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जानिए कुतुब मीनार का इतिहास और विवाद क्या है?

इंडिया न्यूज: Qutub Minar Controversy: इस समय देश की कुछ मस्जिदें विवादों के घेरे में फंसी दिख रही हैं। कभी काशी की ज्ञानवापी, मथुरा में ईदगाह मस्जिद और अब दिल्ली की कुतुब मीनार पर विवाद जारी है।
वहीं बीते कल से कुतुब मीनार को लेकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey Of India (ASI)) ने सख्ती दिखानी शुरू कर दी है। उनका कहना है कि कुतुब मानीर एक नॉन लिविंग मॉन्यूमेंट (निर्जीव स्मारक) है।
वहीं आज दिल्ली के साकेत कोर्ट (Delhi Saket Court) में सुनवाई हुई है, जिसमें हिंदू पक्ष की पूजा के अधिकार वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। अब इस मामले में सुनवाई 9 जून 2022 का होगी। तो आइए जानते हैं कुतुब मीनार से जुड़ा विवाद क्या है।

एक नजर कुतुब मीनार के इतिहास में

कुतुब मीनार देश की प्रमुख ऐतिहासिक इमारतों में से एक है। ये साउथ दिल्ली के महरौली इलाके में स्थित है। करीब 238 फीट की ऊंचाई वाला कुतुब मीनार भारत का सबसे ऊंचा पत्थरों का स्तंभ है। कुतुब मीनार का निर्माण 1199 से 1220 के दौरान कराया गया था। इसको बनाने की शुरूआत कुतुबुद्दीन-ऐबक ने की थी और उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने पूरा कराया था।
बता दें कुतुबुद्दीन ऐबक पृथ्वीराज चौहान को हराने वाले मोहम्मद गौरी का पसंदीदा गुलाम और सेनापति था। गौरी ऐबक को दिल्ली और अजमेर का शासन सौंपकर वापस लौट गया था। 1206 में गौरी की मौत के बाद ऐबक आजाद शासक बन गया और उसने दिल्ली सल्तनत की स्थापना कर दी थी।
वहीं 14वीं और 15वीं सदी में कुतुब मीनार को बिजली गिरने और भूकंप से नुकसान पहुंचा था। उस समय दो मंजिलों की फिरोज शाह तुगलक ने मरम्मत करवाई थी। बाद में 1505 में सिकंदर लोदी ने मरम्मत करा दो मंजिलों का विस्तार किया था। 1803 में फिर आए भूकंप से कुतुब मीनार को नुकसान पहुंचा, तब 1814 में इसके प्रभावित हिस्सों की ब्रिटिश-इंडियन आर्मी के मेजर रॉबर्ट स्मिथ ने मरम्मत करवाई।
यह कहीं भी स्थापित नहीं है कि कुतुब मीनार का नाम उस कुतुबद्दीन ऐबक के नाम पर रखा गया है, जिसने इसका निर्माण शुरू किया था या इसका नाम मशहूर मुस्लिम सूफी संत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर पड़ा है। वहीं इतिहासकारों का कहना है कि कुतुब या कुटुब मीनार नाम ब्रिटिश पीरियड से प्रचलित हुआ।

क्या मंदिरों को तोड़कर बनी थी मस्जिद

दिल्ली की पहली शुक्रवार मस्जिद देश की प्रमुख धरोहरों में से एक कुतुब मीनार परिसर के अंदर स्थित है। इस मस्जिद का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने कराया था। कहते हैं कि इस मस्जिद का निर्माण 27 हिंदू और जैन मंदिरों को नष्ट करके किया गया था। राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद के दौरान अयोध्या में खुदाई में शामिल रहे प्रसिद्ध आर्कियोलॉजिस्ट केके मुहम्मद ने कहा था कि कुतुब मीनार के पास स्थित कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद को बनाने के लिए 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़ गया था। केके मुहम्मद के मुताबिक मस्जिद के पूर्वी गेट पर लगे एक शिलालेख में भी इस बात का जिक्र है।

क्यों कुतुब मीनार रहता हैं विवादों में?

इस समय जो कुतुब मीनार को लेकर विवाद का कारण एएसआई के पूर्व रीजनल डायरेक्टर धर्मवीर शर्मा का बयान है। उनका कहना है कि कुतुब मीनार को राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था न कि कुतुबुद्दीन ऐबक ने जैसा कि इतिहास में बताया गया है। धर्मवीर शर्मा ने इससे पहले बताया था कि कुतुब मीनार एक सन टावर है जिसे 5वीं शताब्दी में गुप्त साम्राज्य के विक्रमादित्य ने बनवाया था। उन्होंने दावा किया कि इस संबंध में मेरे पास बहुत सारे सबूत हैं।
जैसे कि कुतुब मीनार की मीनार में 25 इंच का झुकाव है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इसे सूर्य का अध्ययन करने के लिए बनाया गया था। 21 जून को जब सूर्य आकाश में जगह बदलता है तो भी कुतुब मीनार की उस जगह पर आधे घंटे तक छाया नहीं पड़ती। यह विज्ञान और आर्कियोलॉजिकल फैक्ट है। उनका कहना है कि कुतुब मीनार एक स्वतंत्र इमारत है और इसका संबंध करीब की मस्जिद से नहीं है। दरअसल, इसके दरवाजे नॉर्थ फेसिंग हैं, ताकि इससे रात में ध्रुव तारा देखा जा सके।
विश्व हिंदू परिषद यानी विहिंप भी इस मामले में कूद चुका है। परिषद ने दावा किया है कि 73 मीटर ऊंचा स्ट्रक्चर विष्णु स्तंभ था। इसके कुछ हिस्सों को बाद में मुस्लिम शासकों ने बनवाया था। विहिंप के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल का कहना है कि ऐतिहासिक स्ट्रक्चर हिंदू शासक के समय में भगवान विष्णु के मंदिर पर बनाया गया था।
बंसल ने दावा किया कि जब मुस्लिम शासक यहां पर आए तो उन्होंने 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़कर इसके कुछ हिस्सों का पुनर्निर्माण कराया। साथ ही इसका नाम बदलकर कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद कर दिया गया। कहते हैं कि यह वास्तव में विष्णु मंदिर पर बना विष्णु स्तंभ था। बंसल ने दावा किया कि मुस्लिम शासकों ने इसका निर्माण नहीं कराया, बल्कि इसे हिंदू शासकों ने बनवाया था
वहीं यूनाइटेड हिंदू फ्रंट ने एक याचिका दाखिल की है। याचिका में कहा गया था कि कुतुब मीनार स्थित कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद को हिंदू और जैन धर्म के 27 मंदिर को तोड़कर बनाया गया है। ऐसे में वहां फिर से मूर्तियां स्थापित की जाएं और पूजा करने की इजाजत दी जाए। यूनाइटेड हिंदू फ्रंट के इंटरनेशनल वर्किंग प्रेसिडेंट भगवान गोयल ने दावा किया कि कुतुब मीनार विष्णु स्तंभ है, जिसे महान राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था।

कुतुब मीनार परिसर में स्थित लौह स्तंभ किसने बनवाया

वर्तमान में दिल्ली के महरौली में कुतुब मीनार परिसर में स्थित लौह स्तंभ या लोहे के खंभे का इतिहास बहुत रोचक है। इस स्तंभ का निर्माण चंद्रगुप्त द्वितीय ने 375 से 415 ईस्वी के दौरान कराया था। इस स्तंभ की लंबाई 23.8 फीट है, जिनमें से 3.8 फीट जमीन के अंदर है। इसका वजन 600 किलो से ज्यादा है।
इस स्तंभ पर खुदे अभिलेख में इसे ताकतवर राजा चंद्र, जोकि भगवान विष्णु के भक्त थे, द्वारा ‘ध्वज स्तंभ’ के रूप में ‘विष्णुपद की पहाड़ी’ पर बनाए जाने का जिक्र है। इस ताकतवर राजा की पहचान आमतौर पर गुप्त साम्राज्य के चंद्रगुप्त द्वितीय के तौर पर की जाती है। करीब 1600 सालों बाद भी इस लौह स्तंभ में जंग नहीं लगी है, जो कि प्राचीन भारत की इंजीनियरिंग कौशल का प्रमाण है।
माना जाता है कि इसे मध्य प्रदेश के विदिशा स्थित भगवान विष्णु की पूजा से जुड़ी उदयगिरी गुफाओं के बाहर लगाया गया था, जहां से 11वीं शताब्दी में तोमर राजा अनंगपाल इसे महरौली ले आए थे।
हालांकि, कुछ इतिहासकार इस स्तंभ को मुस्लिम शासकों की ओर से लगाए जाने का दावा करते हैं। उनका कहना है कि मुस्लिम शासकों ने इस स्तंभ को अपनी विजय के प्रतीक के तौर पर कुतुब मीनार परिसर में लगवाया था। ऐसा करने के ऐतिहासिक प्रमाण मौजूद नहीं हैं।

कुतुब मीनार में पूजा के अधिकार की याचिका पर सुनवाई 9 को

वहीं आज कुतुब मीनार में पूजा के अधिकार की याचिका पर दिल्ली के साकेत कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है। जस्टिस निखिल चोपड़ा की बेंच ने हिंदू पक्ष की पूजा के अधिकार वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। अब इस मामले में सुनवाई 9 जून 2022 का होगी।
हालांकि बीते कल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने कुतुब मीनार में पूजा के अधिकार वाली याचिका का विरोध किया। साकेत कोर्ट में सोमवार को दाखिल किए हलफनामे में कहा कि कुतुब मीनार पूजा का स्थान नहीं है और इसकी मौजूदा स्थिति को बदला नहीं जा सकता।
बता दें हिंदू पक्ष की दलील थी कि 27 मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई है, जिसके अवशेष वहां मौजूद हैं। इसलिए वहां मंदिरों को दोबारा बनाए जाए। वहीं मुस्लिम पक्ष का कहना है कि अरक ने कुव्व्त उल इस्लाम मस्जिद में नमाज बंद करवा दी है।

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