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India News(इंडिया न्यूज), Nath Utrai Rasam In Jaipur: जयपुर, जिसे ‘गुलाबी नगरी’ के नाम से जाना जाता है, अपनी वास्तुकला, सांस्कृतिक धरोहर और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यह शहर राजसी महलों, किलों और मंदिरों के साथ-साथ अपनी समृद्ध इतिहासिक कहानियों के लिए भी पहचाना जाता है। एक ऐसी ही दिलचस्प और रहस्यमयी कहानी जयपुर के चांदपोल इलाके से जुड़ी हुई है। यह इलाका न केवल अपनी खूबसूरती और ऐतिहासिक महत्व के लिए बल्कि उस समय के तवायफों के मोहल्ले के रूप में भी जाना जाता था। आजादी से पहले यह क्षेत्र कला और संगीत की महफिलों का केंद्र हुआ करता था, लेकिन समय के साथ इसके स्वरूप और कहानी में बड़ा बदलाव आया।
चांदपोल दरअसल, जयपुर के ओल्ड जयपुर (परकोटा क्षेत्र) में स्थित एक प्रमुख इलाका है। इस इलाके का ऐतिहासिक महत्व बहुत गहरा है, क्योंकि यहां तवायफों के कोठे बसाए गए थे। आजादी से पहले राजपरिवारों और सामंती वर्ग के लोगों ने चांदपोल में तवायफों के लिए यह मोहल्ला बसाया था। उस समय यह जगह न केवल तवायफों की कला और संगीत के लिए जानी जाती थी, बल्कि इस इलाके में हर शाम संगीत, नृत्य और महफिलें सजती थीं। यह मोहल्ला कला, संस्कृति और मनोरंजन का एक महत्वपूर्ण केंद्र हुआ करता था, जहां रानियों और राजकुमारों के साथ-साथ आम लोग भी इन महफिलों का हिस्सा बनते थे।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, आजादी से पहले इस इलाके में 150 से अधिक कोठे हुआ करते थे, जहां तवायफें अपने कला का प्रदर्शन करती थीं। लेकिन अब यह संख्या घटकर 20 से 30 कोठों तक सीमित रह गई है। उस समय तवायफों को राजपरिवारों द्वारा सम्मान दिया जाता था, और उनका योगदान संगीत, नृत्य और कला के क्षेत्र में महत्वपूर्ण माना जाता था। इन कोठों में समय-समय पर भव्य संगीत-नृत्य की महफिलें सजती थीं, जो ना केवल सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा थीं, बल्कि जयपुर की समृद्ध कला और ऐतिहासिक पहचान का प्रतीक भी थीं।
पिछले कुछ वर्षों में तवायफों के जीवन में बड़ा बदलाव आया है। इस बदलाव को फिल्म निर्माता संजय लीला भंसाली की वेब सीरीज ‘हीरामंडी’ में भी दर्शाया गया था, जो तवायफों की जिंदगी और उनकी जिंदगी में आने वाले उतार-चढ़ाव पर आधारित थी। इस सीरीज में “नथ उतराई” की रस्म को प्रमुखता से दिखाया गया था, जो एक विशेष परंपरा थी, जिसमें एक लड़की को दुल्हन की तरह सजाया जाता था और नाक में बड़ी नथ पहनाई जाती थी। यह नथ उसकी कौमार्य का प्रतीक मानी जाती थी। इसके बाद अमीर लोग उसे अपनी बोली लगाकर खरीदने के लिए आते थे, और जो सबसे बड़ी बोली लगाता, वह उस लड़की के साथ पहले संबंध स्थापित करता था। यह रस्म समय के साथ बदलकर वेश्यावृत्ति से जुड़ गई।
आजकल जयपुर के चांदपोल इलाके में तवायफों की इमेज और भी ज्यादा बदल गई है। जहां एक समय में यह इलाका सांस्कृतिक धरोहर और कला का केंद्र हुआ करता था, वहीं अब कुछ तवायफें आर्थिक तंगी के कारण वेश्यावृत्ति के धंधे में भी उतर आई हैं। यह क्षेत्र आजकल बेरोजगारी और गरीबी की समस्या से जूझ रहा है, जिसके कारण कुछ तवायफों को अपने पेशे में बदलाव करना पड़ा है। इसके अलावा, कई लड़कियों को इन इलाकों से दूर-दराज के क्षेत्रों में भेजा जाता है।
हालांकि समय और परिस्थितियों में बदलाव आया है, लेकिन चांदपोल के कोठों पर आज भी महफिलें सजती हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, चांदपोल में अब भी 20 से 30 कोठे बाकी हैं, जहां शाम के समय संगीत और नृत्य की महफिलें सजती हैं। शाम के 7 बजे से लेकर रात 11 बजे तक इन कोठों पर रौनक देखने को मिलती है, और जब आप यहां से गुजरते हैं तो रंगीन रोशनी और झरोखों में बैठी सजी-धजी महिलाएं आपको इस इलाके की पुरानी रौनक का अहसास कराती हैं।
चांदपोल का इतिहास और इसके आसपास की स्थितियां समय के साथ बदल चुकी हैं। पहले जहां यह स्थान एक कला और संस्कृति का प्रतीक था, वहीं अब यह बदले हुए समाज और आर्थिक परिस्थितियों का सामना कर रहा है। तवायफों के कोठे अब केवल इतिहास का हिस्सा बनकर रह गए हैं, और इसके साथ जुड़ी पुरानी रौनक भी अब केवल यादों में ही सिमटकर रह गई है। हालांकि, जयपुर के इस हिस्से का ऐतिहासिक महत्व आज भी जीवित है और यहां की पुरानी गलियों में चलने पर आपको उस समय की यादें ताजगी से महसूस होती हैं।
जयपुर के चांदपोल का इलाका न केवल तवायफों की कला का केंद्र था, बल्कि यह शहर के इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर का भी एक अहम हिस्सा रहा है। आज के बदलते समय में इस इलाके का स्वरूप जरूर बदल चुका है, लेकिन यह क्षेत्र फिर भी अपनी ऐतिहासिक पहचान और पुराने समय की यादों को संजोए हुए है। चांदपोल का यह इलाका समय के साथ एक नई दिशा में आगे बढ़ रहा है, लेकिन यहां की पुरानी महफिलों और संगीत की यादें आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं।
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