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Side Effect Of Air Pollution बीमारी उगल रहा वायु प्रदूषण, हालात हो सकते हैं गंभीर

Mukta • LAST UPDATED : October 7, 2021, 11:46 am IST

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
Side Effect Of Air Pollution  देश में वायु प्रदूषण भयावह होता जा रहा है। नेशनल हेल्थ प्रोफाइल रिपोर्ट के अनुसार देश में होने वाली संक्रामक बीमारियों में सांस की बीमारियों का प्रतिशत करीब 69 फीसद है और देशभर में 23 फीसद से भी ज्यादा मौतें अब वायु प्रदूषण के कारण ही होती हैं।

दुनियाभर में वायु प्रदूषण के खतरे तेजी से बढ़ रहे हैं। वायु प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है, यहां तक कि लोगों की आयु घटने का भी एक बड़ा कारण बनकर उभर रहा है। हाल ही में बेल्जियम में हुए एक अध्ययन में शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि सामान्य वायु प्रदूषकों से भी हृदय रोगों का खतरा बढ़ जाता है।

प्रमुख शोधकर्ता सैन मैटेओ फाउंडेशन के डॉ. फ्रांसेस्का आर जेंटाइल के अनुसार सात सामान्य प्रदूषकों का अध्ययन करने पर पाया गया कि इनके कारण हृदय गति रूकने का खतरा बढ़ा। सिर के बालों से लेकर पैरों के नाखून तक अब वायु प्रदूषण की जद में होते हैं।

जीवन से जुड़ी हैं नदियां (Side Effect Of Air Pollution)

भारत में वायु प्रदूषण की स्थिति लगातार भयावह हो रही है। नेशनल हैल्थ प्रोफाइल 2018 की रिपोर्ट के अनुसार देश में होने वाली संक्रामक बीमारियों में सांस संबंधी बीमारियों का प्रतिशत करीब 69 फीसदी है और देशभर में 23 फीसदी से भी ज्यादा मौतें अब वायु प्रदूषण के कारण ही होती हैं। विभिन्न रिपोर्टों में यह तथ्य भी सामने आया है कि भारत में लोगों पर पीएम 2.5 का औसत प्रकोप 90 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है।

प्रदूषण मुक्त सांसें पुस्तक के मुताबिक पिछले दो दशकों में देशभर में वायु में प्रदूषक कणों की मात्रा में करीब 69 फीसदी तक की वृद्धि हुई है और जीवन प्रत्याशा सूचकांक, जो 1998 में 2.2 वर्ष कम था, उसके मुकाबले अब एक्यूएलआई की ताजा रिपोर्ट के अनुसार 5.6 वर्ष तक कमी आई है। अमेरिका की शिकागो यूनिवर्सिटी के ह्यद एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूटह्ण के शोधकर्ता एक अध्ययन के बाद खुलासा कर चुके हैं कि वायु प्रदूषण के ही कारण भारत में लोगों की औसत आयु कम हो रही है।

84 फीसद लोग प्रदूषण की चपेट में (Side Effect Of Air Pollution)

कुछ अध्ययनों के अनुसार भारत की कुल 1.4 अरब आबादी का बड़ा हिस्सा ऐसी जगहों पर रहता है, जहां पार्टिकुलेट प्रदूषण का औसत स्तर डब्ल्यूएचओ के मानकों से ज्यादा है। 84 फीसदी व्यक्ति ऐसी जगहों पर रहते हैं, जहां प्रदूषण का स्तर भारत द्वारा तय मानकों से अधिक है। भारत की एक चौथाई आबादी बेहद प्रदूषित वायु में जीने को मजबूर है और यदि प्रदूषण का स्तर बरकरार रहता है तो उत्तर भारत में करीब 25 करोड़ लोगों की आयु में आठ साल से ज्यादा की कमी आ सकती है।

उत्तर भारत दक्षिण एशिया में सर्वाधिक प्रदूषित हिस्से के रूप में उभर रहा है, जहां पार्टिकुलेट प्रदूषण पिछले 20 वर्षों में 42 फीसदी बढ़ा है और जीवन प्रत्याशा घटकर 8 वर्ष हो गई है। हालांकि भारत ह्यनेशनल क्लीन एयरह्ण कार्यक्रम के तहत वर्ष 2024 तक पार्टिकुलेट प्रदूषण को 20-30 फीसदी तक घटाने के लिए प्रयासरत है लेकिन शोधकतार्ओं का कहना है कि यदि भारत अपने उद्देश्य में सफल नहीं हुआ तो इसके गंभीर दुष्परिणाम देखने को मिल सकते हैं। यदि भारत अगले कुछ वर्षों में प्रदूषण का स्तर 25 फीसदी भी घटा लेता है तो राष्ट्रीय जीवन प्रत्याशा 1.6 वर्ष और दिल्लीवालों की 3.1 वर्ष बढ़ जाएगी।

कई तरह की बीमारियां परोस रहा प्रदूषण (Side Effect Of Air Pollution)

वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक की नवीनतम रिपोर्ट में बताया गया है कि वायु प्रदूषण तरह-तरह की बीमारियां पैदा करने के अलावा लोगों की आयु भी घटा रहा है अर्थात् इसका सीधा प्रभाव जीवन प्रत्याशा पर पड़ रहा है। भारत के संदर्भ में रिपोर्ट में कई सनसनीखेज तथ्य उजागर किए गए हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषण के अनुमानित प्रभावों की तीव्रता सम्पूर्ण उत्तर भारत में बहुत ज्यादा है, जहां वायु प्रदूषण का स्तर दुनियाभर में सबसे ज्यादा खतरनाक है। एक्यूएलआई रिपोर्ट के अनुसार यदि वर्ष 2019 जैसा वायु प्रदूषण संघनन जारी रहा तो दिल्ली, मुम्बई और कोलकाता जैसे सर्वाधिक प्रदूषित महानगरों में रहने वाले लोग अपनी जिंदगी के नौ से ज्यादा वर्ष खो देंगे।

(Side Effect Of Air Pollution)

रिपोर्ट के अनुसार भारत में करीब 48 करोड़ लोग गंगा के मैदानी क्षेत्र में रहते हैं, जहां प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा है और यह प्रदूषण अब गंगा के मैदानों से आगे मध्य प्रदेश तथा महाराष्ट्र जैसे राज्यों तक फैल गया है, जहां खराब वायु गुणवत्ता के कारण लोग 2.5 से 2.9 वर्ष की जीवन प्रत्याशा खो सकते हैं। हालांकि इस रिपोर्ट के मुताबिक केन्द्र द्वारा संचालित राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के लक्ष्य राष्ट्रीय जीवन प्रत्याशा को 1.7 वर्ष तक बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं लेकिन इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रत्येक मोर्चे पर ठोस नीतियों की आवश्यकता है।

घट रही उम्र, बढ़ रही टेंशन

कुछ समय पूर्व बोस्टन के हेल्थ इफेक्ट इंस्टीच्यूट और हैल्थ मैट्रिक्स एंड एवल्यूशन की प्रदूषण के मनुष्यों की आयु पर पड़ने वाले अच्छे-बुरे प्रभावों को लेकर किए गए अध्ययन की रिपोर्ट भी सामने आई थी, जिसमें कहा गया था कि भारत सहित सभी एशियाई देशों में वायु में घुलनशील प्रदूषणकारी तत्वों पीएम 2.5 की मात्रा निरन्तर बढ़ रही है। अध्ययनकतार्ओं का कहना था कि पीएम 2.5 का स्तर भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा अफ्रीकी देशों में डब्ल्यूएचओ के मानकों से बहुत ज्यादा है, जिस कारण दुनियाभर के प्रत्येक क्षेत्र में जीवन प्रत्याशा में कमी आ रही है।

आईसीएमआर की एक रिपोर्ट में भी कहा जा चुका है कि वायु प्रदूषण के कारण भारत में औसत आयु घट रही है। पिछले साल ह्यसेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंटह्ण द्वारा भी कहा गया था कि वायु प्रदूषण से होने वाली घातक बीमारियों के कारण देश में जीवन प्रत्याशा औसतन 2.6 वर्ष घट गई है।

ये कहना है शोधकर्ताओं का (Side Effect Of Air Pollution)

शोधकतार्ओं का कहना है कि वायु की गुणवत्ता में सुधार करके इस स्थिति को और बिगड़ने से बचाया जा सकता है। एक्यूएलआई के निदेशक केन ली कहते हैं कि जीवाश्म ईंधन संचालित वायु प्रदूषण आज एक वैश्विक समस्या है और वायु प्रदूषण से मुक्ति पूरी दुनिया को औसत आयु में दो वर्ष जबकि सर्वाधिक प्रदूषित देशों को पांच साल बढ़त दिला सकती है। ली के मुताबिक अगर भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल वायु गुणवत्ता को विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप बनाने में सफल हो जाएं तो यहां के लोगों की औसत आयु 5.6 वर्ष बढ़ जाएगी अन्यथा उम्र इतनी ही घट जाएगी।

शिकागो विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के निदेशक और अर्थशास्त्र के प्रोफेसर माइकल ग्रीनस्टोन के मुताबिक वायु प्रदूषण पर अब गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है ताकि करोड़ों-अरबों लोगों को अधिक समय तक स्वस्थ जीवन जीने का हक मिल सके।

(Side Effect Of Air Pollution)

 

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