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Religious Power of Monasteries and Akharas and not Burdened with Taxes मठ और अखाड़ों की धार्मिक शक्ति और करों का बोझ नहीं

India News Editor • LAST UPDATED : September 25, 2021, 12:34 pm IST
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Religious Power of Monasteries and Akharas and not Burdened with Taxes मठ और अखाड़ों की धार्मिक शक्ति और करों का बोझ नहीं

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Religious Power of Monasteries and Akharas and not Burdened with Taxes

आलोक मेहता

मेरी पत्रकारिता की शुरूआत 1968 में उज्जैन के कुम्भ मेले में आए साधु संतों से मिलकर हुई थी। हिन्दुस्थान समाचार एजेंसी के लिए अंशकालिक संवाददाता के रूप में केवल डाक और तार से खबरें भेजने का खर्च मात्र मिलता था, लेकिन अनुभव बड़ी उम्र के स्थानीय पत्रकारों का मिल रहा था। तब शंकराचार्य और कई साधु संतों के ज्ञान और प्रवचनों को सुनकर खबरें लिखने और अखबारों में छपी देखकर खुशी होती थी। तब टेलीविजन की कोई चर्चा नहीं थी। हां आकाशवाणी (रेडियो) पर कुम्भ की खबरें आ जाती थी।

उस समय भी कई विदेशी हिप्पी अथवा भारतीय धार्मिक मेलों से आकर्षित कुछ लोग दिखते थे। लेकिन पचास वर्षों में भारत के साधु संतों, धार्मिक गुरुओं, आश्रमों के साम्राज्य की धूम दुनिया के हर हिस्से तक पहुंच गई है। धीरेन्द्र ब्रह्मचारी और महेश योगी संयोग से जबलपुर मध्य प्रदेश से ही निकले और दुनिया के संपन्न देशों तक उनके आश्रम स्थापित हो गए। हाल के वर्षों में ध्यान गुरु श्री श्री रवि शंकर और बाबा रामदेव भी दुनिया के कई देशों में योग ध्यान के साथ भारत के धार्मिक सांस्कृतिक प्रभाव को बड़ा रहे हैं। इसलिए देश के मठ और अखाड़ों की धार्मिक शक्ति, आस्था के साम्राज्य पर भी सबका ध्यान जा रहा है।

प्रयाग में अखाड़ा परिषद् के महंत नरेंद्र गिरि की कथित आत्म हत्या अथवा हत्या की दुखद गंभीर घटना ने बाघम्बरी मठ से जुड़े अखाड़ों की कई हजार करोड़ रुपयों की संपत्ति, जमीन आदि का विवरण सार्वजनिक कर दिया हैं।घटना की जांच अब सी बी आई को सौंप दी गई है। यह अकेला प्रकरण नहीं है। कई ऐसे धार्मिक संस्थानों की संपत्ति के विवाद अदालतों में लंबित हैं और कुछ प्रमुखों या उत्तराधिकारियों की हत्या के मामले भी सामने आए हैं।

 

इन प्रकरणों के साथ यह उत्सुकता बढ़ती है कि आखिर अखाड़ों और मठ की परम्परा क्या रही है। आदि शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में साधुओं की शाखाओं का प्रावधान किया। इनमें गिरि, पुरी, भारती, तीर्थ, वन, अरण्य, पर्वत, आश्रय, समर और सरस्वती प्रमुख थी। आदि शंकर ने चार मठ दसनामी संप्रदाय के लिए चार मठ स्थापित किये _ उत्तर में बद्रीकाश्रम में अथर्वेद आधारित ज्योतिर्मठ, दक्षिण में शृंगेरी में यजुर्वेद आधारित सारदा मठ, पूर्व में जगन्नाथ पुरी में ऋग्वेद आधारित गोवर्धन मठ और पश्चिम में द्वारका में सामवेद आधारित कालिका मठ। स्वाभाविक है कि यह हिन्दू धर्म के प्राचीनतम वेद ग्रंथों के ज्ञान प्रसार के लिए बने थे। अखाड़ा परम्परा 1750 से पहले सनातन धर्म की रक्षा के लिए शुरू हुई। देश के तेरह अखाड़ों की शाखाएं प्रयाग, उज्जैन, वाराणसी, हरिद्वार, नासिक, त्रियम्बक, उदयपुर सहित कई शहरों में स्थापित होती गई और उनके लिए जमीन, आश्रम की सुविधाओं के लिए सरकारों, स्थानीय संस्थाओं और सम्पूर्ण समाज ने हर संभव सहायता की। भारतीय आय और संपत्ति कर नियम कानून में धार्मिक संस्थाओं को कर से पूरी तरह मुक्त रखा है। फिर यह प्रावधान केवल हिन्दू धर्म के संस्थानों के लिए नहीं सभी सिख, जैन, इस्लाम, ईसाई, बौद्ध धर्म से जुड़े संस्थानों के लिए भी है।

इस कारण धार्मिक मठों, आश्रमों, अखाड़ों, संस्थाओं इत्यादि की आय और संपत्ति, जमीन हजारों करोड़ की हो गई है। कुछ संस्थानों ने धर्म और शिक्षा के प्रसार में भी सहयोग दिया, लेकिन साधु समाज परम्पराओं का पालन कर रहे हैं। बड़े साधु संत तो वैराग्य भाव में ही रहे, लेकिन कई स्थानों पर उत्तराधिकारियों तथा संपत्ति को लेकर गंभीर विवाद होने लगे। महंत नरेंद्र गिरि के बाघम्बरी मठ की सम्पत्तियों पर अधिकार को लेकर कुछ वर्षों से शिष्य ही विवाद खड़ा कर रहे थे। संपत्ति की जानकारियां चौंकाने वाली हैं। मठ तो पांच से छह बीघा जमीन पर है। उससे जुड़े निरंजनी अखाड़े के पास जमीन के साथ स्कूल और गौशाला है।

प्रयाग में संगम तात पर हनुमान मंदिर भी उनका है। प्रयाग से जुड़े मांडा में एक सौ बीघा और मिजार्पुर में चार सौ बीघा से अधिक जमीन है। मिजार्पुर से लगे दो गांवों में एक सौ चालीस बीघा जमीन, महंत नरेंद्र गिरि के निरंजनी अखाड़े के पास उज्जैन और ओंकारेश्वर में ढाई सौ बीघा जमीन, आधा दर्जन मठ और दर्जन भर आश्रम हैं। नासिक में एक सौ बीघा जमीन, बारह आश्रम,और मंदिर हैं।

बड़ोदरा, जयपुर, माउन्ट आबू में भी एक सौ पच्चीस बीघा जमीन, दर्जन भर मंदिर और आश्रम हैं।हरिद्वार में बारह से अधिक मठ मंदिर हैं। गौतम बुद्ध नगर नोएडा में भी मंदिर जमीन है। सामान्यत: इन सबकी कोई पड़ताल नहीं होती, फिर भी विवाद उठने पर पता चलता है कि कई हजार करोड़ की सम्पत्तियाँ ऐसे मठों, आश्रमों की हैं। किसी सरकार की हिम्मत नहीं हुई कि ऐसी संपत्ति और बेहिसाब आय पर किसी तरह का टैक्स लगा सके। इसलिए मठ आश्रम से जुड़े कई लोग उन पर अधिकार जमाने का प्रयास करते हैं। कई समाजसेवी और आर्थिक विशेषज्ञ यह सुझाव देते रहे हैं कि भारतीय संस्कृति में मंदिर और आश्रम ज्ञान के प्रसार के लिए बनते रहे हैं, फिर उनकी आय और संपत्ति का उपयोग शैक्षणिक संस्थाओं के लिए क्यों नहीं होना चाहिए अथवा जिनके पास अकूत आमदनी होती है उन पर किसी तरह न्यूनतम टैक्स लगाया जाए। धार्मिक मंदिरों और न्यासों पर सरकारी नियंत्रण का विरोध होता रहा है।

धार्मिक भावनाओं को आहत किए बिना इन संस्थानों से सामाजिक शैक्षणिक संसाधनों के लिए कोई राह वर्तमान सरकार ही निकल सकती है। वाराणसी के विश्वनाथ मंदिर परिसर से लगे विशाल क्षेत्र के सौंदर्यीकरण के लिए बड़े पैमाने पर पुराने भवनों को हटाने का कार्य किसी और सरकार द्वारा संभव नहीं था। इसी तरह धार्मिक संस्तभों को विवादों से उबारकर उनको सामाजिक सेवा से जोड़ने में भी सरकार और उनसे जुड़े नेता महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

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Alok Mehta

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