इंडिया न्यूज, नई दिल्ली :
Char Dham Road Project vs China : देशवासियों के लिए एक खुशनुमा खबर है कि चार धाम रोड के प्रोजेक्ट को सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी मिल गई है। इस मंजूरी से गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, और बद्रीनाथ को हर मौसम में संबंध जोड़ने वाली सड़कों से कनेक्ट किया जाएगा। चीन से तनावपूर्ण संबंधों के लिहाज से इसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है। हमारे रक्षा मंत्रालय ने आंतरिक और बाहरी सुरक्षा का हवाला देते हुए इन रास्तों से चीन की सीमा तक ब्रह्मोस मिसाइलों को ले जाने के लिए सड़कों की चौड़ाई बढ़ाने का अनुरोध किया था। इन सड़कों की चौड़ाई 10 मीटर करने की मंजूरी मिल गई है।
चार धाम रोड प्रोजेक्ट का उद्देश्य उत्तराखंड स्थित हिंदुओं के चार धामों गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ के लिए सभी मौसमों के लिए कनेक्टिविटी प्रदान करना है। 12 हजार करोड़ की लागत से 900 किमी लंबे चार धाम प्रोजेक्ट का निर्माण किया जाना है। इस प्रोजेक्ट से ऋषिकेश से गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को जोड़ने के लिए तीन नेशनल हाईवे बनाए जाने हैं। इन चारों स्थलों के लिए आॅल-वेदर कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए, जिन हाईवे का निर्माण होना है, उनमें-ऋषिकेश से माना, ऋषिकेश से गंगोत्री और टनकपुर से पिथौरागढ़ तक तीन हाईवे का निर्माण शामिल है। (Char Dham Road Project vs China)
चार धाम रोड प्रोजेक्ट में चौड़े रोड बनाने के लिए रक्षा मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट के सामने तर्क दिया था कि पूरे लाइन आॅफ एक्चयुअल कंट्रोल के आसपास चीन की गतिविधि बढ़ने की चिंता के बीच ब्रह्मोस मिसाइलों और अन्य मिलिट्री संसाधनों को चीन की सीमा तक ले जाने के लिए चार धाम प्रोजेक्ट में चौड़ी सड़कों का निर्माण किया जाना जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट में चार धाम प्रोजेक्ट की सुनवाई के लिए केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि ये दुर्गम इलाके हैं, जहां सेना को भारी वाहनों, मशीनरी, हथियार, मिसाइल, टैंक, टुकड़ियां और खाद्य सप्लाई ले जानी होती है। साथ ही हमारी ब्रह्मोस मिसाइल 42 फीट लंबी है और इसे ले जाने के लिए लंबे वाहनों की जरूरत पड़ती है। अटॉर्नी जनरल ने इस मामले में आगे तर्क दिया था कि भगवान न करें कि अगर लड़ाई शुरू हो जाती है। ऐसे में अगर सेना के पास हथियार ही नहीं होंगे तो वह इससे कैसे निपटेगी। हमें सावधान और सतर्क रहना होगा। हमें तैयार रहना है।” (Char Dham Road Project vs China )
ब्रह्मोस एक सुपरसॉनिक क्रूज मिसाइल है, जिसे पनडुब्बी, शिप, एयरक्राफ्ट या जमीन से भी छोड़ा जा सकता है। ब्रह्मोस मिसाइल का नाम भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मॉस्क्वा नदियों के नामों को मिलाकर बनाया गया है। ब्रह्मोस रूस की ओकिंस क्रूज मिसाइल टेक्नोलॉजी पर आधारित है। इस मिसाइल को भारतीय सेना के तीनों अंगों, आर्मी, नेवी और एयरफोर्स को सौंपा जा चुका है।
दुनिया की सबसे तेज और घातक क्रूज मिसाइलों में शामिल ब्रह्मोस का निर्माण भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन और रूसी के एनपीओ माशिनोस्ट्रोयेनिया के ज्वाइंट वेंचर के तहत बने ब्रह्मोस एयरोस्पेस की ओर से किया है। भारत और रूस ने फरवरी 1998 में ब्रह्मोस मिसाइलों के निर्माण के लिए करार किया था। ब्रह्मोस मिसाइलों का पहला परीक्षण जून 2001 में ओडिशा के चांदीपुर रेंज से किया गया था। (Char Dham Road Project vs China )
ब्रह्मोस मिसाइल के कई वर्जन मौजूद हैं। ब्रह्मोस के लैंड-लॉन्च, शिप-लॉन्च, सबमरीन-लॉन्च एयर-लॉन्च वर्जन की टेस्टिंग हो चुकी है। जमीन या समुद्र से दागे जाने पर ब्रह्मोस 290 किलोमीटर की रेंज में मैक 2 स्पीड से (2500किमी/घंटे) की स्पीड से अपने टारगेट को नेस्तनाबूद कर सकती है। इस मारक रेंज को बढ़ाकर 800 किलोमीटर तक करने का काम जारी है। वहीं, हवा से छोड़ने पर ब्रह्मोस 400 किलोमीटर रेंज तक मार कर सकती है। इस रेंज को बढ़ाकर 1500 किलोमीटर किए जाने पर भी काम चल रहा है।
दिसंबर 2021 में ब्रह्मोस मिसाइल को सुखोई-30 फाइटर प्लेन से दागे जाने का सफल टेस्ट किया गया है। एयर लॉन्च्ड ब्रह्मोस का वजन करीब 2.5 टन, रेंज 300 किलोमीटर और स्पीड मैक 2.8 (3500 किमी/घंटे) है। पनडुब्बी से ब्रह्मोस मिसाइल को पानी के अंदर से 40-50 मीटर की गहराई से छोड़ा जा सकता है। पनडुब्बी से ब्रह्मोस मिसाइल दागने की टेस्टिंग 2013 में हुई थी। इस मिसाइल के हाइपरसॉनिक वर्जन ब्रह्मोस का विकास जारी है और इसकी टेस्टिंग 2024 तक होने की उम्मीद है। ब्रह्मोस मिसाइल की रेंज 1500 किमी तक होगी और ये मैक 7-8 स्पीड (8500-9000 किमी/घंटे) से उड़ने में सक्षम होगी। ये दुनिया की सबसे तेज हाइपरसॉनिक मिसाइल होगी।
इसे जमीन, हवा, पनडुब्बी और युद्धपोत कहीं से भी दागा जा सकता है। क्रूज मिसाइल होने की वजह से यह जमीन से काफी कम, महज 10 मीटर की, ऊंचाई पर ही उड़ान भरती है। कम ऊंचाई पर उड़ने की वजह से ही यह रडार की पकड़ में नहीं आती है। ब्रह्मोस को ट्रैडीशनल लॉन्चर के अलावा वर्टिकल लॉन्चर से भी दागा जा सकता है। ब्रह्मोस का मॉडर्न वर्जन मेनुवरेबल तकनीक से भी लैस है। यानी, इसमें दागे जाने के बाद लक्ष्य तक पहुंचने के लिए रास्ता बदलने की भी क्षमता है। आमतौर पर मिसाइलें या लेजर गाइडेड बम पहले से तय लक्ष्य को ही निशाना बना पाते हैं, जबकि ब्रह्मोस मिसाइल दागे जाने के बाद भी अगर उसका लक्ष्य अपना स्थान बदल रहा है, तब भी उसे निशाना बना लेती है।
सरकार ने चार धाम रोड प्रोजेक्ट की सुप्रीम कोर्ट में सुनाई के दौरान लिए देश की सुरक्षा का हवाला देते हुए उत्तरी चीन सेना तक ब्रह्मोस मिसाइल ले जाने का हवाला देते हुए सड़कों को चौड़ा करने की इजाजत मांगी थी। चीन के साथ सीमा पर तनाव के दौर में भारत की ब्रह्मोस मिसाइलों की तैनाती ड्रैगन के लिए चिंता बढ़ाने वाली बात होगी। ब्रह्मोस मिसाइलों की तैनाती से निश्चित तौर पर चीन के कई शहर इस घातक क्रूज मिसाइल की जद में होंगे।
भारत ने जून 2021 में 290 किलोमीटर रेंज वाली ब्रह्मोस मिसाइल का लाइव टेस्ट किया था। हाल ही में सुखोई-30 के साथ ब्रह्मोस का टेस्ट किया गया है। भारत के ये सुपरसॉनिक मिसाइल ब्रह्मोस टेस्ट चीन को भारत की मिसाइल क्षमता का अंदाजा कराते रहते हैं। भारत के हाल ही में चीन के साथ लगने वाली सीमा पर अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख में ब्रह्मोस मिसाइल तैनात करने के फैसले की चीनी मीडिया ने कड़ी आलोचना की थी और इसे दोनों देशों के संबंधों में तनाव लाने की कोशिश करार दिया था। ब्रह्मोस की तैनाती को लेकर चीनी मीडिया के इस हंगामे को ही इस मिसाइल को लेकर चीन का डर माना जा रहा है।
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