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COVID Research पिछले दो सालों से पूरी दुनिया को प्रभावित करने वाला कोरोना वायरस रूप बदल-बदलकर वापस आ रहा है। अब साइंटिस्टों ने एक ऐसा मॉलिक्यूल विकसित किया है, जो सार्स सीओवी-2 वायरस की सतह से जुड़कर उसे ह्यूमन सेल्स में एंटर करने से रोकता है और कोविड को फैलने नहीं होने देता। डेनमार्क की आरहूस यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ मॉलीक्यूलर बायोलॉजी एंड जेनेटिक्स के रिसर्चर्स ने अपनी इस स्टडीमें पाया कि मॉलिक्यूल (अणु) का निर्माण उस एंटीबाडी से आसान व किफायती है, जिसका इस्तेमाल फिलहाल रैपिड एंटीजन टेस्ट और कोविड के इलाज में किया जा रहा है। आरहूस यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और इस स्टडी के मेन राइटर जॉर्गन जेम्स के अनुसार रैपिड टेस्ट में हमने नए एप्टैमर का परीक्षण शुरू किया है। उम्मीद है कि हम वायरस की बहुत कम सांद्रता का भी पता लगा सकेंगे।
स्टडी में इस मॉलिक्यूल (अणु) के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। यह यौगिकों की एक श्रेणी से संबंधित है, जिसे आरएनए एप्टैमर्स कहा जाता और उसी प्रकार के बिल्डिंग ब्लाक्स पर आधारित है, जिनका इस्तेमाल एमआरएनए वैक्सीन के निर्माण के लिए किया गया है। एप्टैमर, आनुवंशिक सामग्री डीएनए या आरएनए का टुकड़ा और तीन आयामों में मुड़ी हुई एक संरचना होती है। वह विशेष लक्षित मॉलिक्यूल की पहचान करता है। आरएनए एप्टैमर वायरस की सतह से जुड़कर उसके स्पाइक प्रोटीन को ह्यूमन सेल्स में प्रवेश करने से रोक देता है।
इससे पहले कोरिया के रिसर्चर्स ने ओमिक्रॉन वेरिएंट की पहचान के लिए मॉलिक्यूलर डायग्नोस्टिक टेक्नॉलॉजी विकसित की है। इसके दावा किया जा रहा है कि 20 मिनट में ही पता चल जाएगा कि व्यक्ति वायरस के ओमिक्रॉन वेरिएंट से संक्रमित है या नहीं। यह शोध हाल ही में पूरा हुआ है हालांकि अभी इसको दुनिया भर में पहुंचने में वक्त लग सकता है। पोच ने 10 तारीख को ऐलान किया कि केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर ली जंग-वूक के नेतृत्व में एक रिसर्ट टीम ने मॉलिक्यूलर डायग्नोस्टिक टेक्नॉलॉजी विकसित की है जो केवल 20-30 मिनट में ओमिक्रॉन वेरिएंट का पता लगा सकती है और इसका परिणाम ऑनलाइन जारी होगा। (COVID Research)
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