होम / Live Update / It is not Right to Change the Chief Minister before the Election चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बदलना ठीक नहीं

It is not Right to Change the Chief Minister before the Election चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बदलना ठीक नहीं

PUBLISHED BY: India News Editor • LAST UPDATED : September 22, 2021, 1:50 pm IST
ADVERTISEMENT
It is not Right to Change the Chief Minister before the Election चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बदलना ठीक नहीं

chunav se pahle.

It is not Right to Change the Chief Minister before the Election

राजेश बादल
वरिष्ठ पत्रकार

सियासी अतीत को देखें तो ज्यादातर मामलों में चुनाव पूर्व नेता बदलने का कोई लाभ किसी पार्टी को नहीं मिला है। शरद पवार और सुषमा स्वराज जैसे दिग्गज भी चुनाव से पहले भेजे जाने पर पार्टी को जिता नहीं सके थे। भारतीय लोकतंत्र एक चिकने घड़े में तब्दील होता जा रहा है। संवैधानिक व्यवस्थाओं और बहुमत से नेता के चुनाव की परंपरा हाशिये पर जाती दिखाई दे रही है। सभी राजनीतिक दलों में यह महामारी फैल चुकी है।

जिला पंचायतों, प्रदेश विधानसभाओं और संसद के लिए नेता चुनने की प्रक्रिया में प्रदूषण घुलता हुआ देखना विवशता है। हजार साल तक राजशाही का दंश ङोल चुके देश में सामंती चरित्र एक बार फिर दाखिल हो चुका है। अब नेता पद का चुनाव निर्वाचित जनप्रतिनिधि नहीं करते और न उन्हें वापस घर बैठाने की प्रक्रिया में कोई नुमाइंदा शरीक होता है। सारा उपक्र म सिर्फ चुनाव जीतने के लिए किया जाता है। इस उद्देश्य से कुछ राज्यों में चुनाव के पहले विधायक दल नेता को आलाकमान के इशारे पर हटाने का सिलसिला इन दिनों चल रहा है। यह अभी जारी है। मतदाता अपने साथ इस ठगी की शिकायत आखिर किस मंच पर करे? कर्नाटक, उत्तराखंड, गुजरात और पंजाब में मुख्यमंत्रियों को जिस तरीके से हटाया गया, उसकी यकीनन कोई तारीफ नहीं करेगा। इन प्रदेशों के उदाहरण साफ करते हैं कि नेता बदलने के खेल में दोनों शिखर पार्टियां शामिल हैं। जिन दो बड़े दलों को यह देश लोकतांत्रिक कमान सौंपता रहा है, उनमें इस प्रवृत्ति का पनपना गंभीर संकेत देता है।

उत्तराखंड को तो इन दलों ने शर्मनाक प्रयोगशाला बना दिया है। वहां मुख्यमंत्री जाते ही अपने विदाई संदेश की प्रतीक्षा करने लगता है। गंभीर बात इसलिए है कि चार साढ़े चार साल तक एक मुख्यमंत्री सरकार चलाता है, कार्यकाल में वह पार्टी घोषणापत्र के आधार पर मुद्दों का क्रियान्वयन करता है, साढ़े चार बरस वह फसल बोता है, सिंचाई करता है तो उत्पादन क्यों नहीं देखना चाहेगा। अर्थात मुख्यमंत्री अपने काम का मतदाताओं की नजर में मूल्यांकन भी देखना चाहता है। इसमें कुछ भी अनुचित नहीं है। यह कैसे संभव है कि वोटर केवल चेहरा बदल जाने से उस पार्टी को दोबारा वोट दे दे।
यदि चार -पांच साल सरकार ने खराब काम किया हो तो परिणाम बुरा ही मिलेगा। यदि येदियुरप्पा या कैप्टन अमरिंदर सिंह पांच से दस साल पार्टी की पतवार थाम सकते हैं तो चुनाव-वैतरणी क्यों पार नहीं लगा सकते? ताबड़तोड़ हटाने से उनके समर्थकों की उदासीनता अथवा भितरघात का नया मोर्चा खुल जाता है- यह बात आलाकमान को ध्यान में रखनी चाहिए। वैसे भी भारतीय संवैधानिक ढांचा किसी मुख्यमंत्री को हटाने की वैधानिक प्रक्रिया बताता है। जब मुख्यमंत्री विधायक दल का विश्वास खो दे तो पहले विधायक दल ही नया नेता चुनता है। कुछ दशकों से इस प्रक्रिया के बीच में दल का प्रदेश प्रभारी और आलाकमान का आॅब्जर्वर यानी दूत भी कूद पड़ा है। अब तो वे सीधे बंद लिफाफा लेकर आते हैं और फरमान सुनाते हैं। कभी-कभी वे सीधे ही राज्यपाल से मिलकर विधायक दल के निर्णय की जानकारी दे देते हैं। यह अनुचित है और स्वस्थ संसदीय परंपरा का हिस्सा नहीं है। यह तो मुख्यमंत्री का अपना अनुशासन है कि वह शिखर नेतृत्व का संदेश पाकर इस्तीफा पेश कर देता है। अन्यथा यदि उसके पास बहुमत हो और वह कोर्ट का दरवाजा खटखटाए तो पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व को लेने के देने पड़ जाएं।

इसके अलावा एक नुकसान और है। आलाकमान ताजे चेहरे के नाम पर अपेक्षाकृत कनिष्ठ और प्रशासनिक अनुभव नहीं रखने वाले व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाता है। जो व्यक्ति पहली बार विधायक चुना गया हो, उसे तो संसदीय प्रक्रिया के बारीक पेंचों की समझ ही नहीं होती। उसके सामने चुनाव होते हैं और वह वोटर को लुभाने के लिए अंधाधुंध असंभव सी घोषणाएं करने लगता है। इनमें से अधिकतर कभी पूरी नहीं होतीं। वह अफसरशाही पर लगाम भी नहीं लगा पाता और न ही अपने हिसाब से उनका मूल्यांकन कर पाता है। नए मुख्यमंत्री को पद संभाले चार-छह महीने भी नहीं बीतते कि चुनाव तारीखों का ऐलान हो जाता है। आचार संहिता लग जाती है।
यानी बबुआ मुख्यमंत्री के लिए कुछ भी करने को नहीं रहता। वोट तो पुराने मुख्यमंत्री के काम या सरकार की छवि पर ही मिलता है। सियासी अतीत को देखें तो ज्यादातर मामलों में चुनाव पूर्व नेता बदलने का कोई लाभ किसी पार्टी को नहीं मिला है। शरद पवार और सुषमा स्वराज जैसे दिग्गज भी चुनाव से पहले भेजे जाने पर पार्टी को जिता नहीं सके थे। अलबत्ता सुशील कुमार शिंदे और एकाध अन्य उदाहरण इसका अपवाद हैं। इसी तरह मुख्यमंत्री के मनोनयन का ढंग भी लोकतांत्रिक नहीं रहा। उसके लिए आवश्यक रस्मों का पालन होता है, लेकिन वास्तव में नए विधायकों को नेता चुनने की आजादी नहीं होती। अब तो इसे औपचारिक शक्ल भी दे दी गई है।

विधायक दल प्रस्ताव पास करता है। उसमें कहा जाता है कि पार्टी का शिखर नेतृत्व या अध्यक्ष जिसे चुनेगा, वह विधायक दल को मंजूर होगा। राजशाही में राजा ही तो सेनापतियों का चुनाव करता था। यह भी उसी तरह की कार्रवाई है। यह ठीक नहीं है। कोई अपने मत का अधिकार किसी दूसरे को कैसे दे सकता है? नेता चुनने का हक भारत के जन प्रतिनिधित्व कानून ने उसे दिया है। वह किसी अन्य को स्थानांतरित नहीं किया जा सकता। इससे स्वस्थ्य लोकतांत्रिक परंपरा की हत्या होती है। मान्यता है कि सियासी तीर अक्सर उलट कर लगते हैं। मुङो याद है कि 1980 में अर्जुन सिंह के साथ बहुमत नहीं था। वे कमलनाथ और संजय गांधी की मेहरबानी से मुख्यमंत्नी बने थे, जबकि बहुमत शिवभानु सिंह सोलंकी के पास था और जब 1985 में अर्जुन सिंह के नेतृत्व में पार्टी दोबारा जीत कर आई तो शपथ से पहले ही उन्हें पंजाब का राज्यपाल बना दिया गया। अल्पमत के मोतीलाल वोरा ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली थी।
बड़ी पार्टियों पर यह जिम्मेदारी है कि वे संसदीय प्रक्रियाओं की हिफाजत और सम्मान करें। क्षेत्रीय दल तो पहले ही सामंती आचरण कर रहे हैं, उनसे क्या अपेक्षा करें!

Must Read:- दिल्ली-एनसीआर और यूपी-हरियाणा में फिर बारिश का अनुमान

Connect With Us: Twitter facebook

Tags:

Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.

ADVERTISEMENT

लेटेस्ट खबरें

UP News: किसानों की गांधीगीरी… सड़क पर बैठकर अफसरों को सुनाई खूब खरी-खोटी
UP News: किसानों की गांधीगीरी… सड़क पर बैठकर अफसरों को सुनाई खूब खरी-खोटी
Today Horoscope: इस 1 राशि की किस्मत में लिखा है आज बड़ा बदलाव, तो इन 3 जातकों को मिलेगा उनका बिछड़ा प्यार, जानें आज का राशिफल
Today Horoscope: इस 1 राशि की किस्मत में लिखा है आज बड़ा बदलाव, तो इन 3 जातकों को मिलेगा उनका बिछड़ा प्यार, जानें आज का राशिफल
Indore: कार और बस के बीच भीषण टक्कर, 5 की मौत, 15 से ज्यादा घायल
Indore: कार और बस के बीच भीषण टक्कर, 5 की मौत, 15 से ज्यादा घायल
आज होगा आनंद विहार-अप्सरा बार्डर फ्लाईओवर का उद्घाटन, 2 हिस्सों में ट्रैफिक बंटने से जाम की समस्या होगी समाप्त
आज होगा आनंद विहार-अप्सरा बार्डर फ्लाईओवर का उद्घाटन, 2 हिस्सों में ट्रैफिक बंटने से जाम की समस्या होगी समाप्त
दिल्ली में कांग्रेस की दूसरी लिस्ट जारी, अब तक 47 नामों का एलान
दिल्ली में कांग्रेस की दूसरी लिस्ट जारी, अब तक 47 नामों का एलान
अरविंद केजरीवाल की तुलना भगवान श्रीकृष्ण से करने पर गरमायी सियासत,अवध ओझा ने उदाहरण देकर कारण भी बताया
अरविंद केजरीवाल की तुलना भगवान श्रीकृष्ण से करने पर गरमायी सियासत,अवध ओझा ने उदाहरण देकर कारण भी बताया
पुलिस हिरासत में रेप के आरोपी की मौत पर परिजनों का भड़का गुस्सा, जानें क्या है पूरा मामला
पुलिस हिरासत में रेप के आरोपी की मौत पर परिजनों का भड़का गुस्सा, जानें क्या है पूरा मामला
Gaya: क्रिसमस या न्यू ईयर पर बोधगया घूमने आ रहे हैं तो हो जाइए सावधान! ‘सुरक्षा व्यवस्था अपडेट और अपग्रेड की गई है’
Gaya: क्रिसमस या न्यू ईयर पर बोधगया घूमने आ रहे हैं तो हो जाइए सावधान! ‘सुरक्षा व्यवस्था अपडेट और अपग्रेड की गई है’
पहाड़ों की रानी शिमला में विंटर कार्निवल शुरू, जानें CM सुखविंदर सिंह सुक्खू ने क्या कहा?
पहाड़ों की रानी शिमला में विंटर कार्निवल शुरू, जानें CM सुखविंदर सिंह सुक्खू ने क्या कहा?
मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने दिया ये बड़ा अपडेट, 3 दिन में सारे रास्ते बहाल करने का टारगेट, खदराला में सबसे अधिक 24.0 सेंटीमीटर बर्फ
मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने दिया ये बड़ा अपडेट, 3 दिन में सारे रास्ते बहाल करने का टारगेट, खदराला में सबसे अधिक 24.0 सेंटीमीटर बर्फ
सीतामढ़ी के लोगों के लिए खुशखबरी! 4 साल से बंद रीगा चीनी मिल दोबारा हो रहा शुरू, मालिक मरूगेश निरानी ने वादा किया पूरा
सीतामढ़ी के लोगों के लिए खुशखबरी! 4 साल से बंद रीगा चीनी मिल दोबारा हो रहा शुरू, मालिक मरूगेश निरानी ने वादा किया पूरा
ADVERTISEMENT