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अजीत मैंदोला
Uttarakhand elections : उत्तराखण्ड में अब तक के माहौल को देख कर लगता है कि बीजेपी और आम आदमी पार्टी ही चुनाव लड़ रही हैं। प्रचार का मामला हो या सोशल मीडिया का आप औऱ बीजेपी ही नजर आती हैं। बीजेपी की तरफ से सबसे बड़ा चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बने हैं तो आप ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पहाड़ों के गांव गांव में पहुंचा दिया है। जहाँ तक कांग्रेस का सवाल है तो पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ही मीडिया में ही नजर आते हैं।
ऐसा लगता है कि कांग्रेस में सब कुछ हरीश रावत ही हैं।गिनती के बचे कुछे नेता चुनाव में दिलचस्पी लेते कम ही दिखाई दे रहे हैं। अगर यही स्थिति तीन माह बाद होने वाले चुनाव तक बनी रही बीजेपी की सत्ता में वापसी लगभग तय हो जाएगी।अभी तक माहौल को देख कर लग भी रहा है कि बीजेपी आखिर में बहुमत का आंकड़ा पार कर लेगी।बीजेपी पूरी ताकत से चुनाव लड़ती दिख भी रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्मा पहाड़ में कम नही हुआ है।
गढ़वाल मंडल में तो आल वेदर रोड़ और बद्रीनाथ नाथ धाम के निकट ट्रेन जैसी परियोजनाओं के नजर आने के बाद तो मोदी के प्रति पहाड़ियों में दीवानगी बढ़ी है। बाकी शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देहरादून की रैली में गढ़वाली में भाषण दे गढ़वालियों को रिझाने में कोई कोर कसर नही छोड़ी। इसके साथ 20 हजार करोड़ की सौगात दे गढ़वाल मंडल को बड़ा सन्देश दिया। इसका असर गढ़वाल मंडल पर तो पड़ेगा ही पश्चिम उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में भी इससे लाभ मिलेगा। इसके बाद प्रधानमंत्री 24 दिसम्बर को कुमाऊँ मण्डल के दौरे पर हजारों करोड़ की परियोजनाओं का उद्दघाटन कुमायूँ के वोटरों पर असर डालेंगे।
मतलब बीजेपी आचार संहिता लगने से पूर्व प्रधानमंत्री मोदी को असल चेहरे के रूप में ऐसे स्थापित कर देगी कि उनके आसपास शायद ही कोई चेहरा नजर आए।बीजेपी के पास पीएम मोदी के साथ मुख्यमंत्री के रूप में धामी भी सरकार की छवि को सुधारने की कोशिश कर रहे है। उधर आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के सीएम केजरीवाल के साथ अपने सीएम उम्मीदवार अजय कोटियाल को टक्कर में सामने किया है। (Uttarakhand elections)
जबकि कांग्रेस की एक मात्र उम्मीद हरीश रावत है।प्रदेश अध्य्क्ष गणेश गोदियाल भी रावत का ही झंडा उठाये दिखते है।अपनी उनकी कोई पहचान नही दिख रही है। विधायक दल नेता प्रीतम सिंह की यही कोशिश है कांग्रेस से बीजेपी में गये बड़े चेहरों की वापसी कराई जाए जिससे पूर्व सीएम रावत का कद पार्टी में कम हो। क्योंकि दोनों के बीच मे जबर्दस्त खींचतान है। पूर्व प्रदेश अध्य्क्ष किशोर उपाध्याय पूरी तरह से साइड किये जाने से दुखी हैं।
उनकी भी रावत से नही बनती है।उनके बीजेपी में जाने की अटकलें भी हैं।गढ़वाल से कांग्रेस के पास किशोर उपाध्याय और प्रीतम सिंह ही दो पुराने चेहरे बचे हुए हैं । कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व में कोई ऐसा चेहरा नही है जो उत्तराखण्ड की जनता पर असर डाल सके। ऐसे में हरीश रावत ही कोई चमत्कार कर पाएं तो करें। लेकिन बीजेपी जिस तरह से दाव चल रही है उससे कांग्रेस का संकट और बढ़ गया है। पहला कृषि कानून खत्म होने से किसानों से जुड़ा बड़ा मुद्दा कांग्रेस के हाथ से निकल गया।दूसरा चारधाम देवस्थानम प्रबन्धन अधिनियम वापस ले धामी सरकार ने विपक्ष को बेकपुट पर ला दिया।खास तौर पर कांग्रेस को।गढ़वाल मंडल जहां पर कांग्रेस को इस मुद्दे से बड़ी उम्मीदें थी,उसे झटका लगा है। (Uttarakhand elections)
बीजेपी चुनाव करीब आते ही ऐसा माहौल बनाने में लगी जिससे विपक्ष चाहकर भी कुछ नही कर पा रहा है।कांग्रेस और आप की नजर बीजेपी की उन कमजोर कड़ियों पर लगी थी जो पार्टी छोड़ सकते हैं। उनमें हरक सिंह रावत और सतपाल महाराज के नाम लिए जाते रहे।दोनों नेताओं का विचारधारा से कोई लेना देना नही है। दोनों की पहली कोशिश यही रहती है कोई दल उन्हें सीएम चेहरा बना दे।
उसमें सफल नही हुए तो मतदाता का मूड भांपने की कोशिश कर दल बदलने से नही चूकते।इनके साथ एक नाम विजय बहुगुणा का है। बीजेपी अगर जरा सी भी कमजोर पड़ती दिखाई देगी तो ये तीनों नेता दल बदल सकते है।लेकिन कांग्रेस और आप ने सीएम चेहरा घोषित कर इन नेताओं का खेल बिगाड़ दिया। लेकिन इसके बाद भी आये दिन इन नेताओं के बीजेपी छोड़ने की अटकलें लगती हैं।लेकिन बीजेपी आलाकमान ने भी फैसले कर सत्ता की वापसी का माहौल बना दलबदल की कोशिश में लगे नेताओं को झटका दिया है। (Uttarakhand elections)
दरअसल उत्तराखण्ड के गठन के बाद से किसी भी दल में ऐसा कोई चेहरा नही रहा जिसके नाम पर कोई पार्टी चुनाव जीत सके। इसी के चलते कांग्रेस और बीजेपी में हर पांच सत्ता की अदला बदली होती रही है। लेकिन इस बार हालात बदल गए।एक तो आम आदमी पार्टी के रूप में तीसरा मोर्चा सामने आ गया। जो बीजेपी को कम कांग्रेस को ज्यादा नुकसान कर सकता है। चुनाव में पैसे के खर्चे के मामले में आप कांग्रेस पर भारी है।
कांग्रेस पैसे से तो कमजोर है ही, केंद्र में पार्टी का कमजोर होना भी है पार्टी के हित मे नही है। उधर सत्ताधारी बीजेपी हर तरफ से मजबूत ही मजबूत है। मोदी जैसा सशक्त चेहरे के सामने सब बोने हैं। बीजेपी के किसी नेता की इतनी हैसियत नही है कि वह आलाकमान के खिलाफ जरा सी भी आवाज उठा सके।ऐसे संकेत हैं कि बीजेपी आलाकमान मौजूदा विधायकों में से 20 से 25 के टिकट काट सकता है।
चुनाव में चेहरा प्रधानमंत्री मोदी का ही होगा।जिसका तोड़ फिलहाल विपक्ष के पास है नही। कांग्रेस पुराने ढर्रे से बाहर आने को तैयार है नही।संगठन के नाम पर कुछ नही है। जात पात की राजनीति और नकारात्मक वोटों के सहारे चुनाव जीतने की उम्मीद पाले हुए है। दूसरी एक बड़ी उम्मीद कांग्रेस ने यह पाली हुई है कि पांच साल में सत्ता बदलेगी और जनता हमे जिताएगी। लेकिन इस बार अभी तो ऐसा होता नही दिख रहा तीन माह बाद वोटिंग के दिन क्या होता है तभी पता चलेगा।समाप्त
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