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4 Golden Rules of Happy Parenting
इंडिया न्यूज, नई दिल्ली :
यह सच है कि आज के जमाने में पैरेंटिंग किसी चुनौती से कम नहीं। लेकिन यह भी सच है कि जीवन में खुशियां बेहतर पैरेंटिंग से ही मिलती है। इसी कोशिश में कई पैरेन्ट्स हैं जो खुद और बच्चों पर परफेक्शन का बोझ डाल देते हैं और सारा मामला खराब हो जाता है। ऐसे में हर पैरेंट को यह जानना जरूरी है कि कोई भी इंसान हर चीज में परफेक्ट नहीं हो सकता। हम जैसे ही परफेक्शन की दौड़ में शामिल होते हैं तो खुशियां दूर होने गलती हैं। यह बात पैरेंटिंग को लेकर भी है। यदि आप हर जगह परफेक्ट बनने की कोशिश करेंगे तो आप फिजिकली और इमोशनली थक जाएंगे और दुखी, चिड़चिड़े और असंतुष्ट इंसान में बदल जाएंगे। यहां हम पैरेंटिंग के चार गोल्डन रूल्स के बारे में बात करने जा रहे हैं, जो आपको खुशहाल बना देंगे।
वैसे आप चाहे जहां रह रहे हों, मसलन शहरों में या गांवों में चीजें इतनी तेजी से बदल रही हैं कि उनके साथ समन्वय बनाए रखने के लिए आपका मल्टी-टास्कर होना महत्वपूर्ण हो गया है। पर जब आप पैरेंट बनते हैं तो मल्टी-टास्कर बनना अनिवार्य ही हो जाता है। आपको पहले की जिÞम्मेदारियों के साथ-साथ बच्चे के लालन-पालन की जिÞम्मेदारी भी निभानी है। बच्चों की परवरिश समय मांगती है। पर समय तो सबके पास दिन में चौबीस घंटे ही होते हैं। यह तब हो सकेगा, जब आप दो काम करेंगे-पहला अपनी स्पीड को थोड़ा-सा बढ़ा लेंगे और दूसरा एक ही समय में कई काम निपटाने की कला सीख लेंगे। यह रातों-रात होने वाला बदलाव नहीं है। आपको इसके लिए मेहनत लगेगी।
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पैरेंटिंग समझदारी से किया जानेवाला काम है। इसमें जिद के लिए कोई जगह नहीं होती। आपको कई बार ऐसे काम करने होते हैं, जो आपको बिल्कुल भी पसंद नहीं होते। उदाहरण के लिए आप उन लोगों में हैं, जिन्हें अपने आत्मनिर्भर होने पर नाज है। उन्हें इस बात का गर्व है कि वे अपने सारे काम बिना किसी की मदद के कर लेते हैं। पर बाकी कामों और पैरेंटिंग में फर्क है। यहां आपको मदद की जरूरत पड़ेगी, खासकर यदि आप पैरेंटिंग को बोझ नहीं एन्जॉयमेंट की तरह लेना चाहते हैं तो आपको सभी उपलब्ध मदद का सहर्ष स्वागत करना चाहिए। पैरेंटिंग में सबसे बड़ी मदद बनते हैं बच्चों के दादी-दादा और नानी-नाना। यदि वे आपके साथ रह रहे हैं तो यकीन मानिए आप एक खुशहाल पैरेंट होंगे। यदि वे साथ नहीं हैं तो बच्चे के लिए किसी नैनी या फुल-टाइम केयर टेकर की व्यवस्था हो सके तो बेहतर होगा. आपके लिए भी और बच्चे के लिए भी, क्योंकि सारे काम करते हुए आप उतने एनर्जेटिक नहीं रह पाते, जबकि बच्चों को एनर्जेटिक लोगों का साथ पसंद होता है।
भले ही बच्चे को संभालने के लिए आपके पास कितने भी हेल्प क्यों न हों, वे अपने पैरेंट्स का साथ और अटेंशन चाहते हैं। इससे उन्हें यह फील होता है कि वे आपके लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। आप भले ही बच्चे को तमाम व्यस्तताओं के बीच कम समय दे पाते हों, पर उनके साथ दिन में जितना भी समय बिताएं, बस उनके साथ ही रहें। आपका पूरा ध्यान उनकी बातों, उनके सवालों और उनकी हरकतों और शरारतों पर रहना चाहिए। आप साथ खेलें, साथ खाएं, हंसे, बोलें, उन्हें कहानी सुनाएं इससे कम टाइम दे पाने के बावजूद बच्चे के साथ आपकी बॉन्डिंग मजबूत होगी।
हमारी पहचान इस बात से होती है कि हम कितने अनुशासनप्रिय हैं, लोगों और संबंधों के प्रति कितने संवेदनशील हैं, काम के प्रति कितने समर्पित हैं, जिदगी को लेकर कितने सकारात्मक हैं। यदि आप चाहते हैं कि आपका बच्चा भी एक अच्छे इंसान के रूप में पहचाना जाए तो इन सभी चीजों को उसके बेसिक व्यवहार में शामिल करें। ऐसा करने पर उसका व्यक्तित्व बेहतर होगा। और बच्चा यह सब सीखेगा आपके व्यवहार को देखकर। यानी आप बच्चे के लिए उदाहरण हैं, इसलिए आप बच्चे को जैसा बनाना चाहते हैं, खुद वैसा बनें।
परिवार के साथ समय बिताना, बड़ों की इज्जत करना, छोटों को स्नेह और मार्गदर्शन देना, चीजों की कदर करना, दूसरों की भावनाओं का सम्मान करना, दूसरों की बातों को सुनना, देश और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझना जैसी बुनियादी बातें बच्चे आपको देखकर ही सीखेंगे। जब बच्चों की इन बातों के लिए तारीफ होगी तो उस समय आपसे ज्यादा खुशहाल पैरेंट पूरी दुनिया में कहीं नहीं होंगे।
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