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India News (इंडिया न्यूज), Mughal Dynasty: मुगल साम्राज्य का हरम, जिसके बारे में इतिहास में सैकड़ों कहानियां लिखी गईं, बाबर ने शुरू किया था, लेकिन अकबर ने इसे भव्य बनाया। मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में हरम में 5 हजार से ज्यादा महिलाएं रहती थीं। जिनमें रानियां, रखैलें, दासियां और महिला कर्मचारी शामिल थीं। अरबी में हरम का मतलब पवित्र स्थान होता है। मुगलों के हरम में सिर्फ बादशाह को ही प्रवेश की अनुमति थी, यही वजह है कि इतिहासकारों के लिए यह सबसे दिलचस्प विषय रहा है।
लेखक प्राणनाथ चोपड़ा अपनी किताब ‘मुगल युग के दौरान सामाजिक जीवन के कुछ पहलू’ में लिखते हैं कि हरम में अलग-अलग धर्म और संस्कृतियों की महिलाएं रहती थीं। जो बादशाह और उनके परिवार की हर जरूरत का ख्याल रखती थीं। शर्त यह थी कि वे पर्दे के पीछे रहेंगी। पर्दे के पीछे रहने की वजह से कई दासियां ऐसी थीं जिनका पूरा जीवन बीत गया लेकिन वे एक बार भी बादशाह की तरफ नहीं देख पाती थीं।
मुगलों का हरम कई हिस्सों में बंटा होता था। यानी रानियों के रहने की जगह अलग होती थी और दासियों और रखैलों के रहने की जगह अलग होती थी। इतना ही नहीं, राजा की खास और नापसंद महिलाओं के लिए भी अलग-अलग कमरे होते थे। हरम में रहने वाली हर महिला की अपनी-अपनी ज़िम्मेदारियाँ होती थीं। बगीचों को संवारना, चमकीले पर्दों का इंतज़ाम करना, फव्वारों की देखभाल करना, मोमबत्तियों को बुझने से रोकना… ऐसे सभी काम उनकी ज़िम्मेदारियों का हिस्सा थे।
चूंकि हरम में राजा के अलावा किसी अन्य पुरुष को प्रवेश की अनुमति नहीं थी, इसलिए अंदर की सुरक्षा का काम भी महिलाएं ही संभालती थीं। इसके लिए भारत के बाहर से मजबूत कद-काठी वाली महिलाओं को बुलाया जाता था। ये ऐसी महिलाएं होती थीं जो भारतीय भाषा नहीं जानती थीं और किसी से मिलने-जुलने या बात करने में उनकी रुचि नहीं होती थी। इसीलिए इन्हें तैनात किया जाता था।
किसी अन्य सल्तनत के राजा के लिए मुगलों की तरह हरम को व्यवस्थित रखना आसान नहीं था। इसका सबसे बड़ा कारण था पैसा। हरम में रखी जाने वाली बड़ी संख्या में महिलाओं का वेतन देने के लिए बहुत अधिक धन की आवश्यकता होती है। उस समय उच्च पद पर तैनात एक महिला को 1600 रुपये प्रति माह तक मिलते थे, यह वह समय था जब 1 तोला सोना मात्र 10 रुपये में मिल जाता था। महिलाओं की निगरानी करने वाले इंस्पेक्टर को इतना वेतन मिलता था कि हर महीने एक किलो सोना खरीदा जा सकता था। कहा जाता है कि उस समय 5 रुपये में पूरे महीने का खर्च आसानी से चल जाता था। हरम में प्रवेश की शर्तें और वो हैरान करने वाला अधिकार
आकर्षक वेतन और चढ़ावे का लालच देखकर कई महिलाओं ने हरम का हिस्सा बनने की कोशिश की, लेकिन उनका प्रवेश इतना आसान नहीं था। मुगलों की सबसे बड़ी शर्त ईमानदारी और पर्दा बनाए रखना था। यानी न तो हरम की कोई महिला बाहर जाएगी और न ही उसका कोई रिश्तेदार अंदर आएगा।
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हरम की महिलाओं का दर्जा अलग था। उन्हें बादशाह के अलावा किसी को भी दहलीज पर रोकने का अधिकार था। अगर कोई पुरुष झांकता तो उसे दंडित करने का पूरा अधिकार उन्हें था। शाही आदेश चाहे कितना भी गंभीर और गुप्त क्यों न हो, उसे लाने वाले को दरवाजे पर रुकना पड़ता था। हरम के अंदर रानी या राजा तक आदेश पहुंचाने का काम दासियों द्वारा ही किया जाता था।
इतिहासकारों का कहना है कि उस समय हरम की महिलाओं को अच्छा खासा वेतन दिया जाता था। अगर वे अपने काम से रानी या बादशाह को खुश कर देतीं तो उन्हें उपहार के तौर पर गहने, सोने के सिक्के और कई कीमती चीजें मिलती थीं। कई महिलाएं ऐसी भी थीं जिन्हें वेतन से ज़्यादा तोहफ़े में पैसे मिलते थे।
मुगल बादशाह बाबर से लेकर बहादुर शाह ज़फ़र तक हरम का अस्तित्व था। लेकिन इसका असली रूप अकबर के समय से देखने को मिलता है। जहाँगीर के समय में यह व्यवस्था अपने चरम पर थी और औरंगज़ेब के समय यानी मुगल शासन के पतन के समय हरम का अस्तित्व खत्म होने लगा। उसके बाद हरम रंगरेलियों का अड्डा बन गया। मुगल काल में कई शहरों में हरम हुआ करते थे। मुख्य शाही हरम आगरा, दिल्ली, फतेहपुर सीकरी और लाहौर में थे, जहाँ बादशाह अपना ज़्यादातर समय बिताते थे। इसके अलावा दूसरे शहरों में भी हरम हुआ करते थे।
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