इंडिया न्यूज, नई दिल्ली: Bihar Fodder Scam Case: बिहार में सन् 1996 से सामने आया चारा घोटाला मामला देश का ऐसा घोटाला था जिसमें उस समय के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और विपक्षी नेता जगन्नाथ मिश्रा शामिल थे। (Lalu Prasad Yadav Convicted, Jagannath Mishra) जैसे-जैसे इस घोटाले की जांच की पर्तें खुलती गईं कई सफेदपोश नेता इसमें शामिल नजर आते गए।
आपको बता दें कि 15 फरवरी 2022 को सीबीआई कोर्ट ने चारा घोटाले के पांचवें केस (5th Fodder Scam Case) में भी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल (आरजीडी) प्रमुख लालू प्रसाद यादव को दोषी करार दिया है।। यह डोरंडा ट्रेजरी से जुड़ा है। डोरंडा ट्रेजरी से अवैध तरीके से 139.35 करोड़ रुपए निकालने का आरोप है। कोर्ट 21 फरवरी 2022 को इस मामले में सजा सुनाएगी। लालू को पहले ही चारा घोटाला के चार मामलों में दोषी ठहराया जा चुका है, लेकिन वह इन मामलों में जमानत पर बाहर हैं। तो चलिए जानते हैं कि कैसे नेता-अधिकारी मिलकर खा गए 950 करोड़ रुपए का चारा।
क्या है चारा घोटाला मामला?
जैसा कि आप जानते हैं कि चारा घोटाले की शुरुआत छोटे-छोटे मामलों से हुई। इसके बाद यह 55 से ज्यादा मामलों तक जा पहुंचा। हालांकि बाद में कई केस को मिलाकर एक साथ करने से इसकी संख्या काफी कम हो गई। यह मामला बिहार विभाजन से पहले 1992 से 1995 तक राज्य के सरकारी खजाने से गलत ढंग से 950 करोड़ रुपए निकालने का है।
इस दौरान पशुपालन विभाग के अफसरों ने नेताओं की मदद से नकली बिल के जरिए चारा, दवा और कृत्रिम गभार्धान उपकरण के नाम पर सरकारी खजाने से ये पैसे निकाले। इनमें से छह मामलों में लालू यादव को आरोपी बनाया गया था। साथ ही बिहार के विभाजन के बाद इनमें से पांच मामले झारखंड में ट्रांसफर कर दिए गए थे।
पहली बार मामला कब आया था सामने?
1979 में जब राम सुंदर दास बिहार के मुख्यमंत्री थे तभी से पशुपालन विभाग में इस तरह की हेरा-फेरी कर पैसे निकालने के अपुष्ट आरोप लगने लगे थे।
1992 में तत्कालीन विजिलेंस इंस्पेक्टर बिधू भूषण द्विवेदी ने पहली बार लालू और उनके पूर्ववर्ती जगन्नाथ मिश्रा के चारा घोटाले में शामिल होने की पहली रिपोर्ट डायरेक्टर जनरल जी नारायण को सौंपी थी। इंस्पेक्टर बिधू अब कई मामलों में गवाह भी हैं।
दिसंबर 1995 में कैग की रिपोर्ट आने के बाद चारा घोटाले की बात लोगों के सामने आई। लालू कुछ महीने पहले ही बिहार के दूसरी बार मुख्यमंत्री बने थे। उनके पास उस दौरान पशुपालन विभाग था। लालू ने ही कैग की रिपोर्ट भी पेश की थी।
कैग की रिपोर्ट में कहा गया था कि पशुपालन विभाग से लालू के कार्यकाल के दौरान बिलों की धोखाधड़ी के जरिए सरकारी खजाने से लगभग 950 करोड़ रुपये निकाले गए। इसके बाद लालू ने सतर्कता विभाग की जांच के आदेश दिए और मामले को विधानसभा की लोक लेखा समिति को भी सौंप दिया।
किस सन् में दिए गए जांच के आदेश?
1996 में भाजपा नेताओं सुशील कुमार मोदी, रविशंकर प्रसाद और सरयू राय तथा असंतुष्ट जनता दल के नेता शिवानंद तिवारी और कांग्रेस नेता प्रेम चंद्र मिश्रा की ओर से हाईकोर्ट में पांच पीआईएल दायर की। इन याचिकाओं को बाद में एक साथ कर दिया गया। मार्च 1996 में पटना हाईकोर्ट ने पीआईएल के आधार पर सीबीआई को इन अनियमितताओं की जांच का आदेश दिया।
24 जनवरी 1996 को चाईबासा (अब झारखंड में) के खजाने से 37.7 करोड़ रुपए धोखाधड़ी के जरिए निकाले जाने के मामले में पहली एफआईआर दर्ज की गई। इसे पश्चिमी सिंहभूम के उस समय के डिप्टी कमिश्नर अमित खरे ने दर्ज कराई थी। इसके बाद अन्य मामलों में भी पूरे बिहार के पुलिस थानों में एफआरआई दर्ज की गईं। इस घोटाले के दौरान बिहार के चार ट्रेजरी से फर्जी तरीके से पैसे निकाले गए। वे थे दुमका, चाईबासा, डोरंडा और देवघर।
लालू ने कब दिया सीएम पद से इस्तीफा?
19 मार्च 1996 को सीबीआई ने राज्यपाल एआर किदवई से मुख्यमंत्री लालू यादव पर मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी। जून 1997 में सीबीआई ने लालू और 55 अन्य आरोपियों के खिलाफ चाईबासा मामले में जालसाजी, आपराधिक साजिश और भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के तहत चार्जशीट दायर की। 25 जुलाई 1997 को एक कोर्ट ने इस मामले में लालू के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया। इसके बाद लालू ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया।
किस सन् में लालू गिरफ्तार हुए?
दिल्ली के पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना ने ही बिहार के चारा घोटाले की जांच की थी। अस्थाना ने ही लालू यादव के खिलाफ 1996 में चार्जशीट दायर की थी और 1997 में लालू यादव को गिरफ्तार किया था। इस दौरान उन्होंने लालू से 6 घंटे तक पूछताछ की थी।
किस-किस सन् में हुई सजा?
लालू को पहली सजा चाईबासा ट्रेजरी से फर्जी तरीके से 37.7 करोड़ रुपए निकाले जाने के मामले में हुई। इस मामले में पूर्व मुख्यंमत्री लालू प्रसाद यादव और जगन्नाथ मिश्रा तथा राजनेता जगदीश शर्मा, ध्रुव भगत इस मामले के आरोपियों में शामिल थे।
2012 में सीबीआई ने इस मामले में आरोप तय किए। इसके बाद सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने 2013 में लालू समेत 45 आरोपियों को दोषी करार देते हुए पांच साल जेल की सजा सुनाई थी।
23 दिसंबर 2017 को सीबीआई कोर्ट ने लालू को दूसरे मामले में दोषी ठहराया। यह मामला देवघर ट्रेजरी से 80 लाख रुपये से अधिक की अवैध निकासी का था। इस मामले में उन्हें साढ़े तीन साल कैद की सजा सुनाई गई, जबकि जगन्नाथ मिश्रा को बरी कर दिया गया।
24 जनवरी 2018 को लालू को तीसरे मामले में सजा हुई। यह मामला चाईबासा ट्रेजरी से 33.67 करोड़ रुपए फर्जी तरीके से निकालने का था। इस मामले में लालू को पांच साल जेल की सजा सुनाई गई।
मार्च 2018 में चौथा केस दुमका ट्रेजरी से फर्जी तरीके से 3.13 करोड़ रुपए निकालने का था। इस मामले में लालू यादव को सात साल जेल की सजा सुनाई गई।