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अजीत मैंदोला
Shitkalin Satra 2021 : संसद का शीतकालीन सत्र इस बार सरकार से ज्यादा कांग्रेस के लिये खासा महत्वपूर्ण होने जा रहा है। भावी अध्य्क्ष समझे जा रहे राहुल गांधी समेत पूरी कांग्रेस के लिये सत्र में अपने अस्तित्व को साबित करने की बड़ी चुनोती है। संभवत पहली बार कांग्रेस इस तरह के संकट से जूझेगी। क्योंकि मानसून सत्र के बाद बीते तीन माह में राजनीतिक परिस्थितियां पूरी तरह से बदल गई हैं। मानसून सत्र में राहुल गांधी ने किसानों और महंगाई के मुद्दे पर विपक्ष को एक जुट कर अगुवाई का प्रयास किया था।लेकिन उनके नेतृत्व को तब भी विपक्षी दलों के मुखियाओं ने स्वीकार नही किया था।
इस पर उनकी मां कांग्रेस की अंतरिम अध्य्क्ष सोनिया गांधी ने भी सामने आ कोशिश की लेकिन वह भी बहुत सफल नही रही।विपक्ष ने उनकी बात नही मानी। अब जबकि सोमवार से शीतकालीन सत्र की शुरुआत होने जा रही कांग्रेस के लिये हालात और बिगड़ गये हैं।हालांकि सोनिया गांधी ने गुरुवार अपने नेताओं के साथ बैठक कर अकेले ही मोदी सरकार को घेरने की रणनीति बनाई। सरकार ने भी अपनी तरफ विपक्ष के हमलों को नाकाम करने के लिये कई कदम उठा पूरी तैयारी कर ली है।
सरकार ने सबसे पहले विपक्ष के सबसे बड़े हथियार किसानों से जुड़े कृषि कानूनों को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर विपक्ष की पूरी रणनीति गड़बड़ा दी है।सत्र के पहले दिन ही कानून वापस लेने संबन्धी विधेयक पारित करवा विपक्ष को झटका देने की तैयारी पूरी कर ली। इसके साथ महगाई के मुद्दे को भी कमजोर करने के लिये बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाना पहले ही शुरू कर दिया। विपक्ष का बंटा होना भी सरकार के लिये राहत की खबर है। विपक्ष खुद ही बिखराव की तरफ बढ़ रहा।विपक्ष की अगुवाई को लेकर घमासान शुरू हो चुका है।इसके साथ पूरा विपक्ष कांग्रेस को अलग थलग करने में जुटा है।जहाँ कभी कांग्रेस विपक्ष का नेतृत्व करती दिखती थी वहीं टीएमसी नेत्री ममता बनर्जी उसमें सेंध लगाने के लिये पूरी ताकत लगा रही है।
शीतकालीन सत्र में कांग्रेस के सामने अब सबसे बड़ी चुनोती यही रहने वाली है कि वह सरकार को घेरने के लिये कैसे विपक्ष को एक जुट कर पाती है?राहुल गांधी के नेतृत्व को विपक्ष क्या स्वीकारेगा?क्योंकि अब तक के सबसे बुरे दौर से गुजर रही कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को विपक्ष मान नही रहा है। खास तौर पर राहुल गांधी को।पार्टी मे भी नेतृत्व का डर पूरी तरह से खत्म हो चुका है।राहुल गांधी बदले हुए राजनीतिक हालातों को समझ पाने की कोशिश ही नही कर रहे हैं।उनकी कमजोरी के चलते विपक्ष उन पर हावी हो गया है। हालत यह है कि आये दिन कांग्रेस पर सवाल उठने लगे हैं। पार्टी के नेता सवाल उठा रहे हैं।
कभी कांग्रेस से राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाली पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी आज कांग्रेस को ही खत्म करने में जुटी हैं। हालांकि टीएमसी ने अभी तक जिन कांग्रेसी नेताओं को पार्टी में शामिल किया वह कोई बड़े जनआधार वाले नेता नही हैं, लेकिन वह कहीं ना कहीं सन्देश देने में कामयाब हैं। ममता समेत पूरे विपक्ष की रणनीति बीजेपी को रास आ रही है।मोदी सरकार की कोशिश रहेगी कि शीतकालीन सत्र में भी विपक्ष के बीच खींचतान चलती रहे।कोशिश कांग्रेस को ही अलग थलग करने की ही रहेगी। जानकारों की माने तो बीजेपी के लिये कांग्रेस को टारगेट करना फायदे मन्द साबित होता रहा है।क्योंकि कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर अभी बीजेपी से मुकाबला कर रही है। कांग्रेस और उसके नेताओं की तरफ से ही अनर्गल बयानबाजी को बीजेपी मुद्दा बना चुनावी माहौल बनाती रही है।
पंजाब और यूपी को लेकर नेताओं की तरफ से बयानबाजी भी शुरू हो गई है। तय है कि कृषि कानूनों के पूरी तरह से वापस लिये जाने के बाद किसान आंदोलन समाप्त हो जायेगा। सत्र की शुरुआत में ही सरकार कृषि कानून वापस लेने वाला बिल पारित करवा विपक्ष को झटका देगी। कृषि कानून ऐसा मुद्दा था जिसको लेकर विपक्ष की आगामी पांच राज्यों के चुनावों को लेकर बड़ी उम्मीद थी। पँजाब और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के चुनाव पर इसका असर पड़ेगा।पँजाब में राजनीति ही बदलती दिख रही है। कांग्रेस छोड़ चुके पूर्व मुख्यमंत्री अमरेंद्र सिंह की नई पार्टी कांग्रेस के लिये बड़ा सरदर्द बनने जा रही है।
मनीष तिवारी जैसे वरिष्ठ नेता लगातार कांग्रेस का सरदर्द बढ़ाने वाली बयानबाजी कर संकेत दे भी रहें चुनाव नजदीक आते कांग्रेस को बड़े झटके लगेंगे। हालांकि कांग्रेस ने अमरेंद्र सिह की सांसद पत्नी परनीत कोर को कारण बताओ नोटिस दे विरोधियो पर अंकुश लगाने की कोशिश की है,लेकिन दांव उल्टा पड़ सकता है। उत्तर प्रदेश में बहुकोणीय मुकाबला बीजेपी के लिये फायदे वाला साबित हो सकता है।
सपा,आप और लोकदल का गठबंधन,कांग्रेस, बसपा ओर ओवेसी की पार्टी के साथ टीएमसी के भी मैदान में कूदने की संभावना ऐसे में कांग्रेस विपक्ष में अकेली पड़ गई है। छोटे दल भी साथ आने से परहेज कर रहे हैं। इन हालातों में कांग्रेस के लिये शीतकालीन सत्र महत्वपूर्ण बन गया।इस सत्र के बाद अगले साल के शुरू में होने वाले यूपी समेत पांच राज्यों के चुनाव की सरगर्मी जोर पकड लेंगी। जो हालात बन रहे हैं कांग्रेस सभी राज्यों में अकेले ही संघर्ष करती दिखेंगी।
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