इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
Needle Free Covid 19 Vaccine Zycov D: वैसे तो कोरोना महामारी से बचाव के लिए दुनियाभर में ना जाने कितनी दवाएं और (Corona Vaccine) वैक्सीन बन चुकी हैं। रोजाना लाखों की संख्या में लोग वैक्सीनेशन भी करवा रहे हैं। वहीं काफी लोग सुई के डर से वैक्सीन लगवाने से बच भी रहे हैं। लेकिन अब आपको सुई से डरने की जरूरत नहीं। क्योंकि अहमदाबाद की एक फार्मा कंपनी जायडस कैडिला ने केंद्र सरकार को (Zydus Cadila’S Needle-Free) जायकोव-डी नाम से एक वैक्सीन ”जो निडिल फ्री है” की सप्लाई शुरू कर दी है।
(needle free vaccine in india) इस वैक्सीन में आपको सुई जैसे चुभने का दर्द भी महसूस नहीं होगा। तो आइए जानते है कि कैसी है निडिल फ्री वैक्सीन, दूसरी वैक्सीन से क्या यह अलग है, कैसे इसे लगाया जाएगा और क्या है इसकी कीमत। सूत्रों के मुताबिक, जायकोव-डी वैक्सीन को अभी सात राज्यों के लोगों को लगाई जाएगी। इनमें महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, पंजाब और झारखंड शामिल हैं। इसकी हर डोज की कीमत 265 रुपये है। साथ में निडिल-फ्री एप्लिकेटर के लिए 93 रुपये चुकाने होंगे। इसमें जीएसटी शामिल नहीं है।
कैसे लगाई जाएगी निडिल फ्री वैक्सीन?
- यह वैक्सीन स्टेपलर जैसी होती है। इसका उपयोग अमेरिका में ज्यादा किया जाता है। इंजेक्टर बनाने वाली अमेरिकी राज्य कोलोराडो की कंपनी ने जायडस के साथ डील की है।
- फार्मा कंपनी जायडस कैडिला की से सप्लाई हो रही ”जायकोव-डी” (needle free) वैक्सीन को लगाने के लिए इंजेक्शन की जरूरत नहीं है। ये एक इंट्रा-डर्मल वैक्सीन है जिसके चलते मांसपेशियों में इंजेक्शन नहीं लगाना पड़ता। यह वैक्सीन जेट एप्लीकेटर या इंजेक्टर से लगाई जाएगी। इससे वैक्सीन को हाई प्रेशर से लोगों की स्किन में इंजेक्ट किया जाता है।
- बता दें जो निडिल इंजेक्शन यूज होते हैं, उनसे लिक्विड दवा मसल्स में जाती है। जेट इंजेक्टर में प्रेशर के लिए कंप्रेस्ड गैस या स्प्रिंग का इस्तेमाल किया जाता है। यह एक स्टेपलर के आकार का होता है। इससे वैक्सीन की 0.1 मिलीलीटर खुराक दी जाती है। इस डिवाइस के तीन हिस्से होते हैं- इंजेक्टर, सिरिंज और फिलिंग एडैप्टर। एक जेट इंजेक्टर से करीब 20 हजार खुराक दी जा सकती है।
कितनी सुरक्षित है ”जायकोव-डी”?
- जायकोव-डी वैक्सीन लगवाने से दर्द कम होता है, क्योंकि ये आम इंजेक्शन की तरह आपके मसल्स के अंदर नहीं जाती। बस थोड़ा दबाव महसूस होता है, जैसा कि रबर बैंड लगाने पर महसूस होता है। इससे इंफेक्शन फैलने का खतरा निडिल वाले इंजेक्शन की तुलना में काफी कम होता है। साथ ही सिरिंज के दोबारा इस्तेमाल की संभावना भी नहीं रहती। (How safe is “Jaykov-D”)
- देश में कई ऐसे लोग हैं जो निडिल के चलते कोरोना वैक्सीन नहीं लगवाना चाहते हैं। ऐसे में अब उनकी समस्या भी दूरी हो जाएगी। फार्मजेट, स्पिरिट इंटरनेशनल, वैलेरिटस होल्डिंग्स, इनजेक्स, एंटरीस फार्मा जैसी कंपनियां जेट इंजेक्टर बनाती हैं।
कितने डोज लगेंगे ”जायकोव-डी” के?
- अभी तक दुनियाभर में जितनी भी कोरोना वैक्सीन लगाई जा रही हैं, वो या तो सिंगल डोज हैं या डबल डोज। लेकिन जायकोव-डी पहली ऐसी वैक्सीन है, जिसकी तीन डोज लगाई जाएगी। (Zydus Corona Vaccine Phase 3)
”जायकोव-डी”वैक्सीन के तीन डोज 28-28 दिन के अंतराल पर लगाए जाएंगे। वैक्सीन के पहले डोज के 28 दिन बाद दूसरा डोज और 56 दिन बाद तीसरा डोज लगाया जाएगा।
क्या कोरोना को रोक पाएगी जायकोव-डी वैक्सीन?
- ”जायकोव-डी” दूसरी स्वदेशी वैक्सीन है जिसे पूर्णतया भारत में तैयार किया गया है। जायडस कैडिला ने वैक्सीन का 28 हजार वॉलंटियर्स पर टेस्ट किया था।
- इस टेस्ट के रिजल्ट के आधार पर कंपनी का दावा है कि कोरोना के खिलाफ इस वैक्सीन का असर 66.60 फीसदी रहा है। वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल में 12 से 18 वर्ष के बच्चों समेत सभी उम्र वर्ग के लोग शामिल थे।
- इस वैक्सीन को 2 से 8 डिग्री सेल्सियस तापमान पर लंबे समय तक स्टोर किया जा सकता है। साथ ही 25 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी इसे चार माह तक स्टोर करके रखा जा सकता है।
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क्या जायकोव-डी अच्छी वैक्सीन है?
- जायकोव-डी एक डीएनए बेस्ड वैक्सीन है। इसे दुनिया भर में ज्यादा कारगर वैक्सीन प्लेटफॉर्म के रूप में देखा जाता है। इसे ऐसे समझ सकते हैं- इंसान के शरीर पर दो तरह के वायरस-डीएनए और आरएनए के हमलों की बात की जाती है। (Is ZyCoV-D a good vaccine) कोरोना वायरस एक आरएनए वायरस है जो कि एक सिंगल स्ट्रेंडेड वायरस होता है।
- जबकि डीएनए डबल स्ट्रेंडेड होता है और मानव कोशिका के अंदर भी डीएनए होता है। डीएनए वैक्सीन वायरस को आरएनए से डीएनए में परिवर्तित करके इसकी एक कॉपी बनाती है। इससे वायरस डबल स्ट्रेंडेड बन जाता है और आखिरकार इसे डीएनए की शक्ल में ढाला जाता है। ऐसा माना जाता है कि डीएनए वैक्सीन ज्यादा ताकतवर और कारगर होती है। अब तक स्मॉलपॉक्स से लेकर हर्पीज जैसी समस्याओं के लिए डीएनए वैक्सीन ही दी जाती है।
कितनी पुरानी है टेक्नोलॉजी?
इस डिवाइस का आविष्कार 1960 में किया गया था। डब्ल्यूएचओ ने 2013 में इसके उपयोग की अनुमति दे दी थी। 2014 से जेट इंजेक्टर का अमेरिका में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है। अफ्रीका, यूरोप और एशिया देशों में भी इस वैक्सीन का इस्तेमाल किया जाता है।
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