India News (इंडिया न्यूज), Pichhore Vidhan Sabha Seat: मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में एक महीने से भी कम का समय बचा है। चुनाव की तिथि का ऐलान कर दिया गया है। साथ ही आदर्श आचार संहिता भी लगा दिए गए हैं। 17 नवंबर को मध्यप्रदेश के 230 विधानसभा सीटों के लिए मतदान दिया जाएगा। जिसके बाद परिणाम की घोषणआ 3 दिसंबर को की जाएगी। ऐसे में हमारे लिए मध्यप्रदेश की राजनीतिक इतिहास को जानना जरुरी है। आज हम मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में स्थित पिछोर विधानसभा सीट के बारे में जानेंगे।
पिछोर विधानसभा सीट की बात करें तो यह सीट कांग्रेस की अभेद किला मानी जाती है। इस सीट पर कांग्रेस विधायक केपी सिंह 1993 विधानसभा चुनाव से 2018 चुनाव तक रहें। इस दौरान उन्होंने लगातार छह जीत हासिल की। जिसके बाद जीत केपी सिंह के जीत की लंबी श्रृंखला पर विराम लगा। साल 2018 में BJP उम्मीदवार प्रीतम लोधी ने 2675 वोट से केपी सिंह को हरा दिया। बता दें पिछोर शिवपुरी जिले का ग्रामीण इलाका है। पिछोर विधानसभा के अंदर आदिवासी, लोधी और यादवों का बाहुल्य है। यहां लोग अपने आम जीवन के लिए खेती, पशुपालन और व्यापार पर निर्भर हैं।
साल 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर हलचल तेज हो गई है। केपी सिंह भी मैदानी स्तर पर उतर कर काम कर रहें हैं। वहीं केपी सिंह ने सरकार के समक्ष पिछोर और खनियाधाना को मिलाकर जिला बनाने की मांग कर रहे थें। जिससे की जिला मुख्यालय शिवपुरी के लिए लोगों को 100 किलोमीटर दूर का सफर ना तय करना पड़े। हालांकि इस चुनाव में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछोर को जिला बनाने की घोषणा पहले हीं कर दी है।
अगर पिछोर के जातिगत समीकरण की बात करें तो यहां 50 हजार लोधी समाज के मतदाता हैं। वहीं 40 हजार आदिवासी मतदाताओं का नाम लिस्ट में शामिल है। जाटव समाज की ओर से 30 हजार, यादव समाज के 32 हजार, ब्राह्मण समाज के 18 हजार, ठाकुर के 8 हजार हजार, बघेल जाति के 15 हजार, कुशवाह जाति के 8 हजार और अंत में केवट समाज के 7 हजार लोगों का नाम मतदाता लिस्ट में शामिल है। बता दे कि पिछोर में 1 लाख 20 हजार 308 महिला, 1 लाख 36 हजार 706 पुरुष और 5 थर्ड जेंडर के मतदाता हैं। कुल मिलाकर यहां 2 लाख 57 हजार 19 मतदाताओं का नाम लिस्ट में शामिल है।
बता दें कि 1951 में तत्कालीन मध्य भारत राज्य के समय पिछोर 79 विधानसभा क्षेत्रों में शामिल था। वहीं मध्यप्रदेश के अलग राज्य बनने के बाद पिछोर विधानसभा के रूप में जाना जाने लगा। 1957 से लेकर अभी तक कांग्रेस ने इस सीट से 10 बार वहीं बीजेपी ने 2 बार जीत हासिल की है। इनके अलावा स्वतंत्र पार्टी और हिन्दू महासभा के खाते में भी एक-एक जीत गई है। इस विधानसभा सीट के लोगों की सबसे बड़ी समस्या जिला मुख्यालय शिवपुरी का दूर होना था। जिसके कारण लोगों को प्रशासनिक कामों में काफी परेशानी उठानी पड़ती थी। वहीं युवाओं में रोजगार और स्वास्थ सुविधाओं की समस्या को लेकर गुस्सा है। उनका कहना है कि आज स्वास्थय संबिधित कामों के लिए ग्वालियर पर निर्भर रहना पड़ता है।
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