इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
The Kashmir Files Film विवेक रंजन अग्निहोत्री की “दी कश्मीर फाइल्स” फिल्म से कई लोग हैरान रह गए हैं। इस फिल्म में सन 1990 में कश्मीरी हिन्दुओं के निर्वासन को विस्तार से प्रस्तुत किया गया है। अपने चौकाने वाले ग्राफिक्स के साथ इस फिल्म ने उन दिनों कश्मीर में जो कुछ भी हुआ था, उसके बारे में चर्चा को एक बार फिर से पुर्नजीवित किया है। फिल्म ने इंटरनेट पर एक नई बहस छेड़ दी है।
“दी कश्मीर फाइल्स’ कश्मीर नरसंहार के पीड़ित पहली पीढ़ी के कश्मीरी पंडितों के साथ वीडियो साक्षात्कार पर आधारित सिर्फ एक फिल्म नहीं है, बल्कि यह सन 1990 में हुए नरसंहार के कारण कश्मीरी हिंदुओं की पीड़ा, कष्ट, संघर्ष और जख्मों के बारे में एक दर्दनाक वृतांत है, जिसने लोकतंत्र, रिलिजन, राजनीति और मानवता के बारे में प्रासंगिक चिंताओं को बढ़ाते हुए पूरे देश में बबंडर खड़ा कर दिया है।
इसके अतिरिक्त, इस फिल्म के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने हाल ही में एक पोस्ट के माध्यम से घोषणा की कि अमेरिका में रोड आइलैंड सरकार ने औपचारिक रूप से उनकी फिल्म ‘दी कश्मीर फाइल्स’ के कारण कश्मीर नरसंहार को मान्यता दी है, जबकि हम तीन दशकों तक इसे नकारते रहे! व्यावसायिक रूप से, ‘दी कश्मीर फाइल्स’ की बॉक्स ऑफिस पर सफलता का सफर जारी है। ट्रेड एक्सपर्ट तरन आदर्श के अनुसार विवेक अग्निहोत्री निर्देशित इस फिल्म में तीसरे दिन 325.35 प्रतिशत की वृद्धि हुई। जबकि 11 दिन बाद यह फिल्म 200 करोड़ से अधिक कमाई कर चुकी है।
कश्मीर घाटी में 18 और 19 जनवरी को मध्य रात्रि में चारों और अँधेरा छा गया था, जिसमें मस्जिदों (जिनसे कश्मीरी हिंदुओं को मिटाने का आह्वान करते हुए विभाजनकारी और आग लगाने वाले नारों का प्रसारण किया था) को छोड़कर हर जगह बिजली बंद हो गई थी। रात ढलते ही कश्मीर घाटी इस्लामवादियों के रक्तपिपासु हुंकारों से गूंजने लगी। हिन्दुओं का घाटी से पलायन कराने के लिए मुसलमानों को भड़काया गया और सड़कों पर ले जाने के लिए बहुत आक्रामक, सांप्रदायिक और धमकी भरे नारों का उपयोग किया गया।
मस्जिदों से मुस्लिमों को फ़रमान जारी किए गए कि असली इस्लामी व्यवस्था की शुरूआत करने के लिए काफिरों को अंतिम धक्का देना होगा। मस्जिदों से इस्लामिक नारों ने हर तरफ भय का शांत माहौल बना दिया था, और हिन्दुओं के खून की प्यासी इस्लामिक भीड़ का हिंदुओं के सफाये के लिए आह्वान किया गया था। मार्शल धुनों के साथ अपमानजनक, सांप्रदायिक और खतरनाक नारों की बौछार के साथ, मुसलमानों को सड़कों पर उतरने और ‘गुलामी’ की बेड़ियों को तोड़ने के लिए उकसाया गया था। कश्मीर को दार अल-हरब से दार अल-इस्लाम बनाने के लिए मुसलमानों की ओर से कश्मीरी हिन्दुओं को तीन विकल्प दिए गए थे: रालिव, चालिव या गालिव (इस्लाम स्वीकार कर लो, या भाग जाओ या मौत के लिए तैयार रहो)।
हिन्दू महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों में से किसी को भी नहीं बख्शा गया क्योंकि कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवादियों ने उनके घरों में घुसकर भयंकर उपद्रव किया था। हिन्दू महिलाओं के साथ उनके परिवारजनों के सामने बलात्कार किया गया और जिन्दा ही टुकड़ों टुकड़ों में काट दिया गया था, बच्चों को गोलियों से भुना गया था और बुजुर्ग भी उन इस्लामिक दरिंदों के नरसंहारों के शिकार हुए।
जम्मू-कश्मीर और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में अधिकारियों को अनगिनत संदेश भेजे गए लेकिन सबने चुप्पी साधे रखी, यहां तक कि सशस्त्र बल भी आदेशों की अनुपस्थिति के कारण हस्तक्षेप नहीं कर सकते थे। कई लाख लोग मारे गए, और कई लाखों लोगों को अपने मृत परिवारजनों की लाशों, उनके घरों और उनकी मातृभूमि कश्मीर को छोड़कर पलायन करना पड़ा।
यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि इतने वर्षों से इस कश्मीरी हिन्दू हॉलोकॉस्ट की कहानी पर मिट्टी डाल दी गयी थी क्योंकि यह न तो पहली ऐसी घटना थी और न ही आखिरी। 1990 का यह हिन्दू नरसंहार सात बड़े भयानक नरसंहारों में से एक था। निम्नलिखित वर्षों में इस्लाम के आगमन के बाद से छः कश्मीरी हिंदू नरसंहारों और उनके कारण हुए हिन्दुओं के निर्वासन की समयरेखा को दर्शाया गया है:
पृथ्वी पर स्वर्ग और भारत माता के मुकुट की मणि के रूप में प्रख्यात कश्मीर, इतने लंबे कालखंड से मूल निवासी कश्मीरी हिंदुओं के उत्पीड़न, विनाश और अपराध के वीभत्स इतिहास का साक्षी रहा है, जिनके साथ हुए अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने वाला कोई भी नहीं है, और रक्षा करने की बात तो छोड़ ही दीजिये। आज तक, भारत के किसी भी भाग का इतिहास उठाकर देख सकते हैं कश्मीरी हिंदुओं और हिंदुओं का एक ही तरीके से संहार किया जाता है, और तो और इस नरसंहार में उन मुसलमानों को भी शामिल किया जाता है जो इस तरह के अत्याचारों पर आपत्ति करते हैं।
इस सब पर समय-समय पर अलग-अलग टोपी पहनने वाले नेहरूवादी सेक्युलरिस्टों द्वारा पर्दा डाला जाता है। कभी कभी वे 35 साल के अधेड़ छात्रों के रूप में हमारे समाने आते हैं तो कभी पुरस्कार विजेता हिंदूफोबिक पत्रकारों और इतिहासकारों के रूप में। कभी-कभी वे तथाकथित ‘उदारवादी’ या लिबरल्स बन जाते हैं जो दी कश्मीर फाइल्स जैसी फिल्म के रूप में विशुद्ध इतिहास को प्रदर्शित करने के लिए किये गए एक छोटे और सत्यनिष्ठ प्रयास को भी नहीं पचा सकते हैं और इसे पूरी तरह से नकारने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं।
लेफ्ट-लिबरल’ गैंग शायद चीखती चिल्लाती हुई कश्मीरी हिंदू महिलाओं (जिनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था और जिनके शरीर के अंगों को आरों के साथ टुकड़ों टुकड़ों में काटकर परिवारजनों को दिखाने के लिए घरों में भीतर फेंका गया था) का करुण क्रंदन न तो खुद सुनना चाहता है और न ही दूसरों को सुनने देना चाहता है।
भारत के सबसे प्राचीन मूल समुदायों में से एक कश्मीरी हिंदुओं की सच्चाई को छुपाने के प्रयोजन से ही शिक्षित, सेक्युलर, सहिष्णु, सुसंस्कृत और शांतिप्रिय कश्मीरी मुसलमानों के मुखौटे का निर्माण लुटियंस मीडिया और बॉलीवुड द्वारा वर्षों से किया गया था। लेकिन अब समय आ गया है कि भारतीय एकजुट होकर सिनेमाघरों में दी कश्मीर फाइल्स फिल्म देखें ताकि आतंकवादियों को अब “भटके हुए नौजवान” और “हेडमास्टर के बेटे” के रूप में प्रचारित न किया जाए।
साथ ही साथ, आइए हम आत्मनिरीक्षण के लिए कुछ समय निकाले और यह समाधान ढूढें कि हम भारत के सेक्युलर ताने-बाने को बर्बरता के ऐसे घृणित और जघन्य कुकृत्यों से टूटने से कैसे बचा सकते हैं। नेहरूवादी-सेक्युलरिस्टों से निम्नलिखित प्रासंगिक प्रश्न उत्तर की आशा करते हैं:
निःसंदेह, मूल निवासी कश्मीरी हिंदुओं के सांप्रदायिक आधार पर हुए नरसंहार की कलुष सच्चाई पर जानबूझकर पर्दा डाला जा रहा था, लेकिन अब जब विवेक अग्निहोत्री ने एक साहसिक प्रयास किया है, तो क्या यह राष्ट्र अपनी अंतरात्मा को जगाएगा या कैसे जगाएगा? यह उत्तर देने के लिए सबसे कठिन प्रश्न होगा।
Also Read : The Kashmir Files Controversy दो पक्षों में विवाद का विषय बनी फिल्म कश्मीर फाइल्स
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.