनती है।

इतिहास की व्याख्या संदर्भ और दृष्टिकोण पर निर्भर करती है। अकबर को एक सहिष्णु और उदार शासक मानने वाले उनके प्रशासनिक और धार्मिक सुधारों को आधार मानते हैं, जबकि उनके आलोचक उनके व्यक्तित्व और नीतियों में खामियां निकालते हैं। पी.एन.ओक के दावे विवादित और मुख्यधारा के इतिहास से भिन्न हो सकते हैं, लेकिन वे ऐतिहासिक घटनाओं को समझने के लिए एक वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रदान करते हैं।

अकबर का व्यक्तित्व और शासनकाल एक जटिल गाथा है, जिसे एकपक्षीय दृष्टिकोण से देखना इतिहास की गहराई को समझने में बाधा उत्पन्न कर सकता है। भारतीय इतिहास में उनके योगदान को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन उनके कार्यों की आलोचना और जांच भी आवश्यक है।

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डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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