India News (इंडिया न्यूज़), Bihar News : बिहार की राजनीति करवटें बदलती नजर आ रही है । जेडीयू और आरजेडी, शीट शेयरिंग के बहाने अंदरुनी कलह में है। आरजेडी के विधायक और सांसद के बीच कलह सार्वजनिक है। इसी तरह नीतीश कुमार के सामने जेडीयू के ही दो बड़े नेता ललन सिंह और अशोक चौधरी के बीच हुए तनातनी सबने देखा है। छन कर जो खबरें आई वो ये है कि बिहार सरकार में मंत्री और जेडीयू के वरिष्ठ नेता अशोक चौधरी के दामाद का नाम सायण कुणाल है। सायण कुणाल, आचार्य किशोर कुणाल के बेटे हैं।
आचार्य किशोर कुणाल की तमन्ना है, कि सायण कुणाल नवादा से बीजेपी के टिकट पर लोक सभा चुनाव लड़ें। इसी सिलसिले में अशोक चौधरी अपने दामाद के लिए लगातार बरबीघा का दौरा कर रहे हैं। ऐसे में वहां के लोकल जेडीयू विधायक सुदर्शन चौधरी की शिकायत पर ललन सिंह ने अशोक चौधरी को बरबीघा जाने से मना किया। इसी बात को लेकर ललन सिंह और अशोक चौधरी के बीच तनातनी हो गई। जाहिर है ऐसे मनमुटाव से सियासी गलियारे में हलचल पैदा होना स्वाभाविक है। क्योकि इससे राजनीति के बनते बिगड़ते रिश्ते नजर आने लगते हैं ।
इधर, आनंद मोहन एक बार फिर पुराने तेवर में दिख रहे हैं। राजपूत समाज का नेता बनना इनकी शुरू से चाहत रही है। अब बेटे को भी स्थापित करना है। इस वजह से ठाकुरों को लेकर लिखी गई कविता को इन्होंने मुद्दा बनाया है ।यह कितना कारगर है फिलहाल यह समय के गर्त में है। वैसे राजद के कुछ नेता कहते हैं, कि आनंद मोहन के लिए लालू जी ने जो किया उन्हें कृतज्ञ होना चाहिए। आरजेडी की कृपा से वह आज खुशहाल हैं।
आरजेडी न सिर्फ उनके बेटे चेतन आनंद को विधायक बनाया बल्कि उनकी पत्नी लवली आनंद को भी पार्टी में जगह दी। वैसे जेल से छूटने के बाद आनंद मोहन किसी पार्टी में नहीं है। लेकिन उनकी रिहाई के पीछे जदयू के साथ-साथ आरजेडी की भूमिका को भी ध्यान रखनी चाहिए। क्योंकि जेल मैनुअल में जो संशोधन किया गया उसमें लालू प्रसाद की भी रजामंदी थी। वैसे इस नए विवाद के पीछे कहा यह भी जाता है।
आनंद मोहन अपनी पत्नी लवली आनंद के साथ लालू प्रसाद यादव के घर मिलने गए थे। लेकिन लालू उनसे नहीं मिले और यही बात आनंद मोहन को नागवार लगा ।फिर कुछ दिनों बाद ठाकुर का कुआं मुद्दा मिल गया। यह आनंद मोहन को अनुकूल लगा और मनोज झा के कविता पढ़ने के मुद्दे पर आगबबूला हैं । उन्हें राज्यभर के राजपूतों के बीच यह संदेश देना है कि आरजेडी जानबूझकर ठाकुरों के अपमान के लिए कविता पढ़ी है।उन्होंने तर्क भी दिया कि महिला आरक्षण में ऐसी कविता की जरूरत क्या है।
वैसे लालू प्रसाद यादव ने आनंद मोहन के और उनके बेटे के वक्तव्य पर साफ-साफ कहा कि इन्हें अकल की कमी है । इस वजह से ऐसे टेढ़े-मेढ़े बयान देते और बेवजह गुस्सा दिखा रहे हैं। लेकिन सियासी गलियारे में यह बात भी चर्चा में है कि आरजेडी के विरोध के बहाने आनंद मोहन ने राजपूतों में अपनी पकड़ आजमाना चाहते है।
शायद वह देखना चाह रहे हैं कि मंडल कमीशन के दौर में उनकी जो छवि थी आज वह बरकरार है या नहीं । यह भी कहा जा रहा है कि कोशी क्षेत्र में आनंद मोहन अपनी पुरानी बिहार पीपुल्स पार्टी को फिर से जिंदा करना चाहते हैं ।
एक महीने बाद नवंबर में उन्होंने पटना में एक बड़ी रैली का आयोजन किया है। आने वाले समय में आरजेडी से आनंद मोहन कोई ताल्लुक रखता नहीं चाहते हैं। उस समय बाहुबली आनंद मोहन 1993 में बिहार पीपुल्स पार्टी की स्थापना की थी और तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव के खिलाफ मोर्चा भी खोला था।
फिर से आनंद अपने को उसी रुपवमे ढालना चाहते है। लेकिन एक कसक भी है क्युकी फिलहाल आनंद मोहन की रिहाई का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है यह याचिका दिवंगत कृष्णैया की पत्नी ने दायर किया है। उन्होंने गुजरात के बिलकिस बानो केस का हवाला दिया है। यानि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही आनंद मोहन अपना पता खोलेंगे।
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