इंडिया न्यूज, चंडीगढ़: Farmer Protest in Punjab: पंजाब में एक बार फिर से किसान आंदोलन के मूढ़ में हैं। इस बार लड़ाई केंद्र सरकार से नहीं बल्कि पंजाब के लोगों द्वारा हाल ही में चुनी गई आम आदमी पार्टी की नई प्रदेश सरकार से है। किसान एक बार फिर से पूरी तैयारी के साथ राजधानी के बॉर्डर पर पहुंच गए हैं।

इस बार ये बॉर्डर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का नहीं बल्कि प्रदेश की राजधानी चंडीगढ़ का है। दो दिन से किसान मोहाली में चंडीगढ़ बॉर्ड पर डटे हुए हैं। हालांकि मुख्यमंत्री भगवंत मान ने किसान नेताओं को बातचीत के लिए सीएम हाउस बुलाया है। किसानों की सीएम से कुछ ही देर में बैठक शुरू होगी। अब सभी की निगाहें किसान नेताओं और मुख्यमंत्री के बीच होने वाली बैठक पर लगी हुई हैं।

किसान नेताओं ने सरकार को चेताया

सीएम से बैठक शुरू होने से पहले किसान नेताओं ने ब्यान दिया कि उनकी बैठक यदि सफल नहीं होती है तो वे आंदोलन को तेज करते हुए चंडीगढ़ में प्रवेश करेंगे। किसान नेताओं ने सीधी चेतावनी देते हुए कहा कि यदि वे बैरिकेड तोड़ सकते हैं तो वे कुछ भी तोड़ सकते हैं। उन्होंने सरकार से वादाखिलाफी का आरोप लगाया और कहा कि मुख्यमंत्री मान ने उन्हें 10 दिन के अंदर उनकी मांगे मानने का आश्वासन दिया था लेकिन मांगें नहीं मानी गई।

आखिर किसान क्यों सड़कों पर उतरे

इस बार मौसम की मार गेहूं पर पड़ी तो प्रदेश के किसान की आर्थिक हालत पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। प्रदेश में बड़े पैमाने पर पैदावार इतनी कम हुई कि किसानों का खर्च भी पूरा नहीं हो पाया। पहले से ही कर्ज के बोझ तले दबे किसानों ने सरकार से 500 रुपए प्रति क्विंटल स्पेशल बोनस की मांग की।
सरकार ने उनकी मांग तो मान ली लेकिन इसपर कोई नोटिफिकेशन जारी नहीं किया गया। जिसके चलते किसानों को यह अनुमान हो गया कि सरकार उनकी मांग पूरी नहीं करेगी। इसके लिए किसानों ने सरकार को 17 मई तक का अल्टीमेटम दिया लेकिन सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। जिसके बाद किसान एक बार फिर से आंदोलन के लिए मजबूर हो गए।

क्या राजनीतिक पार्टियों का किसानों से संबंध केवल वोट तक

पंजाब एक कृषि प्रधान राज्य है। देश के कुल अन्न उत्पादन में प्रदेश का अपना खास स्थान है। यहां पर बहुत बड़ी संख्या में लोग कृषि या फिर कृषि से जुड़े सहायक धंधों से जुड़े हुए हैं। प्रदेश में जब भी चुनाव का समय आता है तो हर पार्टी किसानों को लेकर बड़े-बड़े दावे करती है।

इसका उदाहरण शिरोमणि अकाली दल व भाजपा गठबंधन में बनी सरकार व पिछली कांग्रेस सरकार से लिया जा सकता है। जिन्होंने चुनाव घोषणा पत्र में किसानों के ऋण माफ करने के साथ-साथ किसानों का जीवन स्तर उठाने के बड़े-बड़े वादे किए थे। चुनाव जीतने के बाद ये सरकारें उन वादों को पूरा नहीं कर सकी और इसका नुकसान अगले चुनाव में उन्हें भुगतना पड़ा।मान ने किया था रंगला पंजाब बनाने का वादा

वर्ष 2022 के शुरू होते ही भगवंत सिंह मान के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी ने चुनाव लड़ा। इस चुनाव में आम आदमी पार्टी ने नए सिरे से किसानों से वादे किए। पिछली सरकारों द्वारा किए गए वादों के साथ-साथ कुछ नए वादे भी पंजाब की जनता से किए। जिनमें फ्री बिजली, किसानों का ऋण माफ और महिलाओं को एक-एक हजार रुपए प्रति माह देना था।
मान ने लोगों से वादा किया कि वे पंजाब को एक बार फिर से रंगला पंजाब बना देंगे। इस पंजाब में हर वर्ग खुशहाल जीवन व्यतीत करेगा। अब सरकार के दो माह बीतते ही किसान, बेरोजगार युवक व कच्चे कर्मचारी सभी मांगों को लेकर सड़कों पर उतर रहे हैं।

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