संबंधित खबरें
मातम में बदलीं खुशियां, नाचते- नाचते ऐसा क्या हुआ शादी से पहले उठी…
नाइजीरिया में क्यों पीएम मोदी को दी गई 'चाबी'? क्या है इसका महत्व, तस्वीरें हो रही वायरल
Stray Dogs: बिलासपुर में आंवारा कुत्तों का आतंक, लॉ छात्रा पर किया हमला
छत्तीसगढ़ में इंडिगो फ्लाइट को मिली धमकी, इमरजेंसी हुई लैंडिग
ऑटो में बैठी थी महिला तभी पीठ पर किसी ने फेरा हाथ, पीछे मुड़ी तो कांप गई रूह, देखें सबसे डरावने 5 मिनट की झलक
खिचड़ी बनी जानलेवा, मौत से पटना में लोगों का रो रो कर हुआ बुरा हाल
India News ( इंडिया न्यूज़), Mahabharata: महाभारत क्यों हुआ? युद्ध की विभीषिका के पीछे क्या एक स्त्री का अट्टहास भरा था? क्या पुरुष मन के अहंकार की वजह से महाभारत जैसा महायुद्ध हुआ? क्या एक स्त्री पिता के आंगन से लेकर पति के राजमहल तक महज़ इस्तेमाल करने वाली वस्तु बनी रहेगी? आख़िर क्या है महाभारत की द्रौपदी का द्वंद्व? आख़िर क्या है हर स्त्री के मन में बैठी एक द्रौपदी की पीड़ा? ये सारे सवाल महाभारत काल की इंद्रप्रस्थ और आज की दिल्ली के एक सभागार में गूंजे।
दिल्ली के श्रीराम सेंटर में ‘अग्निसुता द्रौपदी’ का मंचन द्रौपदी के मन की कई परतों को बेहद धीरे-धीरे उधेड़ता है, द्रौपदी और द्रौपदी का आंतरिक मन दोनों मंच पर एक दूसरे से गूंथे हुए ज़िंदगी के अलग-अलग मोड़ पर उलझते भी रहते हैं और कुछ-कुछ पहेलियों को मानो सुलझाते भी चले जाते हैं। एक बेटी ये पूछती है – क्या पिता के प्रतिशोध के लिए वो इस्तेमाल होती रहेगी, पत्नी ये सवाल करती है- क्या किसी पति को अपनी पत्नी का वजूद दांव पर लगाने का हक़ है? भाभी ये सवाल करती है क्या उसे अपने देवर दुर्योधन से हंसी ठिठोली का भी हक़ नहीं?
कृष्ण की सखा कृष्णा युद्ध कला में पारंगत तो है लेकिन क्या वो युद्धभूमि में इसका प्रदर्शन करने की हक़दार भी है? एक उन्मुक्त स्त्री ये सवाल करती है क्या उसे अपने प्रेम के प्रदर्शन का अधिकार तक नहीं? अर्जुन या कर्ण, दो धर्नुधरों के बीच द्रौपदी के प्रेम का द्वंद्व, पांच पांडवों के बीच बांटे जाने की कशमकश भी स्त्री की सहज और स्वाभाविक अभिव्यक्ति के तौर पर सामने आता है।
मंदिर की घंटियों के बीच द्रौपदी के अवतरण से लेकर महाभारत के उपरांत उसके रुदन तक की कथा में नया क्या है? नाटक की गतियां और दृश्यबंध दर्शकों को ये सोचने का मौक़ा तक नहीं देते। बेहद सधी हुई शारीरिक भंगिमाएँ, अभिनय का अंदाज और नाटक के संवाद एक दूसरे के साथ मिलकर एक ऐसा प्रभाव पैदा करते हैं, जिसमें दर्शक मंत्र मुग्ध सा नज़रें टिकाए बैठा रहता है। महाभारत और द्रौपदी की कथा में कुछ नया तलाशना एक बड़ी चुनौती थी, उससे कहीं ज़्यादा बड़ी चुनौती इसे कुछ इस अंदाज में प्रस्तुत करना कि दर्शक कुछ नया सा एहसास कर पाएँ, ट्रेजर आर्ट एसोसिएशन की ये प्रस्तुति बिना किसी शक नया सा एहसास दर्शकों को दे जाती है।
‘अग्निसुता द्रौपदी’ का आलेख मोहन जोशी ने तैयार किया है, मोहन जोशी ने जहां एक तरफ़ द्रौपदी के अंतर्मन में दाखिल होने की कोशिश की है, तो वहीं नाटक के डिज़ायनर और निर्देशक जॉय माईस्नाम ने कल्पनाओं को मूर्त रूप देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। नाटक को कुछ यूँ बुना गया है कि वो कई बार अपनी गतियों और दृश्यबंध से आपको चौंकाता है, चौसर का दृश्य हो या फिर चक्रव्यूह में फंसे अभिमन्यु की भागमभाग, मंदिर की प्रार्थना हो या पांडवों के खांडवप्रस्थ का भव्य राजमहल, निर्देशक ने इसे बख़ूबी मंच पर उतार दिया है।
90 मिनट के नाटक के बीच में कहीं तालियों की गड़गड़ाहट नहीं सुनाई देती, ये भी इस नाटक की उपलब्धि ही कहा जाएगा, क्योंकि एक संजीदा मुद्दे को जितनी संजीदगी से प्रदर्शित किया गया, उसमें दर्शकों के पास नज़रें हटाने या दोनों हथेलियों को एक साथ लाने तक का वक़्त नसीब नहीं हो पाया। पर्दा गिरने के बाद तालियाँ बजीं तो फिर देर तक बजती रहीं, बधाइयों का सिलसिला चलता रहा, पांडव और कौरव एक साथ मिलकर इस कामयाब प्रस्तुति से आह्लादित होते रहे।
ये भी पढ़ें-
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.