Human Movie Review In Hindi ड्रग टेस्टिंग के जरिए लोगों के साथ हो रहा धोखा दर्शाती है ‘ह्यूमन’ वेब सीरीज

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली

Human series: इस दुनिया में किसी भी व्यक्ति को कोई भी बीमारी हो उसके उपचार होने के बाद ठीक होने की उम्मीद हर किसी को रहती है। लेकिन यही उपचार व्यक्ति को मौत के मुहं तक ले जाए तो फिर सोचो क्या हो? डिजनी प्लस हॉटस्टार की नई वेबसीरीज ‘ह्यूमन’ (human) इन्हीं सब सवालों के जवाब देती नजर आती है। इस वेबसीरीज का निर्देशन विपुल अमृतलाल शाह और मोजेज सिंह ने किया है।

ह्यूमन के हैं 10 एपिसोड

Disney+Hotstar: इस सीरीज के दस एपिसोड हैं। ये सीरीज भारत में ह्यूमन ड्रग परीक्षण पर आधारित एक मेडिकल थ्रिलर है। इस सीरीज एक्ट्रेस शेफाली शाह (Shefali shah) और कीर्ति कुल्हारी (Kirti Kulhari) के साथ विशाल जेठवा (Vishal Jethwa), राम कपूर (Ram Kapoor), सीमा बिस्वास (Seema Biswas), आदित्य श्रीवास्तव, Indraneil Sengupta और मोहन अगाशे सहित कई दिग्गज कलाकार शामिल हैं। सस्पेंस थ्रिलर, ह्यूमन, दवाओं की दुनिया और हत्या, रहस्य, वासना और हेरफेर की कहानी के अप्रत्याशित रहस्यों को उजागर करती है।

क्या है ह्यूमन की कहानी Human series review

यह कथा-पटकथा बांधती है। कई जगह डायलॉग ध्यान खींचते हैं। जैसे: दुख भी अजीब करवट लेता है, कभी रुलाता है कभी पत्थर बना देता है, प्यार हमेशा दर्द देता है, यह बात हमें कभी भूलनी नहीं चाहिए। ह्यूमन देख कर आप सोच में पड़ सकते हैं कि क्या कामयाब डॉक्टरों की जिंदगी ऐसी होती है।

दवाओं के ह्यूमन पर प्रयोग पर आधारित है वेब सीरीज

सीरीज बताती है कि कैसे नई दवाओं को बाजार में लाने से पहले इंसानों पर उसके प्रयोग किए जाते हैं। कैसे दवाओं के परीक्षण में हिस्सा लेने वाले व्यक्ति कंपनियों और डॉक्टरों के लिए नोट छापने की मशीन में बदल जाते हैं और लालच की कोई सीमा नहीं रहती। ऐसा नहीं कि दवा-परीक्षण के वैध रास्ते नहीं है। इसके बावजूद निजी दवा कंपनियां मुनाफे की खातिर लोगों की जान से खेलती हैं और कई बार इसमें बड़े अस्पताल और सम्मानित डॉक्टर तक शामिल रहते हैं।

ह्यूमन की कहानी की खासियत

कहानी की शुरूआत समाज के वंचित वर्ग पर अवैध नशीली दवाओं के परीक्षण से होती है। वह इन परीक्षण के बहाने एक डॉक्टर की महत्वाकांक्षा और सनक की कहानी दिखाती है। यह भोपाल (मध्य प्रदेश) के एक बड़े अस्पताल मंथन की सर्वेसर्वा डॉ.गौरी नाथ (शेफाली शाह) और अस्पताल में नई आई डॉ. सायरा सभरवाल (कीर्ति कुल्हारी) को केंद्र में रख कर दवा ट्रायल की सच्चाई को दिखाने की कोशिश करती है।

इस कहानी में डॉक्टरों और परीक्षण के लिए उपलब्ध इंसानों के साथ उद्योगपति, धनपति और राजनेता भी शामिल हैं। ह्यूमन दिखाती है कि दिल के मरीजों की नई दवा एस93आर का प्रयोगशाला में गिन पिग्स के साथ-साथ शिविरों में इंसानों पर परीक्षण हो रहा है। दवा में खामियां हैं।

बताया जाता है कि कहानी तब उलझती है जब परीक्षण शिविर से बाहर एक गरीब युवक मंगू (विशाल जेठवा) की मां पर इस दवा का रिएक्शन होता है। वह तड़प-तड़प कर मर जाती है। मंगू जैसे और भी लोग हैं, जिनके परिवारों ने दवा के परीक्षण के खराब नतीजे भुगते हैं।

अब यहां सवाल यह है कि दवा का रिएक्शन से मरे पीड़ितों को मुआवजा और न्याय कौन देगा। गैर-कानूनी ढंग से परीक्षण कर रहीं दवा कंपनियां और भ्रष्ट डॉक्टरों का कैसे फदार्फाश होगा व कैसे पकड़े जाएंगे। इन्हें सजा कैसे मिलेगी। यहां न्यूरोसर्जन डॉ. गौरी नाथ का सीधा संबंध एस93आर विकसित कर रही कंपनी से है।

क्या वह नाकाम दवा और अवैध परीक्षण की जिम्मेदारी लेंगी। साथ ही डॉ.गौरी नाथ अपनी देखरेख में न्यूरो-संबंधी एक अन्य दवा भी विकसित करा रही हैं, जिसके अवैध परीक्षण दस युवा लड़कियों पर चल रहे हैं। लड़कियों को बंधक बनाकर रखा गया है। इसका नतीजा क्या होगा। यह भी कहानी का एक प्रमुख ट्रैक है। ह्यूमन में डॉ.गौरी नाथ, डॉ. सायरा सभरवाल और मंगू की निजी जिंदगियों के ट्रेक समानांतर चलते हैं।

ह्यूमन का इशारा मेडिकल सिस्टम पर

यह बात तो तय है कि इस सीरीज को देख कर आप पूरे मेडिकल सिस्टम पर अंगुली नहीं उठा सकते। लेकिन यह इशारा समझना होगा कि मानव-सेवा की आड़ में कैसे पैसे, भ्रष्टाचार और राजनीति का बोलबाला है। यह एक जाल है, जिसमें ज्यादातर कीड़े-मकोड़े की जिंदगी जीने वाले गरीब और अभावग्रस्त लोग फंसते हैं।

इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि दुनिया भर के ह्यूमन ट्रायल बाजार में भारत सबसे सस्ती दवा-प्रयोगशालाओं में है। चीन के बाद सर्वाधिक दवा-ट्रायल भारत में होते हैं। लेकिन यहां होने वाले हादसों को देख कर कहा जा सकता है कि ह्यूमन-ट्रायल मैदान के खिलाड़ी कहने को इंसान हैं, मगर अमानवीय हैं। संवेदनहीन हैं, एक हद के बाद क्रूर भी हैं, जो कई बार प्रयोग में शामिल इंसानों को इंसान नहीं समझते।

ह्यूमन की कहानी आज के समाज को आईना दिखाती है। आखिर कैसे रुपयों के लालच ने इंसान को संवेदनहीन बना दिया है। क्यों चंद रुपयों के लालच में आकर लोग दूसरों की जिंदगी से खेल रहे हैं? दवाओं के ह्यूमन ट्रायल के लिए गरीब तबके लोगों को निशाना बनाया जाता है।

अब सवाल ये उठता है कि आखिर कब तक आम जनता को इससे दो-चार होना पड़ेगा? ह्यूमन की कहानी हमारे आसपास की ही लगती है और हम सभी इससे आसानी से समझ सकते हैं कि कैसे लालच के वशीभूत होकर कुछ लोग पूरे समाज की बलि चढ़ाने से पीछे नहीं हटते हैं।

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