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India News ( इंडिया न्यूज), Parliament Special Session: आज से संसद का 5 दिन का विशेष सत्र है, पहले विपक्ष ने आरोप लगाया कि एजेंडा क्यों नहीं बताया और जब एजेंडा बता दिया तो 28 दलों के विपक्षी गठबंधन INDIA को लगता है कि मोदी कोई सरप्राइज़ देंगे। बीजेपी और कांग्रेस ने अपने अपने सांसदों को व्हिप जारी करके कह दिया है कि 18 से 22 सितंबर तक संसद में मौजूदगी निश्चित करें। मोदी सरकार ने विशेष सत्र का एजेंडा क्लियर कर दिया है। लोकसभा और राज्यसभा में कुल 4 बिल पेश किए जाएंगे- पोस्ट ऑफिस बिल 2023, मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से जुड़ा बिल, एडवोकेट्स अमेंडमेंट बिल 2023 और प्रेस एवं रजिस्ट्रेशन ऑफ पीरियॉडिकल्स बिल 2023। कांग्रेस ने नैरेटिव सेट करके कहा है कि ये विपक्ष का दबाव है जो एजेंडा बताया गया। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, “सोनिया गांधी के दबाव के बाद एजेंडा जारी किया गया” आप मान कर चलिए कि 5 दिन के विशेष सत्र में गर्मी होगी।
5 दिन के विशेष सत्र में NDA Vs I.N.D.I.A. का लिटमस टेस्ट भी होना है। 2024 के चुनाव से पहले I.N.D.I.A. वाले अब नई संसद में ताक़त दिखाने की फ़िराक़ में हैं। चार दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश में INDI गठबंधन पर सबसे बड़ा हमला करते हुए कहा- “इन लोगों ने INDI अलायंस बनाया है। इसे कोई घमंडिया गठबंधन भी कह रहा है। उनका छिपा हुआ एजेंडा है, इनकी नीति है भारत की संस्कृति पर हमला करने की। ये लोग सनातन को टारगेट कर रहे हैं। सनातन परंपरा को समाप्त करने की सोच रहे हैं। गांधी, लक्ष्मीबाई ने सनातन से प्रेरणा ली थी, लेकिन ये घमंडिया गठबंधन के लोग सनातन को खत्म करना चाहते हैं, सनातन को तहस नहस करना चाहते हैं।” मतलब साफ़ है कि सनातन विवाद की तपिश संसद सत्र में नज़र आएगी।
संसद के विशेष सत्र में सबसे बड़ा विवाद मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और बाक़ी चुनाव आयुक्तों (ECs) की नियुक्ति को रेगुलेट करने से जुड़े बिल पर होगा। इस बिल पर राज्यसभा में 10 अगस्त को चर्चा हो चुकी है। मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक के मुताबिक EC की नियुक्ति तीन सदस्यों का पैनल करेगा, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और एक कैबिनेट मंत्री शामिल होंगे।
विपक्ष इसी विधेयक पर लाल है, उसका सवाल है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के आदेश के ख़िलाफ़ बिल लाकर उसे कमज़ोर करने में क्यों लगी है। सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2023 में एक आदेश में कहा था कि मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रधानमंत्री, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और विपक्ष के नेता की सलाह पर राष्ट्रपति करें। सर्वोच्च अदालत के आदेश से पहले चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की पूरी प्रोसेस केंद्र सरकार के हाथ में थी। आम आदमी पार्टी इस बिल को लेकर सबसे ज़्याद मुखर है, अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं, “इस बिल के ज़रिए सरकार सुप्रीम कोर्ट का एक और फैसला पलटने जा रही है।”
जब तक एजेंडा नहीं आया तब तक ढेर सारे क़यास लगे। एक ख़बर आई कि ‘एक देश-एक चुनाव’ को लेकर सरकार बिल लाएगी तो एक अफ़वाह ये भी उड़ी कि अब देश का सिर्फ एक नाम ‘भारत’ रखने को लेकर सरकार प्रस्ताव लाएगी। विपक्ष ऐसी ख़बरें फैला कर ये बताने की कोशिश में है कि उनका अस्तित्व ज़िंदा है, लेकिन सच ये है कि ऐसी ख़बरें ‘राष्ट्रवाद’ की चाशनी में लिपटी होती हैं जिनका सीधा फ़ायदा भारतीय जनता पार्टी को होता है। सत्र भले ही पांच दिन का हो, लेकिन शक्ति परीक्षण और शक्ति प्रदर्शन तय है।
ख़ैर विवादों से अलग 140 करोड़ के भारत को इस सत्र से नया संसद भवन समर्पित होने जा रहा है। नई संसद की इमारत के गजद्वार पर झंडा फहराया जा चुका है। नया संसद भवन 29 महीने में बनकर तैयार हुआ, 64,500 वर्गमीटर में बना हुआ है जिसे बनाने में 862 करोड़ रुपये की लागत आई है। पुराने संसद भवन में लोकसभा में 545 और राज्यसभा में 245 सांसदों के बैठने की जगह है, जबकि नए भवन में लोकसभा चैम्बर में 888 सांसद बैठ सकते हैं। संयुक्त संसद सत्र की स्थिति में 1,272 सांसद बैठ सकेंगे। लोकतंत्र के नए मंदिर की शुरुआत उत्सव जैसी होनी चाहिए।
पार्टी लाइन से ऊपर उठ कर भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसदों को इस उत्सव में शिष्टाचार दिखाने की भी ज़रूरत है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे नई संसद के ध्वजारोहण पर नहीं आए, काफी देर से आमंत्रण मिलने पर निराशा भी ज़ाहिर की। मेरा मानना है कि नए संसद में बुलंद भारत की नई शुरुआत होगी, ऐसे में विवाद से बचना चाहिए। 5 दिन का सत्र है, नए संसद भवन में क़ानून बनाने वाले बैठेंगे। याद रखिए कि देश आपकी तरफ़ उम्मीद भरी निगाह से देखेगा।
संकल्प लीजिए कि नए भवन में संसद सुचारू रूप से चले, संकल्प लीजिए कि विकास के विधेयक में बाधा ना आए, संकल्प लीजिए कि लोकतंत्र की स्वस्थ बहस की शुरुआत हो। याद रहे कि नई संसद में पुरानी संसद की परंपरा, कहानी और शिष्टाचार है। याद रहे कि नए संसद भवन के साथ नेहरू, शास्त्री, अटल, सुषमा, चंद्रशेखर जैसों के संस्कार हैं। लोकतंत्र सिर्फ भवनों में नहीं बसता, ज़रूरी है कि विपक्ष मज़बूत मुद्दों के साथ आए, सरकार की तरफ़ से उनकी बात सुनी जाए, और आम आदमी की समस्या के समाधान का रास्ता निकल आए।
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