India News (इंडिया न्यूज़),LOK SABHA ELECTION 2024: (अजीत मेंदोला)लोकसभा चुनाव की घोषणा से पूर्व राजस्थान में एक बार फिर जाट राजनीति के गर्माने के आसार पैदा हो गई है। अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस इस बार चुनाव में अपना खाता खोल सकती है। हालांकि बीजेपी आलाकमान राजस्थान की राजनीति पर बहुत ही बारीकी से नजर रखे हुए है लेकिन असल चिंता राज्य कि 25 की 25 सीट जीतने की ही है।

जाट बनाम राजपूत राजनीति

टिकट कटने से नाराज सांसद राहुल कस्वा के कांग्रेस में शामिल होने के बाद जाट बनाम राजपूत राजनीति के गरमाने की संभावना है। राजस्थान बीजेपी के वरिष्ठ नेता राजेंद्र राठौर के विधानसभा चुनाव में हार के पीछे एक कारण जाट वोटों का ध्रुवीकरण होना भी बताया जाता है। राठौर ने हार के बाद अप्रत्यक्ष रूप से राहुल कस्वा पर विरोध में काम करने का आरोप लगाया था। बीजेपी विधानसभा चुनाव में जाट बाहुल्य इलाकों में हारी भी थी।

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जाट बाहुल्य की सीटों पर पड़ सकता है असर

अब जब लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी की पहली सूची जारी हुई तो राहुल कस्वा का टिकट काट दिया गया। कस्वा का आरोप है कि राठौर की शिकायत पर टिकट काटा गया। अब वह कांग्रेस में शामिल हो गए हैं, तो उनके असल निशाने पर राठौर ही रहने वाले हैं। बीजेपी आलाकमान इस माहौल में अब राठौर को लोकसभा का टिकट देगी लगता नहीं है। दुसरा चुनाव ने यदि जातीय रंग लिया तो फिर जाट बाहुल्य कई सीट पर असर पड़ेगा।

तिकड़ी ने फंसाया आलाकमान को

दरअसल, दिल्ली में मौजूद तिकड़ी ने आलाकमान को परेशानी में डाला है। इस तिकड़ी ने सबसे पहले पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के खिलाफ माहौल बनाया। फिर सतीश पूनिया को अध्यक्ष पद से हटा दिया। सीपी जोशी को अध्यक्ष बनवाया। यहीं से बीजेपी की प्रदेश की राजनीति गड़बड़ाई।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बाद में अहसास हुआ कि प्रदेश में गलत फैसले करवा दिए गए। वह फैसले करवाने वालों पर नाराज भी हुए। जिसके पीछे सारा झगड़ा मुख्यमंत्री की कुर्सी का था। स्पीकर ओम बिड़ला,केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत,राजेंद्र राठौर कई नेता रेस में थे। विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी ने खुद कमान संभाली तो उन्हें एहसास हो गया था कि जाट बाहुल्य इलाकों में नाराजगी है। इसलिए पार्टी ने मीणा ओर गुजर वोटरों को साधा। परिणाम वही आए जो तय थे,जाट बाहुल्य इलाकों में बीजेपी हारी और बाकी में जीती।

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प्रत्येक सीटों को देनी पड़ेगी महत्वता

इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने प्रदेश की कमान नए चेहरे भजनलाल शर्मा को सौंप दिग्गजों को किनारे कर दिया। लेकिन अब संकट यही है कि भजनलाल शर्मा के पास अभी उस तरह का अनुभव नहीं है कि वह पार्टी को बांध सकें। दूसरा सरकार पर अफसर हावी हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कह भी चुके हैं कि मुख्यसचिव सुधांशु पंत कार्यकारी मुख्यमंत्री की तरह काम कर रहे हैं। जिसका असर सरकार पर दिख रहा है। उधर प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी तो समय काट रहे हैं।उन्हें पता है कि चुनाव बाद बदला जाऊंगा। प्रभारी अरुण सिंह संगठन महामंत्री चंद्रशेखर तिकड़ी के मजबूत स्तंभ थे,लेकिन आज कल दोनों कमजोर हुए हैं। प्रधानमंत्री मोदी जिस टारगेट को लेकर चल रहे हैं उसमें एक-एक सीट का बड़ा महत्व है। ऐसे में अगर हिंदी बेल्ट राजस्थान में बीजेपी 2019 का करिश्मा नहीं दोहरा पाई तो भजन सरकार के लिए चुनौतियां खड़ी हो जाएंगी।