Adani Group: समुद्र में चीन की बढ़ती ताकत से मुकाबला करने की तैयारी कर रहा अदाणी समूह, अमेरिकी सरकार ने दी बड़ी मंजूरी

Adani Group: भारत के बिजनेस टाइकून गौतम अदाणी के स्वामित्व वाली अदाणी समूह इन दिनों अपने विदेशी बंदरगाह व्ययसाय को विस्तार देने की योजना बना रही है। कोलंबो में एक बंदरगाह टर्मिनल के लिए अमेरिकी सरकार से 553 मिलियन डॉलर के वित्तपोषण सौदे को मंजूरी दे दी गई है।

पड़ोसी देशों के अवसरों पर नजर

अदाणी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन (एपीएसईजेड) के सीईओ करण अदाणी ने ब्लूमबर्ग न्यूज को बताया कि कंपनी “हमारे पड़ोसी देशों में अवसरों” पर नजर रख रही है। कहा जा रहा है कि समुद्र में चीन की बढ़ती ताकत से मुकाबला करने के लिए इसे रणनीतिक प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अदानी पोर्ट्स बांग्लादेश, पूर्वी अफ्रीकी देशों और तंजानिया और वियतनाम जैसे दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में नए अवसर तलाशने की योजना बना रही है।

सबसे बड़ा बंदरगाह संचालक (Adani Group)

यह ध्यान देने वाली बात है कि अमेरिकी आर्थिक सहायता के माध्यम से अदाणी समूह के इन प्रयासों को इसकी विदेश में अपने उद्योग को विस्तार देने की योजना माना जा रहा है। आपको बता दें कि अदाणी समूह भारत का सबसे बड़ा पोर्ट ऑपरेटर हैं। हालांकि, पड़ोसी देश चीन की तुलना में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसका क्षेत्र काफी छोटा है। जिसने अपनी सीमाओं के बाहर 90 से अधिक बंदरगाहों में निवेश किया है, जिनमें से 13 बहुसंख्यक चीनी स्वामित्व वाले हैं।

‘भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा’ योजना में समानता

टीसीजी एसेट मैनेजमेंट कंपनी के मुख्य निवेश अधिकारी चक्री लोकप्रिया ने ब्लूमबर्ग को बताया कि समूह की महत्वाकांक्षा को एक “रणनीतिक” खेल के रूप में देखा जाता है, जिसका उद्देश्य क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करना है। यह विस्तार सैन्य तख्तापलट के कारण समूह को म्यांमार में एक बंदरगाह बनाने की योजना को स्थगित करने और श्रीलंका में राजनीतिक आलोचना का सामना करने के बाद हुआ है। यह भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के भारतीय-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे के दृष्टिकोण से भी मेल खाता है, जिसका एक हिस्सा इज़राइल के हाइफ़ा में अदानी के बंदरगाह से होकर गुजर सकता है।

कई बड़ी चुनौतयां (Adani Group)

अमेरिकी सरकार के द्वारा भारी-भरकम वित्तपोषण हासिल करने बाद भी अदाणी समूह की चुनौतियां कम नहीं हैं। कुछ महीने पहले हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद जहां एक ओर सूमह के शेयर्स में भारी गिरावट आई थी। इसकेअलावा समूह के खिलाफ चल रही जांच के कारण अन्य अंतरराष्ट्रीय वित्तीय समूहों से सहायता प्राप्त करना मुश्किल है। हालांकि, अमेरिका से वित्तपोषण के बाद समूह के लिए आगे के रास्ते पहले से आसान हो गए हैं। समूह के ऑडिटर, डेलॉइट हास्किन्स एंड सेल्स एलएलपी ने अदानी पोर्ट्स और कुछ संस्थाओं के बीच लेनदेन से संबंधित चिंताओं पर इस्तीफा दे दिया।

राजस्व का अधिकतर हिस्सा भारत में

इसके अतिरिक्त, ऋण की बढ़ती लागत विस्तार के वित्तपोषण के लिए चुनौती खड़ी कर सकती है। समूह का ध्यान मुख्य रूप से भारत पर रहता है, जो इसके राजस्व का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा है। चुनौतियों का हवाला देते हुए वाशिंगटन के विल्सन सेंटर में साउथ एशिया इंस्टीट्यूट के निदेशक माइकल कुगेलमैन ने ब्लूमबर्ग न्यूज को बताया कि अडानी और उनकी कंपनियां एक “लंबा खेल” खेल रही हैं। उन्होंने कहा, “वे धीरे-धीरे लेकिन लगातार दक्षिण एशिया और उससे आगे नए निवेश का निर्माण करना चाह रहे हैं।”

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Shashank Shukla

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