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India News (इंडिया न्यूज़), Rashid Hashmi, Chandrayaan 3: भारत चांद के करीब है, चंदा मामा अब दूर के नहीं हैं। रूस का मून मिशन लूना-25 फेल हो गया है। ISRO की आंखों में चमक है, क्योंकि हमने संयम रखा है। पुतिन के रूस ने शॉर्टकट अपनाया, नतीजा लूना-25 क्रैश हो गया। भारत ने 40 दिन की तपस्या की और आज चंद्रयान-3 का ‘प्रज्ञान रोवर’ चांद की सतह पर उतरने को बेक़रार है। इसरो ने चंद्रयान-2 से सबक़ लिया है तभी तो प्लान-बी भी रेडी है। चांद पर उतरने से ठीक पहले अगर पैरामीटर दुरुस्त नहीं रहे तो चंद्रयान-3 की लैंडिंग टल भी सकती है और इसके लिए इसरो ने रिज़र्व डे भी तय किया है। किसी भी तरह की गड़बड़ी होने पर लैंडिंग चार दिन के लिए टाली भी जा सकती है। भारत ने अपने मून मिशन को फ़ोकस रखा है- चांद की सतह पर सॉफ़्ट लैंडिंग, रोवर को सतह पर चलाना और चंद्रमा पर मौजूद तत्वों की वैज्ञानिक जांच। मतलब बॉलीवुड का ‘खोया-खोया चांद, खुला आसमान’अब डिकोड होगा। साफ़ है कि ‘चौदहवीं का चांद हो या आफ़ताब हो’, चंद्रयान हर राज़ से पर्दा उठाएगा। कमाल अमरोही की फ़िल्म पाकीज़ा ने हिंदुस्तान से कहा था -‘चलो दिलदार चलो चांद के पार चलो’, अब इसरो चांद के पार ही तो ले जा रहा है।
अब शायरी से निकल कर कुछ सीरियस बात। दुनिया चांद के पीछे क्यों भाग रही है ? 600 करोड़ खर्च करके चंद्रमा पर क्या हासिल करना चाहता है भारत? इसका जवाब छिपा है पानी में। चौदह साल से नासा का अंतरिक्ष यान ‘लूनर रिकॉनिसेंस ऑर्बिटर’ चांद की परिक्रमा कर रहा है। नासा ने पता लगाया है कि चांद के कुछ बड़े गड्ढों में वॉटर आइस यानि पानी की बर्फ मौजूद है, जो संभावित रूप से जिंदा रहने के लिए काफ़ी है। 2020 में चीन के रोबोटिक Change-5 मिशन के दौरान धरती पर चांद की मिट्टी लाई गई। 3 साल पहले जब इस मिट्टी की जांच की गई तो पता चला कि कांच के इन गोलों के भीतर पानी के अणु मौजूद हैं। आपको जान कर हैरानी होगी, 2008 में लॉन्च हुआ भारत का चंद्रयान-1 चंद्रमा पर पानी के सबूत खोजने वाला पहला मिशन था। ये तो हुई पानी की बात- इसके अलावा चांद की ऊबड़खाबड़ सतह के नीचे क़ीमती धातुओं की संभावना भी प्रबल है। ये क़ीमती धातु है- सोना, प्लैटिनम, टाइटेनियम और यूरेनियम। चंद्रमा के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों में चट्टान और मिट्टी बहुत उपयुक्त साबित हो सकती हैं। ये शुरुआती सौर मंडल और पृथ्वी की उत्पत्ति के बारे में सुराग़ भी दे सकती हैं। इन सबके अलावा भविष्य में चांद को एक स्टेशन के तौर पर देखा जा रहा है। चांद की भौगोलिक स्थित पृथ्वी और मंगल ग्रह के बीच है। मतलब साफ़ है कि भविष्य में मंगल पर जाने के लिए चांद पर स्पेस स्टेशन की संभावना भी तलाशी जा सकती है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानि इसरो के मुताबिक भविष्य में सौर मंडल के बाहर ग्रहों को खोजने में चंद्रयान-3 बहुत महत्वपूर्ण होगा। धरती पर भूकंप की ही तरह चांद पर भी कंपन होता है, चंद्रयान-3 इसकी भी स्टडी करेगा। आपका एक और सवाल लाज़मी है- चांद पर पानी है तो क्या आगे ज़िंदगानी भी है ? आप अक्सर मज़ाक में पूछते हैं न कि अपना फ्लैट या प्लॉट भी चांद पर बुक होगा क्या ? इसका जवाब कुछ यूं है, भविष्य में चांद के ध्रुव पर कई मिशन भेजे जाएंगे। आने वाले सालों में चांद पर स्थायी आवास बनाने की भी योजना है। वैज्ञानिकों का मानना है कि एक बार पानी को सतह से निकालने में कामयाब हुए तो भविष्य में इंसानों की बस्ती भी बसाएंगे। चांद की सतह पर मौजूद बर्फ़ीले पानी की सतह अर्थव्यवस्था के लिए आधार तैयार करेगी। भविष्य में चांद पर रिसर्च करने वाले धरती पर लौटना चाहेंगे, तो वो पानी से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को अलग करके ईंधन के तौर पर इस्तेमाल कर सकेंगे। चीन ने पिछले साल दावा किया है कि उसे चांद पर नया खनिज मिल गया है जिससे वहां खेती करने में मदद मिलेगी। ‘चांग’ए-5 प्रोब 17 दिसंबर, 2020 को चीन के पहले चंद्रमा के नमूनों के साथ पृथ्वी पर लौटा था। 2 साल तक रिसर्च करने के बाद पता चला कि इन नमूनों में चेंजसाइट- (Y) नाम का क्रिस्टल असल में फॉस्फेट खनिज है। फॉस्फेट किसी भी पौधे की वृद्धि के लिए एक आवश्यक तत्व है, मतलब साफ़ है कि चांद पर खेती भी संभव है।
हिंदुस्तान इस वक़्त चांद की दहलीज़ पर खड़ा है। 2019 में भारत ने चंद्रयान 2 भेजा था, ऑर्बिट में पहुंचने के बाद लैंडर अलग भी हुआ, लेकिन फिर लैंडर के साथ संपर्क टूट गया। हमने साल 2019 से सबक़ लिया है। चंद्रयान-3 की सफलता का मतलब है कि भारत, अमेरिका, रूस और चीन के बाद चांद की सतह पर लैंडिंग करने वाला चौथा देश बन जाएगा। आपको जानकर हैरानी होगी कि चंद्रयान भारत को करोड़ों अरबों का बिज़नेस भी देगा। अब ‘चांद वाली अर्थव्यवस्था’ को समझिए- चांद पर लोगों को बसाने के प्लान तैयार हो रहे हैं, रिसर्च और यहां तक कि छुट्टी मनाने के लिए भी चांद पर बेस बनाने का ख़्वाब है। ‘प्राइस वॉटरहाउस कूपर’ का अंदाज़ा है कि चांद तक होने वाले ट्रांसपोर्टेशन का व्यापार 2040 तक 46 बिलियन डॉलर तक हो सकता है। 46 बिलियन डॉलर समझते हैं ना- 38,20,73,70,00,000 भारतीय रुपये।
इब्न-ए-इंशा लिखते हैं-‘कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा, कुछ ने कहा ये चांद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा’। बशीर बद्र की कलम कहती है- कभी तो आसमां से चांद उतरे जाम हो जाए, तुम्हारे नाम की इक ख़ूबसूरत शाम हो जाए’। अहमद कमाल परवाज़ी के अल्फ़ाज़ हैं- ‘मुझ को मालूम है महबूब-परस्ती का अज़ाब, देर से चांद निकलना भी ग़लत लगता है’। ये तो शायरों का चांद है, हम जैसे टीवी न्यूज़ वालों का चांद कुछ ऐसा है- चांद से नाता-भारत भाग्य विधाता, भारत बोला-चांद पर ‘चक दे इंडिया’, बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर-हमारा चांद, हिंद की मुट्ठी में चांद- जय जय हिंदुस्तान।
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