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इंडिया न्यूज़ (दिल्ली):सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को झारखंड सरकार द्वारा 2016 में जारी अधिसूचना को रद्द कर दिया, जिसमें जिला कैडर तीन और चतुर्थ श्रेणी के पदों में 13 अनुसूचित जिलों के स्थानीय निवासियों को 100% आरक्षण प्रदान किया गया था.
न्यायालय ने कहा कि “केवल संबंधित अनुसूचित जिलों/क्षेत्रों के स्थानीय निवासियों के लिए प्रदान किया गया 100% आरक्षण भारत के संविधान के अनुच्छेद 16 (2) का उल्लंघन होगा और गैर-अनुसूचित क्षेत्रों/जिलों के अन्य उम्मीदवारों/ नागरिकों के अधिकारों को प्रभावित करता है,भारत के संविधान के भाग तीन के तहत”
यह मामला सत्यजीत कुमार और अन्य बनाम झारखंड राज्य और अन्य था, न्यायालय ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 16 (3) के साथ अनुच्छेद 35 के अनुसार,स्थानीय अधिवास आरक्षण केवल संसद द्वारा अधिनियमित कानून के माध्यम से प्रदान किया जा सकता है। राज्य विधानमंडल के पास ऐसा करने की शक्ति नहीं है। इसलिए,अधिसूचना को अनुच्छेद 16(3) और 35 का भी उल्लंघन करने वाला माना गया,कोर्ट ने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए अनुच्छेद 13 के तहत अधिसूचना को शून्य घोषित कर दिया और इसे अल्ट्रा वायर्स घोषित कर दिया.
कोर्ट ने चेब्रोलू लीला प्रसाद राव और अन्य बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के मामले में 2020 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा निर्धारित कानून का पालन किया, जिसमे आंध्र प्रदेश में अनुसूचित क्षेत्रों में शिक्षण पदों पर अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के लिए दिए गए 100 आरक्षण को असंवैधानिक करार देते हुए हटा दिया गया था.
इस मामले में,जस्टिस एमआर शाह और बीवी नागरत्ना की दो जजों की बेंच ने झारखंड सरकार और अन्य लोगो द्वारा दायर कई अपीलों पर विचार कर रही थी जिसमे झारखडं उच्च न्यायालय के फैसले को चूनौती दी गए थी,उच्च न्यायालय ने भी नोटिफिकेशन को रद्द करते हुए चेब्रोलू लीला प्रसाद राव केस का हवाला दिया था.
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