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NEET Controversy आखिर क्या है ‘नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट’ विवाद

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली :

NEET Controversy मौसम चाहे कोई भी, आमतौर पर राजधानी दिल्ली में किसी ना किसी बात को लेकर धरना-प्रदर्शन चलते रहते हैं। लोग सरकार के पास तक अपनी बातें पहुंचाने का प्रयास करते हैं। लेकिन इस बार ठंड के मौसम में रेजिडेंट डॉक्टरों ने माहौल को काफी गर्म बना दिया है। रेजिडेंट डॉक्टर्स पिछले कई दिनों से हड़ताल पर थे। लेकिन अब इस हड़ताल में नया पेंच आ गया।

आपको बता दें काउंसलिंग के स्थगित रहने के कारण कई दिनों से हजारों डॉक्टर हड़ताल पर हैं। नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (एनईईटी-पीजी) की काउंसलिंग आरक्षण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई को लेकर स्थगित है। इस मुद्दे पर शीर्ष अदालत ने 25 नवंबर को सुनवाई की थी और अब अगली सुनवाई छह जनवरी 2022 को होनी है। हड़ताली डॉक्टर कोर्स में हो रही देरी का हवाला देते हुए नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (एनईईटी-पीजी) की काउंसलिंग जल्द से जल्द शुरू करने की मांग कर रहे हैं। (NEET Controversy)

क्यों है एनईईटी-पीजी काउंसलिंग स्थगित?

  • देशभर के पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल कोर्सेज में एडमिशन के लिए नेशनल एलिजिबिटी कम एंट्रेस टेस्ट (एनईईटी-पीजी) की काउंसलिंग का मामला सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई में फंसने की वजह से स्थगित है।
  • एनईईटी-पीजी 2021 (आल इंडिया कोट) में ओबीसी को 27 फीसदी और आर्थिक रूप से कमजोर (ई.डब्ल्यू.एस) वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण देने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई की वजह से महीनों से स्थगित है।
  • केंद्र सरकार ने 29 जुलाई को जारी नोटिफिकेशन में मेडिकल कोर्सेज में एडमिशन के लिए एनईईटी (आल इंडिया कोटा) के तहत मेडिकल सीट्स पर ओबीसी के लिए 27 फीसदी और ई.डब्ल्यू.एस कैटेगरी के लिए 10 फीसदी आरक्षण की घोषणा की थी। इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर हुई थीं।
  • इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में आखिरी बार 25 नवंबर 2021 को सुनवाई हुई थी। तब केंद्र ने कोर्ट से ई.डब्ल्यू.एस कैटेगरी को आरक्षण देने के लिए सालाना आठ लाख रुपये इनकम (करीब 70 हजार रुपये महीना) के क्राइटेरिया पर पुनर्विचार करने के लिए चार हफ्ते का समय मांगा था। (NEET Controversy)
  • सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा था कि ओबीसी के क्रीमी लेयर के लिए तय आठ लाख रुपये सालाना आय की लिमिट और एहर कैटेगरी के आरक्षण के लिए भी सालाना आय (आठ लाख) की लिमिट एक जैसी नहीं होनी चाहिए।
    मामला सुप्रीम कोर्ट में होने की वजह से अंडरग्रेजुएट और पोस्टग्रेजुएट दोनों कोर्सेज के लिए एनईईटी की काउंसलिंग अटकी हुई है।
  • मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए हर राज्य की 85 फीसदी सीटों पर फैसला वहां की सरकार करती है, जबकि बाकी 15 फीसदी सीटों पर ही फैसला केंद्र के पास रहता है। इन्हीं 15फीसदी सीटों पर केंद्र की ओर से घोषित ई.डब्ल्यू.एस आरक्षण लागू होना है, जिस पर फैसला न हो पाने की वजह से ही काउंसलिंग रुकी हुई है। (NEET Controversy)
  • हालांकि कई राज्यों-गुजरात, कर्नाटक, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, असम और आंध्र प्रदेश ने अपने हिस्से की 85 फीसदी अंडरग्रेजुएट सीटों पर काउंसलिंग शुरू कर दी है। लेकिन दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड जैसे राज्यों में अभी काउंसलिंग रुकी हुई है।

हड़ताल पर क्यों हैं हजारों डॉक्टर?

एनईईटी-पीजी 2021 का रिजल्ट सितंबर में घोषित होने के बावजूद अब तक काउंसलिंग शुरू नहीं करने को लेकर हजारों डॉक्टर हड़ताल पर है। एनईईटी-पीजी की काउंसलिंग 24-29 अक्टूबर के दौरान होनी थी, लेकिन आरक्षण के मुद्दे पर मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित होने की वजह से काउंसलिंग फिलहाल स्थगित है। काउंसलिंग नहीं शुरू होने से ही देश भर के मेडिकल कॉलेजों के रेजिडेंट डॉक्टरों में नाराजगी हैं और उन्होंने सामूहिक इस्तीफे की धमकी दी है। (NEET Controversy)

पिछली सुनवाई में क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने?

इस मामले की पिछली सुनवाई के दौरान जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्र सरकार से पूछा था कि वह समझाएं कि उसने किस आधार पर एनईईटी के तहत मेडिल सीटों पर आर्थिक रूप से पिछड़ों (ई.डब्ल्यू.एस) को आरक्षण के लिए सालाना आठ लाख रुपये इनकम का क्राइटेरिया तय किया है। कोर्ट ने कहा था, ”आप आठ लाख को बस ऐसे ही कहीं से भी नहीं ले सकते हैं। इसके लिए अवश्य ही कुछ डेटा होना चाहिए। सामाजिक, जनसंख्या पर आधारित।” (NEET Controversy)

कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि ओबीसी कोटा (क्रीमी लेयर) के लिए भी आठ लाख रुपये की ही लिमिट है। ऐसे में आप ई.डब्ल्यू.एस कैटेगरी के लिए भी 8 लाख रुपये (करीब 70 हजार/महीना) की ही लिमिट कैसे रख सकते हैं। अगर सरकार ऐसा करती है तो वह ”असमान को समान बना रही है।”

कोर्ट ने कहा कि ओबीसी कोटा के तहत आने वाले लोग सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े हैं, लेकिन संवैधानिक योजना के तहत एहर कैटेगरी के लोग सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े नहीं हैं, ऐसे में दोनों के लिए एक समाना सालाना आय की लिमिट कैसे रखी जा सकती है।

ई. डब्ल्यू. एस आरक्षण पर सरकार का क्या है तर्क

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा था कि नीट के आॅल इंडिया कोटा में आर्थिक रूप से पिछड़ों (ई.डब्ल्यू.एस) की कैटेगरी के लिए उसका सालाना 8 लाख इनकम तय करने का फैसला मनमानी नहीं है बल्कि कई राज्यों में विविध आर्थिक कारकों पर विचार करने के बाद इसे अंतिम रूप दिया गया है। (NEET Controversy)

सॉलिसिटिर जनरल तुषार मेहता ने नवंबर में हुई सुनवाई के दौरान कहा था कि हमें एहर कैटेगरी के लिए तय 8 लाख इनकम की लिमिट पर फिर से विचार करने का निर्देश मिला है। हम इस पर विचार करके चार हफ्तों में जबाब देंगे। सरकार ने कहा था कि एहर कैटेगरी की इनकम लिमिट तय होने तक एनईईटी-पीजी की काउंसलिंग नहीं होगी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, सरकार ई.डब्ल्यू.एस कैटेगरी के लिए सालाना इनकम लिमिट को आठ से बढ़ाकर 12 लाख रुपये कर सकती है।

क्या है ई.डब्ल्यू.एस कैटेगरी, इनकम लिमिट?

जनवरी 2019 में मोदी सरकार ने देश में आर्थिक रूप से कमजोर (ई.डब्ल्यू.एस) वर्ग के लोगों के लिए भी सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण के लिए कानून बनाया था। ई.डब्ल्यू.एस आरक्षण में ऐसे लोग आते हैं, जिनके परिवार की सालाना इनकम आठ लाख रुपये से कम है। इन लोगों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 10फीसदी फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है। (NEET Controversy)

केंद्र ने संविधान के 103वें संशोधन के तहत आर्टिकल 15(6) और 16(6) में संशोधन के जरिए एहर कैटेगरी के लिए 10 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की थी। ई.डब्ल्यू.एस कैटेगरी में वे लोग आते हैं, जो पहले से ही लागू एससी/एसटी/ओबीसी कैटेगरी में से किसी में शामिल नहीं हैं। ई.डब्ल्यू.एस आरक्षण का आधार आर्थिक स्थिति है।

एहर आरक्षण में किसी भी धर्म के सामान्य वर्ग का व्यक्ति शामिल हो सकता है, बशर्ते उसके परिवार की सालाना आय 8 लाख रुपये से कम हो। ई.डब्ल्यू.एस कैटेगरी के लिए आरक्षण एससी/एसटी/ओबीसी श्रेणियों के लिए मौजूदा 50फीसदी आरक्षण के अतिरिक्त होगा। कई बार ई.डब्ल्यू.एस आरक्षण को सवर्णों या सामान्य जातियों के लिए आरक्षण भी कहा जाता है।

क्या होता है क्रीमी लेयर?

पिछड़े वर्ग (ओबीसी) के ऐसे लोग जो इकोनॉमिक, सोशल और एजूकेशन के मामलें में काफी एडवांस है, उन्हें ‘क्रीमी लेयर’ कहा जाता है। क्रीमी लेयर में आने वाले लोगों को आरक्षण की सुविधा नहीं मिलती है। 1993 से क्रीमी लेयर को तय करने के लिए सालाना इनकम को आधार बना दिया गया है।

1993 में एक लाख रुपए सालाना, 2004 में 2.5 लाख रुपए, 2008 में 4.5 लाख रुपए, 2013 में 6 लाख रुपए और 2017 में 8 लाख रुपए सालाना इनकम वालों को ‘क्रीमी लेयर’ के अंतर्गत माना गया है। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) ओबीसी कल्याण के लिए लड़ने वाले एक्टिविस्ट जल्द से जल्द ओबीसी क्रीमी लेयर की सालाना इनकम की लिमिट को बढ़ाने की मांग कर रहे हैं।

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Sameer Saini

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