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India News (इंडिया न्यूज़), Martand Singh, Lucknow News : उत्तर प्रदेश में नए अध्यक्ष के आने के बाद अब कांग्रेस पार्टी ने अपनी रणनीति बदली है। कांग्रेस अब अक्रामकता के साथ 2024 के लोकसभा चुनाव में कैम्पेनिंग करने जा रही है। इसके साथ ही कांग्रेस अब अपने पुराने वोट बैंक को हासिल करने के लिए अपने पुराने फार्मुलें पर भी लौट रही है।
सबसे पुराने और मुफीद फार्मुला बीडीएम यानी कि ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम के दम पर दशकों तक सत्ता पर राज करने वाली कांग्रेस एक बार फिर उसी समीकरण पर वापस लौटने की तैयारी कर रही है। अरसे बाद कांग्रेस ने राजनैतिक सौम्यता की जगह आक्रामक तेवर को तरजीह देने का मन बना लिया है। नए अध्यक्ष भी सार्वजनिक मंचो से खुद को सनातनी बताते है, और हर हर महादेव का नारा भी लगाते हैं।
कांग्रेस ने यूपी में अपने प्रदेश अध्यक्ष को बदल कर नई नीति की शुरुआत कर दी है। बृजलाल खाबरी को अचानक हटाकर इनकी जगह वाराणसी के पूर्व विधायक और मोदी के खिलाफ वाराणसी से लोकसभा में ताल ठोंकने वाले अजय राय को प्रदेश की कमान सौंप दी है। भूमिहार (ब्राह्मण) समाज से आने वाले अजय राय की पहचान एक साहसी और जुझारू और हार न मानने वाले नेता के रूप में है। अजय राय ने भी अपनी काम करने की शैली और बयानों से कांग्रेस की रणनीति साफ कर दी है। अजय राय जब पहली बार वाराणसी से लखनऊ पदभार करने निकले तो उनके साथ गाड़ियो का लंबा काफिला था।
दरअसल कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में लगातार अपने खोए हुए जनाधार को पाने के लिए तमाम जतन कर रही है। पार्टी थिंक टैंक को लगता है कि अब जनाधार बढ़ाने के लिए आक्रामक शैली के साथ साथ जातीय समीकरणों को साधते हुए ही मैदान में उतारना मुफीद होगा। यही वजह है कि दलित और मुस्लिम के बाद अब ब्राह्मण को भी कांग्रेस ने अपने फॉर्मूले में शामिल कर लिया है। एक समय था जब पार्टी ब्राह्मणों के चेहरे के सहारे उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी दखल रखती थी। लेकिन उसके बाद पार्टी के अंदर शुरू हुए प्रयोगों की वजह से ब्राह्मणों का साथ छूटता गया।
प्रदेश अध्यक्ष अजय राय की ताजपोशी के दौरान लखनऊ के पार्टी दफ्तर में 11 विद्वान पंडितो ने बकायदा मंत्रोचार कर उन्हें पदभार ग्रहण कराया। इसके बाद अजय राय ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के यूपी से चुनाव लड़ने वाला बयान दिया। स्मृति ईरानी पर हमला बोलते हुए अपने तेवर साफ कर दिया। अजय राय खुद कहते है कि अब पार्टी सड़कों पर दिखेगी। ना डरेगी और ना झुकेगी जनता के लिए सड़कों पर उतरेगी। अजय राय को अध्यक्ष बनाने से पहले कांग्रेस ने कई एक्सपेरिमेंट किया। लेकिन कोई भी प्रयोग सफल नही रहा। यूपी की सियासत को समझने वाले मानते है कि जब तक कांग्रेस में ब्राह्मण अध्यक्ष रहा। पार्टी जीवित रही लेकिन जैसे ही पार्टी ने ओबीसी के साथ प्रयोग शुरु किया, पार्टी गर्त में जाने लगी अक्रामक तेवर और ब्राह्मण वाला फैक्टर काम करता रहा। पार्टी विधानसभा से लेकर लोकसभा तक सम्मानजनक सीटें जीतती रही।
पहले की बात करें तो रीता बहुगुणा की अगुआई में 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने प्रदेश में 21 सीटें हासिल की। 2012 के विधानसभा चुनाव में भी 28 सीटों के साथ पार्टी का प्रदर्शन संतोषजनक था। 2012 के बाद कांग्रेस ने गैर ब्राह्मण को लेकर जो प्रयोग शुरू किया उससे पार्टी को सिर्फ निराशा ही हाथ लगी। 2012 से 2016 तक निर्मल खत्री प्रदेश अध्यक्ष रहे, इस दौरान पार्टी की हालत लगातार ख़राब होती गई। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सिर्फ अमेठी और रायबरेली ही जीत सकी। 2016 से 2019 तक राजबब्बर पार्टी के अध्यक्ष रहें, इनके कार्यकाल में कांग्रेस ने कई प्रयोग किएं। सपा के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव भी लड़ा लेकिन पार्टी का जनाधार सिकुड़ता चला गया। 2017 के विधानसभा चुनाव में सात जबकि लोकसभा के चुनाव में पार्टी अपना गढ़ अमेठी भी हार गई। सिर्फ राय बरेली की सीट सोनिया गांधी बचा पाईं।
राजबब्बर न तो संगठन में कोई करिश्मा दिखा पाएं और न ही मुस्लिम वोटर्स को कांग्रेस के पाले में ही ला पाएं लिहाज पार्टी ने इस बार पिछड़े चेहरे पर दांव लगाया, कुशीनगर के ओबीसी समाज से आने वाले अजय लल्लू को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने पूर्वांचल में पिछड़ों के बीच पैठ बनाने की कोशिश की लेकिन ये दांव भी काम नही आया 2022 के चुनाव में पार्टी हाशिये पर खड़ी दिखी। विधानसभा चुनाव में खुद लल्लू चुनाव हार गएं। जो दो सीटें पार्टी को मिली वो दोनों कैंडिडेट की अपनी ताकत थी।
उत्तरप्रदेश में संजीवनी की कोशिश में पार्टी ने अपनी रणनीति बदली, बसपा छोड़ कांग्रेस में आए दलित नेता बृजलाल खाबरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। कांग्रेस के इस कदम को दलित समाज को साधने की कोशिश के तौर पर देखा गया लेकिन इसका भी कोई लाभ पार्टी को नही मिला। कांग्रेस संगठन में इसका विरोध हुआ और कई लोग पार्टी छोड़ दिएं। लोकल बॉडीज़ इलेक्शन में भी कांग्रेस हाशिये पर चली गई। इसके बाद से कांग्रेस का प्रदर्शन लागातार गिरता गया।
कांग्रेस ने निर्मल खत्री, राजबब्बर, अजय कुमार लल्लू और फिर बृजलाल खाबरी को मौका दिया लेकिन इनमे से कोई भी किसी भी तरह का करिश्मा नही कर पाया। देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस आज यूपी में अपने सबसे बुरे दौर में है। लिहाजा पार्टी के इससे उबारने के लिए पार्टी ने अजय राय को जिम्मेदारी सौंपी है। साथ ही पार्टी अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की 30 से ज्यादा जनसभाएं कराने की योजना बना रही है।
कांग्रेस के इस फैसले को सवर्णों और दलितों को साधने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ उत्तरप्रदेश के कई मुस्लिम चेहरे कांग्रेस के संपर्क में हैं। लोकसभा चुनाव से पहले इनके पार्टी जॉइन करने की संभावना है। सहारनपुर के इमरान मसूद समेत कई मुस्लिम नेताओं की बातचीत कांग्रेस के बड़े नेताओं से हो रही है। कुल मिलाकर कांग्रेस आक्रामक तेवर के साथ अपने पुराने सामाजिक समीकरण को साधने की रणनीति बना तो रही है लेकिन उसके सामने चुनौतियां भी कम नही हैं।अब देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस इस लक्ष्य को कैसे पूरा कर पाती है।
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