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India News (इंडिया न्यूज), Facts About Islaam: मुस्लिम समाज में उनकी विशेष पहचान अक्सर उनके पहनावे और हाव-भाव से जुड़ी होती है। सिर पर टोपी, कुर्ता-पायजामा, और बढ़ी हुई दाढ़ी उनकी पारंपरिक छवि का हिस्सा मानी जाती है। लेकिन एक प्रश्न जो अक्सर लोगों के मन में उठता है, वह यह है कि मुस्लिम लोग मूंछें क्यों नहीं रखते। इस पर कई मत और तर्क प्रस्तुत किए गए हैं जो धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़े हैं।
इस्लाम में मूंछें न रखने और दाढ़ी बढ़ाने की परंपरा को धार्मिक हदीसों और इस्लामी शिक्षाओं से जोड़कर देखा जाता है। एक प्रमुख हदीस में पैगंबर मोहम्मद ने यह कहा है कि मुसलमानों को “प्राकृतिक धर्म” का पालन करना चाहिए। इसका अर्थ है कि उन्हें अन्य धर्मों और उनके देवताओं की विशेषताओं से भिन्न रहना चाहिए।
इस संदर्भ में यह कहा जाता है कि पैगंबर के समय के अन्य धर्मों में उनके देवताओं की बड़ी मूंछें होती थीं। इस्लाम में निराकार अल्लाह में विश्वास किया जाता है और यह मूंछें न रखने की परंपरा इसी भिन्नता को दर्शाने के लिए अपनाई गई। इसके अलावा, दाढ़ी को इस्लाम में पुरुषों की पहचान के रूप में महत्व दिया गया है और इसे पैगंबर की सुन्नत माना गया है।
मूंछें न रखने की परंपरा को अरब की प्राचीन संस्कृति से भी जोड़ा जाता है। अरब के रेगिस्तानी क्षेत्रों में तेज रेतीली हवाएं चलती थीं। इन हवाओं में उड़ने वाले रेत के कण मूंछों में फंस जाते थे और भोजन करते समय ये कण मुंह के भीतर चले जाते थे। स्वास्थ्य और स्वच्छता की दृष्टि से मूंछें साफ करना या उन्हें छोटा रखना अधिक व्यावहारिक था। धीरे-धीरे यह आदत वहां की संस्कृति का हिस्सा बन गई। जब इस्लाम धर्म का प्रचार हुआ, तो यह परंपरा भी साथ में फैल गई।
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इस्लाम धर्म में स्वच्छता को अत्यधिक महत्व दिया गया है। मूंछें न रखना और दाढ़ी रखना भी स्वच्छता और धार्मिकता के बीच सामंजस्य का प्रतीक माना जाता है। इसके पीछे यह विचार है कि लंबी मूंछें भोजन या पानी के सेवन के दौरान असुविधा पैदा कर सकती हैं और सफाई बनाए रखना मुश्किल हो सकता है। इस कारण, मुसलमान मूंछों को छोटा रखने या पूरी तरह से हटाने को प्राथमिकता देते हैं।
मुस्लिम समाज में मूंछें न रखने की परंपरा धार्मिक मान्यताओं, सांस्कृतिक परंपराओं, और स्वच्छता की व्यावहारिकता से जुड़ी हुई है। यह परंपरा इस्लाम के प्रमुख सिद्धांतों और अरब की प्राचीन जीवनशैली का एक अद्भुत मेल है। इससे यह समझा जा सकता है कि कैसे धार्मिक और सांस्कृतिक कारण एक व्यक्ति की पहचान और व्यवहार को प्रभावित करते हैं।
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।
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