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इंडिया न्यूज, यशवीर कादियान:
(Devilal) ऐसा इतिहास में बहुत कम होता है कि कोई नेता सत्ता में कम समय के लिए ही रहा हो लेकिन उनका सम्मान सत्ता में लंबे समय तक रहे हुए नेताओं से बहुत अधिक हो। ऐसे ही एक युग पुरूष थे देवीलाल। देवीलाल यंू तो सात दशक से अधिक समय तक देश और प्रदेश की राजनीति में सक्रिय रहे,लेकिन सत्ता में कम समय ही रह पाए। वो दो दफा ही हरियाणा का सीएम बने। पहली दफा वर्ष 1977 में और फिर वर्ष 1987 में। दोनों दफा का उनका कुल कार्यकाल साढे चार बरस का ही रहा।
अगर उनके उपप्रधानमंत्री बनने के डेढ़ बरस के भी कार्यकाल को शमिल कर दिया जाए तो वो कुल छह बरस राजपाठ के मालिक रहे। वो हरियाणा के ऐसे नेता थे जो जनता के दिलों में धड़कते थे। जो जनता की नब्ज पर सीधा हाथ रखते थे। वो सही मायने में जननायक थे। उनको जनता ने सम्मानपूर्वक ताऊ का दर्जा दिया। उनमें गजब की सियासी सूझबूझ थी। 25 सितंबर,1914 को सिरसा के तेजाखेड़ा में जन्मे देवीलाल की इस शनिवार को 108वीं जयंती मनाई गई। 6 अप्रैल, 2001 को 86 बरस की आयु में उनका निधन हो गया। इस मौके पर उन पुण्य आत्मा को नमन करते हुए उनके व्यक्तित्व के कुछ पहलुओं को याद कर लेते हैं।
स्वंत्रता सेनानी परिवार में पैदा हुए देवीलाल अंडर मैट्रिक थे। इसकी एक वजह ये भी थी कि वो छात्र जीवन से ही आजादी की लड़ाई में सक्रिय हो गए थे। उनको जेल भी जाना पड़ा। शुरूआत में वो कांग्रेसी थे और 1952 में कांग्रेस की टिकट पर संयुक्त पंजाब में विधायक बन गए थे। उसके बाद वो दोबारा 1962 में विधायक बने और हरियाणा का गठन करने की वकालत करने वालों में अग्रणी थे।
एक खूबी जो उनको अन्य नेताओं से अलग करती थी वो थी बड़े नेताओं से टकराना। उनके खिलाफ चुनाव लड़ना। मसलन वर्ष1972 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसीलाल के खिलाफ तौशाम और एक अन्य नेता भजनलाल के खिलाफ आदमपुर से विधानसभा का चुनाव लड़ा। दोनों जगह से ही उनकी करारी हार हुई,लेकिन इस से उनके हौसलों पर असर नहीं पड़ा।
आपातकाल का विरोध करने वालों में अग्रणी थे और इसलिए उनको जेल में भी रहना पड़ा। पहली दफा उनकी सरकार वर्ष 1977 में बनी और महज दो बरस ही चल सकी। भजनलाल ने उनकी पार्टी के विधायकों को तोड़ लिया और खुद मुख्यमंत्री बन बैठे। ऐसा ही देवीलाल के साथ वर्ष1982 में हुआ, जब उनके पास कांग्रेस के मुकाबले संख्या बल अधिक था और उनको तत्कालीन राज्यपाल जीडी तपासे ने सरकार बनाने के लिए निमंत्रित भी कर थी कर दिया था कि अचानक ही भजनलाल को सीएम पद की शपथ दिला दी गई। भजनलाल ने फिर से देवीलाल के विधायक तोड़ लिए। बहुमत साबित किया और ठाठ से राज किया।
देवीलाल जनता में तो लोकप्रिय थे,लेकिन इस हद तक कुशल प्रशासक-तिगड़मबाज नहीं थे कि अपने विधायकों को साथ बांधे रख सकें। वो विधायकों की परवाह नहीं करते थे। ना उनको सत्ता का लोभ था। राज आने पर वो ज्यादा हर्षित नहीं होते थे और कुर्सी जाने पर निराश नहीं होते थे। राजीव गांधी-के साथ संत हरचंद सिंह लौंगवाल के साथ हुए समझौते के खिलाफ उन्होंने हरियाणा में न्याय युद्ध छेड़ा। उस समय में वो अपनी लोकप्रियता के शिखर पर थे। इसी का परिणाम था कि वर्ष1987 के विधानसभा चुनाव में 90 में से 85 सीटों पर कांग्रेस की हार हुई।
देवीलाल ने सीएम बन कर राजीव गांधी की केंद्र सरकार को उखाड़ फेंकने का ऐलान किया और उन्होंने विपक्ष को एकजुट करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने आंध्रप्रदेश में एनटी रामाराव के लिए चुनाव प्रचार किया तो तमिलनाडु में डीएमके के एम.करूणानिधि के लिए वोट मांगे। बेशक देवीलाल को तेलुगू और तमिल भाषा की जानकारी नहीं थी,लेकिन उनका व्यक्तित्व ऐसा था कि वहां की जनता ने उनके कहे को हाथो हाथ लिया। ये दोनों नेता सीएम बने। देवीलाल ने एक रथ पर सवार हो कर देश भर में कांग्रेस के खिलाफ प्रचार किया। तब के चुनाव में नारा लगता था: ताउऊ पूरा तोलेगा-लालकिले से बोलेगा।
वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव के बाद जनता दल की संसदीय दल की मीटिंग में देवीलाल को ही नेता चुना गया था। नेता चुनते ही देवीलाल ने कहा कि वो अपना पीएम का ताज वीपी सिंह के सिर पर रखते थे। दरअसल तब चंद्रशेखर ने ऐलान कर दिया था कि वो भी जनता दल संसदीय दल के नेता का चुनाव लड़ेंगे। चंद्रशेखर को प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए अरूण सिंह ने पूरी स्क्रिप्ट लिखी और इसके लिए देवीलाल के कंधे को इस्तेमाल किया गया।
चंद्रशेखर खुद के साथ हुए इस धोखे के कारण संसदीयदल की मीटिंग से वाकआउट कर गए। 2 दिसंबर,1989 को वीपी सिंह ने प्रधानमंत्री और देवीलाल ने उपप्रधानमंत्री पद की शपथ ली। बाद में देवीलाल की वीपी सिंह के साथ भी खटपट हो गई और वो सरकार गिराने की साजिश में सक्रिय हो गए। वीपी सिंह की सरकार गिरने के बाद 10 नवंबर,1990 चंद्रशेखर पीएम बने तो देवीलाल ने उनके उनके साथ डिप्टी पीएम की शपथ ली। इस पद पर वो 21 जून, 1991 तक रहे।
उपप्रधानमंत्री पद से हटने के बाद देवीलाल का सियासी सूर्य अस्त सा हो गया। वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव में रोहतक से वो नए नवेले भूपेंद्र हुड्डा से हार गए, तो विधानसभा चुनाव में घिराय सीट से उनको एक 27 वर्षीय नवयुवक प्रौ.छत्तरपाल ने पटखनी दे दी। इस हार के बाद वो कभी नहीं उबर सके। हुडडा के खिलाफ उन्होंने वर्ष1996 और वर्ष 1998 में रोहतक लोकसभा का चुनाव लड़ा,लेकिन वो जीत न सके। बाद में वो राज्यसभा के लिए निर्वाचित हो गए।
जब वर्ष 1987 में वो सीएम बने तो उनके बेटे रणजीत सिंह उनके साथ कैबिनेट मंत्री बने,ओमप्रकाश चौटाला जनता दल के पदाधिकारी थे और एक अन्य बेटे प्रताप चौटाला को उन्होंने एक सरकारी निगम का चेयरमैन बना दिया। अपने घर-कुनबे के लोगों को इतने पदों पर आसीन करने की आलोचना करते हुए पत्रकारों ने उनसे सवाल पूछा तो वो कहने लगा कि अगर मैं अपने बेटे को मंत्री-चेयरमैन नहीं बनाऊंगा तो क्या आपके बेटे को बनाऊंगा? राजनीति में परिवारवाद को बढावा देने के आरोपों का वो खुल कर बचाव करते हुए कहते थे कि जब एक डाक्टर का बेटा डाक्टर,वकील का बेटा वकील हो सकता है तो नेता का बेटा नेता क्यंू नहीं?
मुख्यमंत्री बनते ही वर्ष1987 में उन्होंने समाजिक कल्याण के लिए अनेकों योजनाएं शुरू की। किसानों और छोटे दुकानदारों का कर्जा माफ किया। बुढापा-विधवा-विकलांगों के लिए 100 रूपए मासिक पैंशन शुरू की। चुनाव प्रचार के दौरान जब वो कर्जा माफी का वादा करते तो तब की सरकार के नेता कहते कि कर्जा माफ करना मुमकिन नहीं है। अगर ऐसा करना आसान होता तो वो आज ही ये काम कर देते। इस का जवाब देवीलाल अपनी चुनावी जनसभाओं में कुछ यंू देते: मैं विधानसभा में भेड़-बकरियां चराने नहीं जा रहा। कानून बनाने जा रहा हूं । कागज पर लिख दूंगा कि कर्जा माफ और नीचे लिख दूंगा देवीलाल। बोलो यूं करते ही थारा कर्जा माफ होगा के नहीं?
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देवीलाल बहुत बड़े दिल के नेता थे और संभवत:हरियाणा के सबसे लोकप्रिय नेता भी। बदले की भावना उनके आस पास भी नहीं थी और वो राज का दुरूपयोग अपने विरोधियों को सबक सिखाने के लिए नहीं करते थे। उन्होंने रानजीति में गरीबों,पिछडों,शोषितों और अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों को सरपरस्ती दी।
उनको आगे बढाया। जो लोग कभी पंच-सरपंच बनने की नहीं सोच सकते थे उनको विधायक-सांसद-मंत्री और राज्यपाल बनाया। वो अपने भाषणों में कहते भी थे कि ये शरद यादव को देख लो, इसके पास पहनने के लिए कपड़े तक नहीं थे और इसको मैंने कें्रदीय कपड़ा मंत्री बना दिया। ये धनिक लाल मंडल को देख लो, इसके पास खाने के लिए अन्न नहीं था और मैंने इसको गर्वनर बना दिया।
देवीलाल के आखिरी दिन उनके लिए कष्टदायी रहे। उनको शूगर,समेत कई बीमारियों ने घेर लिया था। उनके सुपुत्र ओमप्रकाश चौटाला वर्ष 1999 में हरियाणा के सीएम बन चुके थे। उनके दो पोते अजय सिंह भिवानी से लोकसभा सांसद और अभय सिंह रोड़ी से विधायक हो गए थे। ये विडंबना ही थी कि उनके परिवार के कई सदस्य मर्सडीज और ऐसी ही आरामदायक व महंगी गाड़ियों में चलते थे,लेकिन देवीलाल एक खटारा सी टाटा सूमो में ही सफर करते थे। फिजी के पूर्व प्रधानमंत्री महेंद्र चौधरी के सम्मान में रोहतक में हुए नागरिक अभिनंदन में देवीलाल उसी खटारा टाटा सूमा में आए थे। तब उनकी हालत काफी दयनीय थी।
उम्र हावी हो चुकी थी और चलने-फिरने, उठने-बैठने, बोलने में उनको कठिनाई हो रही थी। आखिरी दिनों में मेरा भी देवीलाल जी से मिलना हुआ। एक दफा उनसे सवाल पूछा गया कि उनका कुनबा राजपाठ का मालिक है। क्या उनकी अब भी कोई इच्छा बची है? इस पर वो कहते कि एक तो मेरा मीठा खाने को मन बहोत करता है, जो मुझे अब कोई देता नहीं। दूसरा, मैं अब अकेलापन खूब महसूस करता हंू। ये ठीक है कि उनकी जयंती पर उनको विभिन्न कारणों से याद किया जाता है, और किया जाता रहेगा,लेकिन अपने आखिरी दिनों में वो और ज्यादा बेहतर पाने के हकदार थे।
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