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India News (इंडिया न्यूज़), Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का मुद्दा न सिर्फ़ नागरिक होने के हक़ से जुड़ा है बल्कि इंसान होने के नाते नैसर्गिक अधिकारों के दायरे में भी आता है। भारत में इस वक्त करीब 140 करोड़ नागरिक हैं बतौर नागरिक हर किसी को गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार उसका न सिर्फ संवैधानिक ह़क है।
बल्कि ये उसके अस्तित्व से भी जुड़ा हुआ है संविधान के अनुच्छेद 21 में जो प्रावधान हैं, उसके सहारे से ये अधिकार हर नागरिक के लिए सुनिश्चित होता है लेकिन क्या आपने कभी सोचा है यदि भारत में समलैंगिक विवाह को हरी झंडी दिखा दी जाए तो इससे क्या बदलाव होंगे? चलिए हम बताते हैं-
विशेष विवाह अधिनियम जेंडर न्यूट्रल नहीं है इसका सेक्शन 4 सी शादी के लिए लड़की की उम्र 18 साल और लड़के की उम्र 21 साल की बात करता है साथ ही इसका सेक्शन 24 और सेक्शन 25 बताता है कि अगर सेक्शन 4 के तहत शादी नहीं होती, तो वो अमान्य हो जाती है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान दलील दी गई कि क़ानूनी दृष्टि में शादी का अर्थ एक बायोलॉजिकल पुरुष और बायोलॉजिकल महिला के बीच का ही रिश्ता हो सकता है।
महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली वकील वीना गोडा मुंबई से फ़ोन पर बताती हैं कि शादी एक ऐसा रिश्ता है, जिसे क़ानूनी मान्यता दी गई है जो एक रिश्ते को क़ानूनी दायरे में बांध देता है और फिर एक दंपती या स्पाउस (लीगल पार्टनर) के तौर पर स्वीकार्य हो जाते हैं, जो मिलकर एक परिवार बनाते हैं और इसमें सबके अधिकार होते हैं।
अगर समलैंगिक विवाह को मान्यता मिलती है, तो जिन-जिन कागज़ात में स्पाउस का उल्लेख है, वहाँ उन्हें पूर्ण अधिकार मिलेंगे। परिवार कई तरह के अधिकारों का लाभार्थी बनाता है, जैसे- पेंशन, इंश्योरेंस, ग्रैच्यूटी, मेडिकल क्लेम आदि उन्हें दिए जाएंगे।
वहीं समलैंगिकों की शादी को स्वीकृति दे दी जाती है, तो उन्हें पेंशन का भी अधिकार मिलेगा, क्योंकि वहाँ नॉमिनी का विकल्प दिया गया है।
वित्तीय मामलों में समुदाय को मदद तो मिलेगी, लेकिन कई ऐसे मुद्दे हैं जिन पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, अगर कोई व्यक्ति बीमार पड़ जाता है, तो उस व्यक्ति का परिवार, पार्टनर को अस्पताल आने नहीं देता वहीं समलैंगिक किराए पर घर लेने की कोशिश करते हैं, तो दिक़्क़त आती है।
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