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India News(इंडिया न्यूज),Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने यूपी मदरसा एक्ट रद्द करने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई की और सरकार और अन्य पक्षों को नोटिस जारी किया। कोर्ट ने कहा कि हमने विभिन्न पक्षों को सुना और उन पर विचार किया। यूपी सरकार भी फैसले के समर्थन में है। उनका कहना है कि वह 96 करोड़ रुपये देने में सक्षम नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, हाई कोर्ट को चुनौती देने की मांग वाली याचिकाओं पर कोर्ट यूपी सरकार समेत अन्य सभी पक्षों को नोटिस जारी करता है। उच्च न्यायालय ने अधिनियम को रद्द कर दिया है और आदेश दिया है कि छात्रों को राज्य द्वारा स्थानांतरित किया जाएगा। इसका असर सभी 17 लाख बच्चों की शिक्षा के भविष्य पर पड़ेगा।
कोर्ट ने कहा कि हमारी राय है कि यह निर्देश प्रथम दृष्टया उचित नहीं है। राज्य सरकार समेत सभी पक्षों को 30 जून 2024 या उससे पहले सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल करना होगा। याचिका जून 2024 के दूसरे सप्ताह में अंतिम निपटान के लिए सूचीबद्ध की जाएगी। आदेश और फैसले पर रोक रहेगी 22 मार्च 2024 की उच्च न्यायालय की।
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इससे पहले वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि छात्रों की संख्या करीब 17 लाख है। हाई कोर्ट ने पहले यथास्थिति बरकरार रखी। लेकिन बाद में इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया गया। हाई कोर्ट ने जो वजह बताई वो बेहद अजीब है। यूपी सरकार के आदेश पर विज्ञान, हिंदी और गणित समेत सभी विषयों की पढ़ाई हो रही है। इसके बावजूद उनके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। यह है 120 साल पुरानी संहिता (1908 की मूल संहिता) की स्थिति। 1987 के नियम अभी भी लागू हैं।
उन्होंने कहा कि सरकार ने 30 मई 2018 को एक आदेश जारी किया था। इसमें मदरसा में विभिन्न विषयों को पढ़ाने के नियम शामिल थे। ताकि मदरसे भी मौजूदा स्कूलों की तरह शिक्षा दे सकें। मदरसों का सिलेबस भी अन्य स्कूलों की तरह ही है। इसके बावजूद हाई कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है वह हैरान करने वाला है। मदरसा शिक्षा को धार्मिक आधार पर असंवैधानिक घोषित कर दिया गया है।
सिंघवी ने कहा कि हाई कोर्ट ने कहा है कि अगर आप कोई धार्मिक विषय पढ़ाते हैं तो यह धार्मिक आस्था की शिक्षा दे रहा है, जो धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है। आज गुरुकुल प्रसिद्ध हैं क्योंकि वे अच्छा काम कर रहे हैं। यहां तक कि मेरे पिता के पास भी डिग्री है, तो क्या हमें उन्हें बंद कर देना चाहिए और कहना चाहिए कि यह हिंदू धार्मिक शिक्षा है? यह क्या है?
उन्होंने पूछा कि क्या यह 100 साल पुराने नियम को ख़त्म करने का आधार है? साथ ही तर्क दिया कि शिमोगा जिले में एक गांव है, जहां पूरा गांव संस्कृत बोलता है और ऐसी संस्थाएं भी हैं। मुझे उम्मीद है कि बेंच को इस जगह के बारे में पता होगा।
सुनवाई के दौरान सीजेआई ने पूछा कि क्या मदरसे निजी क्षेत्र द्वारा तैयार किये गये हैं। इस पर वकील ने ‘हां’ कहा। इसके बाद सीजेआई ने एक और सवाल पूछा। उन्होंने कहा कि आपने पहले अपने हलफनामे में मदरसा एक्ट का समर्थन किया था। इस पर यूपी सरकार ने कहा कि अब जब हाई कोर्ट ने इस कानून को असंवैधानिक घोषित कर दिया है तो हम इसे स्वीकार करते हैं क्योंकि हाई कोर्ट एक संवैधानिक अदालत है।
इसके साथ ही यूपी सरकार ने कहा कि हम ये खर्च नहीं उठा सकते। मदरसा एक्ट-2004 को बहाल करने वाले याचिकाकर्ता के वकीलों ने राज्य सरकार के यू-टर्न का विरोध किया। हाई कोर्ट में मदरसा एक्ट को असंवैधानिक घोषित करने की मांग करने वाले याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि ऐसा दिखाया जा रहा है कि धार्मिक विषयों के बराबर ही अन्य विषय भी पढ़ाए जा रहे हैं।
उन्होंने कहा, यह दूसरा तरीका है। 10वीं कक्षा के छात्रों के पास विज्ञान और गणित को अलग-अलग पढ़ने का विकल्प नहीं है। इस प्रकार, अनुच्छेद 28(1) के तहत एक सीधी संवैधानिक बाधा है और वे उच्च न्यायालय के समक्ष स्वीकार करते हैं कि धार्मिक शिक्षा प्रदान की जा रही है। अटॉर्नी जनरल ने CJI बेंच के सामने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले का समर्थन किया।
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि किसी भी स्तर पर धर्म का शामिल होना एक संदिग्ध मुद्दा है। प्रश्न किसी मानक का नहीं है, हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत तथ्यों में मैं स्वयं को यह कहने के लिए राजी नहीं कर सका कि हाईकोर्ट का आदेश गलत था। हम धर्म के जाल में फंस गए हैं। धर्म का कोई भी निहितार्थ यहाँ एक प्रश्न है। हाईकोर्ट के आदेश पर यूपी सरकार कदम उठा रही है। हमने विभिन्न पक्षों को सुना और उन पर विचार किया। यूपी सरकार भी फैसले के समर्थन में है। उनका कहना है कि वह 96 करोड़ रुपये देने में सक्षम नहीं हैं।
आपको बता दें कि मदरसा अजीजिया इजाजुतुल उलूम के प्रबंधक अंजुम कादरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। उन्होंने हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के फैसले को चुनौती दी है। उन्होंने कहा है कि हाई कोर्ट के फैसले से मदरसों में पढ़ने वाले लाखों बच्चों के भविष्य पर सवालिया निशान खड़ा हो गया है। इसलिए इस फैसले पर तुरंत रोक लगाई जाए।
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