Ardhsatya Narendra-giri
(राणा यशवंत, मैनेजिंग एडिटर, इंडिया न्यूज)
प्रयागराज में बाघंबरी मठ के महंत और देशभर के संतों की सबसे बड़ी संस्था अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की मौत को लेकर खलबली सी है। ये इसलिए है कि हजारों करोड़ की जायदाद वाले मठ और संतों के मुखिया ने आत्महत्या कर ली या उनकी हत्या हो गई, यह सवाल अभी तक साफ नहीं है। कारण ये है कि जिन स्थितियों में मौत हुई, जिस तरीके से मौत हुई, उसके पहले जो कुछ चल रहा था और उसके बाद जो कुछ कहा जा रहा है- ये सब मामले को पेचीदा बना रहे हैं। लेकिन हर एक कड़ी को अगर आप सुलझाकर रखें और उसको एक दूसरे से जोड़ें तो महंत नरेंद्र गिरि की मौत का सच नकाब से झांकने लगता है। इसी आधार पर इंडिया न्यूज़ मौत के दिन से ही लगातार ये कह रहा है कि मामला हत्या का ज्यादा दिख रहा है और जो लोग सलाखों के पीछे हैं, उनसे कहीं अधिक और ताकतवर लोग परदे के पीछे हैं।
जब आप मौत के दिन की तस्वीरों पर जाते हैं तो कई सवाल खड़ा होते हैं। महंत नरेंद्र गिरि का शव ज़मीन पर पड़ा था। कमरे के अंदर पुलिस वाले और मठ के लोग हैं। ऊपर पंखा चल रहा है। उसकी रॉड जो छत से लगी है उससे नायलॉन की रस्सी बंधी है। इस रस्सी का दूसरा टुकड़ा टेबल पर पड़ा है और तीसरा हिस्सा नरेंद्र गिरि की गर्दन में है। पुलिस वाला दरवाज़ा तोड़ने वाले से सवाल कर रहा है कि तुमलोगों ने पुलिस को क्यों नहीं बुलाया? खुद से लाश क्यों उतार दी? वो कह रहा है कि साहब कुछ समझ नहीं आया उस समय, बस उतार दी।
नायलॉन की रस्सी के तीन टुकड़े कैसे हो गए किसी को नहीं पता। जिसने रस्सी काटने की बात कही वो कह रहा है कि हमने तो एक ही बार काटी थी। पंखा किसने ऑन किया या पहले से ऑन था ये भी नहीं पता है। ऑन पंखे से रस्सी बांधी तो जा नहीं सकती है! इसी कमरे में सल्फास की गोलियों की डिब्बी भी मिली जो सील्ड थी। मामला इतना ही नहीं है 72 साल के नरेंद्र गिरि गठिया के मरीज़ थे। चढ़ने उतरने में बहुत दिक्कत होती थी। ऐसे में बिस्तर के ऊपर कुर्सी लगाकर, उस पर चढ़कर, छत से पंखे की लगी रॉड से रस्सी बांधकर उन्होंने खुद को लटका लिया होगा, यह मानना मुश्किल है। जो लोग महंत नरेंद्र गिरि को जानते हैं उनका दावा है कि वे इतने कमोजर इंसान भी नहीं थे कि सुसाइड करें।
सवालों का सिलसिला खत्म ही नहीं होता। सबसे बड़ा संदेह को कथित सुसाइड नोट को लेकर पैदा होता है। उसके सभी तेरह पन्नों पर नरेंद्र गिरी के जो दस्तखत हैं वे आपस में ही एक दूसरे से नहीं मिलते। अगर इस साल मई में आनंद गिरी के साथ समझौते पर किए नरेंद्र गिरि के सिग्नेचर से कथित सुसाइड नोट के दस्तखत का मिलान करें तो वह एकदम अलग दिखता है। ऊपर से दो रंग की स्याहियों का इस्तेमाल और 13 सितंबर 2021 की तारीख को काटकर 20 सितंबर लिखना- सब किसी गहरी साजिश की तरफ इशारा करते हैं।
कथित सुसाइड नोट में जो लिखा गया है कि उसके मुताबिक महंत नरेंद्र गिरि तीन ही लोग से परेशान थे। आनंद गिरि, बड़े हनुमान मंदिर से पुजारी आद्यानाथ तिवारी और उनका बेटा संदीप तिवारी। इन तीनों से परेशान होकर वे 13 तारीख को ही सुसाइड करना चाहते थे, लेकिन कर नहीं पाए। फिर सवाल ये है कि 20 को हिम्मत कहां से आ गयी? उस कथित सुसाइड नोट में लिखा गया है कि आज यानी 20 सितंबर को मुझे पता चला कि आनंद गिरि किसी महिला के साथ मेरी अश्लील फोटो कम्प्यूटर से बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल करनेवाला है। सवाल ये है कि 20 को जब ऐसा कुछ पता चला कि जान देना ही एक मात्र रास्ता दिखा तो फिर 13 सितंबर को कौन सा कारण था कि महंत नरेंद्र गिरि सुसाइड करने जा रहे थे? सिर्फ तीन लोगों से परेशान होकर? हो ही नहीं सकता। ऐसी परेशानियां और इसतरह की लड़ाइयों तो वे दशकों से लड़ रहे थे।
आनंद गिरि की सोशल मीडिया पर जो तस्वीरें है वो उसकी रंगीन मिजाज़ी, ऐश, और ऐंठ की गवाही देती हैं। वो आदमी महंत नरेंद्र गिरि से लड़ रहा था, जायदाद के लिए टकराव मोले हुए था, उसका मठ और मंदिर में जाना नरेंद्र गिरि ने बंद कर दिया था- ये सब सही है, लेकिन शक इस बात का भी जताया जा रहा है कि आनंद गिरि के खराब व्यवहार और चरित्र की आड़ में कुछ और लोगों ने नरेंद्र गिरि से अपनी दुश्मनी ना साध ली हो। आनंद का एक पुराना वीडियो जो आजकल वायरल है, उसमें वह भी यही अंदेशा जता रहा है कि मेरे नाम पर कुछ लोग महंत जी से अपना हिसाब बराबर करने की फिराक में हैं।
संदेह के दायरे में बलबीर गिरि भी हैं जो बाघंबरी में ही रहते हैं। अपनी पिछली वसीयत में महंत नरेंद्र गिरि ने बलबीर गिरि को ही उत्तराधिकारी बनाया था। कथित सुसाइड नोट में इस बात का जिक्र है कि मैंने तुम्हारे नाम एक वसीयत रजिस्टर की है और जो लोग मेरी सेवा करते रहे हैं, उनका तुम ध्यान रखोगे। बलबीर गिरि ने सुसाइड नोट को लेकर पहले तो ये कहा कि हां यह लिखावट गुरु जी की ही है। लेकिन, जैसे ही दस्तखत को लकेर सवाल उठे, बलबीर गिरि पलट गए। बोले हमें नहीं पता ये जांच का विषय है।
अगर आप बलबीर गिरि की सोशल मीडिया पर चल रही फोटो देखें तो ये भी माचो मैन से कम नहीं दिख रहे। बीजेपी के पूर्व सांसद और राम जन्म भूमि न्यास के अध्यक्ष रहे महंत राम विलास वेदांती तो महंत नरेंद्र गिरि की मौत की साजिश में बलबीर गिरि को भी शामिल बता रहे हैं। सीबीआई जो जांच कर रही है, उसकी टीम प्रयागराज में है और वह बलबीर गिरि से भी पूछताछ करेगी, यह तय है।
बाघंबरी गद्दी मठ के अंदर कई बिल्डर और नेता भी पैठ बनाए हुए थे। जिस रोज महंत की मौत हुई उस दिन नरेंद्र गिरि के पास कुल 35 कॉल आई थी। इनमें से 18 पर उन्होंने बात की थी। बातचीत करने वालों में हरिद्वार के लोग और दो बिल्डर शामिल थे। सीबीआई ज़ाहिर है इसकी भी तहकीकात कर रही होगी। दरअसल प्रयागराज के अल्लापुर के जिस इलाके में बाघंबरी गद्दी मौजूद है वहां आस-पास की करीब आधे किमी. की बेशकीमती ज़मीन बिल्डर और नेताओं को बेच दी गई थी। ऐसे लग रहा है कि जायदाद को बेचने और महंत नरेंद्र गिरि से फायदा उठाने के लिये कुछ लोगों का गैंग काम कर रहा था। इसमें उनके चेले, नेता, बिल्डर और सुरक्षा में लोग शामिल थे। आपको इस बात से अंदरखाने की असलियत का अंदाजा लग सकता है कि महंत नरेद्र गिरि के गनर अभिषेक मिश्रा के पास कई लग्ज़री कारें और करोड़ों के बंगले हैं। दूसरा गनर अजय सिंह के पास प्रयागराज में 90-90 लाख रुपए के तीन फ्लैट अभी तक बताए जा रहे हैं। आगे और कितनी जायदाद सामने आएगी नहीं पता।
मठ की जायदाद को लेकर नरेंद्र गिरि और आनंद गिरि में जो लड़ाई चल रही थी उसे खत्म कराने और दोनों के बीच समझौता कराने में दो नेता और एक पुलिस वाला शामिल थे। कहा जा रहा है कि ये तीन लोग बीजेपी नेता सुशील मिश्रा, एसपी नेता और पूर्व दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री इंदू प्रकाश मिश्रा और आज की तारीख में मुरादाबाद में बतौर एएसपी तैनात ओपी पांडेय थे। इस सुलह में इनलोगों की क्या दिलचस्पी थी और सुलह से क्या हासिल हुआ, यह भी जांच का मामला है। दरअसल महंत नरेंद्र गिरि ना सिर्फ बाघंबरी मठ के महंत और प्रयागराज के बड़े हनुमान मंदिर के सर्वेसर्वा थे बल्कि निरंजनी अखाड़े के सचिव और प्रमुख भी थे। गद्दी, मंदिर औऱ अखाड़े की प्रयागराज और आसपास के जिलों में ही हजार करोड़ से पार की संपत्ति है। देश के बाकी हिस्सों में भी सैकड़ों करोड़ की जायदाद है। इतने बड़े साम्राज्य के वे इकलौते मालिक थे और इस पर कईयों की नज़र काफी समय से गड़ी हुई थी। इसलिए सीबीआई की जांच जैसे जैसे आगे बढेगी, बड़े-बड़े खुलासों के सामने आने की पूरी उम्मीद बनती है।