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अविवाहित लड़कियां महावर से क्यों नहीं भरतीं एड़ियां, कारण जानकर चौंक जायेंगे आप!

हिंदू संस्कृति में अलता या महावर सोलह श्रृंगार का अभिन्न अंग है. विवाहित महिलाओं के लिए यह सुहाग, समृद्धि और वैवाहिक सुख का प्रतीक है, जबकि अविवाहित लड़कियां इसे लगाते समय एड़ियों को आपस में न जोड़कर खुला छोड़ देती हैं.

Written By: Shivangi Shukla
Last Updated: December 22, 2025 17:21:53 IST

हिंदू संस्कृति में अलता या महावर सोलह श्रृंगार का अभिन्न अंग है, जो न केवल सौंदर्य बढ़ाता है बल्कि गहन धार्मिक और जीवन का प्रतीकात्मक महत्व भी रखता है.

विवाहित महिलाओं के लिए यह सुहाग, समृद्धि और वैवाहिक सुख का प्रतीक है. आपने नोटिस किया होगा कि जब अविवाहित लड़कियां अलता लगाते समय एड़ियों को आपस में न जोड़कर खुला छोड़ देती हैं. यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और इसके पीछे गहरा दार्शनिक अर्थ छिपा है.

धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यता

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अलता लगाते समय एड़ियों को जोड़ना जीवन की पूर्णता का प्रतीक है. अविवाहित कन्या अभी अपने पिता के घर की है, जो उसके जीवन के अधूरे चरण को दर्शाता है. एड़ियां खुली रखना इस बात का संकेत है कि वह शादी के बाद ही नए घर और रिश्ते में प्रवेश करेगी. शादी के दिन पहली बार एड़ियां अलता से जुड़ती हैं, जो पति-पत्नी के अटूट बंधन और वैवाहिक जीवन की शुरुआत का प्रतीक बनता है. विवाहित महिलाओं के लिए जुड़ी एड़ियां संपूर्ण सुख और स्थिरता का प्रतिनिधित्व करती हैं. बुजुर्ग आज भी इस नियम का सख्ती से पालन कराते हैं, क्योंकि इसे तोड़ना अशुभ माना जाता है. त्योहारों, पूजा या धार्मिक अनुष्ठानों में महिलाएं अलता लगाकर सौभाग्य की कामना करती हैं.

अलता के स्वास्थ्य और वैज्ञानिक लाभ

अलता केवल सजावट का साधन नहीं, बल्कि इसमें औषधीय गुण भी हैं. पारंपरिक रूप से बनाई गई अलता पैरों को शीतलता प्रदान करती है, जिससे गर्मी के दिनों में आराम मिलता है और मानसिक तनाव कम होता है. इसमें प्राकृतिक तत्व जैसे चंदन, हल्दी या अन्य जड़ी-बूटियां मिलाई जाती थीं, जो फटी एड़ियों, पैरों के दर्द और त्वचा संबंधी समस्याओं से राहत देती थीं. आधुनिक समय में भी इसे रक्त संचार सुधारने और तंत्रिका तंत्र को शांत करने के लिए उपयोगी माना जाता है. 

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और साहित्यिक उल्लेख

अलता की परंपरा प्राचीन भारत से जुड़ी है. महाकवि कालिदास के ‘अभिज्ञानशाकुंतलम’ में इसका वर्णन मिलता है, जहां शकुंतला को अलता लगाए दिखाया गया है. हिंदू धर्म में इसे देवी लक्ष्मी, मां दुर्गा और भगवान श्रीकृष्ण से जोड़ा जाता है. श्रीकृष्ण को अक्सर हाथों-पैरों पर अलता लगाए चित्रित किया जाता है. बंगाल और पूर्वी भारत में ‘अल्पना’ के रूप में यह कला का रूप ले लेता है. प्राचीन काल में नवजात कन्याओं के गृह प्रवेश पर भी अलता लगाने की रिवायत थी, जो उनके स्वागत और सौभाग्य की प्रतीक थी. प्राचीन भारत से लेकर आधुनिक समय तक अलता का भारतीय स्त्रियों के श्रृंगार में विशेष महत्त्व है. 

आधुनिक समय में सावधानियां

आजकल रेडीमेड अलता बाजार में उपलब्ध है. ज्यादातर रेडीमेड अलता केमिकल से बने होते हैं, लेकिन प्राकृतिक सामग्री वाली अलता ही चुनें. एलर्जी वाले लोग लगाने से पहले पैच टेस्ट करें. अविवाहित लड़कियां परंपरा का सम्मान करें, लेकिन मजबूरी में हल्का अलता लगा सकती हैं. यह परंपरा भारतीय नारीत्व की सुंदरता और संस्कृति को दर्शाती है.

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