Red Wine
क्रिसमस और न्यू ईयर की पार्टी सीजन में व्हिस्की व बीयर की बाढ़ आ जाती है, लेकिन भारत में वाइन कभी जन-जन की पसंद न बन सकी. भारत की उष्ण-नम जलवायु, ऊंची कीमतें, भंडारण की जटिलताएं, भोजन के साथ असंगति तथा सांस्कृतिक विलंब ने इसे हाशिए पर धकेल दिया.
जहां व्हिस्की और बीयर भारत की जलवायु, खान-पान और सामाजिक रीति-रिवाजों के अनुकूल थीं, वहीं शराब को अभिजात्य वर्ग से जोड़ा जाता रहा, जिसके कारण आज भी इसकी व्यापक स्वीकृति धीमी और असमान है.
भारत की गर्म व आर्द्र जलवायु वाइन संस्कृति के लिए सबसे बड़ा रोड़ा साबित हुई है. विश्व की प्रमुख वाइन परंपराएं शीतोष्ण क्षेत्रों में पनपीं, जहां अंगूर धीमी गति से पकते हैं और एक रिच टेस्ट ग्रहण करते हैं तथा ठंडी जगहों पर वाइन का भंडारण भी सहज होता है. जबकि भारत में तापमान के कारण वाइन का स्वाद कुछ ही हफ्तों में फीका पड़ जाता है या बोतलें खराब हो हैं. दशकों तक अनियंत्रित तापमान वाले ट्रकों व दुकानों में वाइन पहुंचकर उपभोक्ताओं को निराश करती रही, जबकि व्हिस्की-बीयर ऐसी विपरीत परिस्थितियों को आसानी से सह लेते हैं, इसलिए इनका उपयोग अधिक होता है.
भारतीय लोगों के टेस्ट बड आमतौर पर तीखे, मीठे, मसालेदार जैसे तीव्र स्वाद के लिए अधिक अनुकूलित होते हैं, जबकि वाइन का टेस्ट हल्का एसिडिक होता है, जो धीरे-धीरे आपके टेस्ट बड तक पहुँचता है. वाइन की बारीकियां जैसे एसिडिटी, टैनिन्स वाइन का नया टेस्ट करने वालों को मात्र ‘खट्टी’ या ‘पतली’ प्रतीत होतीं हैं. व्हिस्की की तीव्र जलन या स्थानीय मदिराओं की मधुरता से तुलना में वाइन बिलकुल अलग स्वाद की होती है.
वाइन को भारत में विलासिता का प्रतीक बनाकर पेश किया गया—होटलों के मेन्यू, अभिजात पार्टियां व विदेशी लेबल वाली बोतलें. स्वदेशी वाइनें भी इस ‘पॉश’ छवि से उबर न सकीं. राज्य-विशेष करों ने आयातित वाइन की कीमतें दोगुनी-तिगुनी कर दीं, जहां सस्ती वाइन भी टैक्स की वजह से महंगी साबित होने लगी. परिणामस्वरूप, व्हिस्की और बीयर लोगों को अधिक सुलभ लगने लगी, इसलिए लोगों में उसका क्रेज भी अधिक है.
वाइन तापमान के प्रति बेहद संसदनशील है. वाइन के लिए स्थिर तापमान, सावधानीपूर्वक रखरखाव व खोलने के बाद शीघ्र उपभोग आवश्यक है. भारतीय घरों में वाइन फ्रिज या सेलर दुर्लभ हैं; अधिकांश फ्रिज अधिभारित व वाइन स्टोरेज के लिए अनुपयुक्त तापमान वाले हैं. इसके विपरीत, स्पिरिट्स वर्षों शेल्फ पर रहतीं हैं, ऊष्मा सहन कर लेतीं हैं, जिसकी वजह से इनको स्टोर करना ईजी होता है. वाइन को उपयुक्त टेम्परेचर पर स्टोर करना महंगा भी है, ये भी एक बड़ी वजह है कि ज्यादातर भारतीय वाइन के शौक़ीन नहीं हैं.
वाइन की क्लासिक पेयरिंग यूरोपीय व्यंजनों जैसे चीज, ब्रेड, मक्खन के इर्द-गिर्द विकसित हुई है, जो भारतीय मसालों वाले चखना से बिलकुल अलग है. भारी ग्रेवी, तले-भुने या धूम्र व्यंजनों के साथ वाइन मेटैलिक टेस्ट ग्रहण कर लेती है, जबकि व्हिस्की और बीयर बिरयानी, बटर चिकन या चाट के साथ सहज घुलमिल जाते हैं. भारतीय समाज अभी भी ऑथेंटिक पिज्जा, पास्ता जैसी यूरोपीय टेस्ट को खास पसंद नहीं करता.
हालांकि, धीमी गति से भारतीय परिदृश्य बदल रहा है. शहरी उपभोक्ता प्रयोगशील हो रहे हैं, भारतीय वाइनरी स्थानीय स्वादानुसार थोड़ा चेंज भी ला रही है. युवाओं के बीच वाइन बार, टेस्टिंग सेशन व वाइन पेयरिंग मेन्यू प्रचलित हो रहे हैं. युवा पीढ़ी परंपराओं से मुक्त व जिज्ञासु है; फिर भी, व्यापक स्वीकृति हेतु कम कीमत पर, उन्नत भंडारण सुविधा के साथ वाइन पर टैक्सेशन में सुधार आवश्यक है.
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