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दादा जे पी वासवानी
एक सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य के लिए कुछ विशिष्ट नियमों और सामाजिक कर्तव्यों का पालन करना बेहद आवश्यक हो जाता है। इस विश्व में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो सबकुछ जानता हो, हम जिससे भी मिलते हैं, हमारी मुलाकात जिस भी व्यक्ति से होती है उससे हमें कुछ ना कुछ सीखने को अवश्य मिलता है। हमें हर तरह से अन्य लोगों के दृष्टिकोण और उनके अभिवृत्ति का सम्मान करना चाहिए। अन्य लोगों की बात सुनने, उन्हें समझने के लिए हमें हमेशा अपने मस्तिष्कको खुला रखना चाहिए… लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है कि हम दूसरों की प्रतिक्रिया, उनके मत या विचार के दास बनकर रह जाए।
आधुनिक मनोविज्ञान इस बात पर जोर देता है कि व्यक्ति को अपनी एक स्वस्थ छवि निर्धारित करने, उससे गठिन करने का प्रयत्न करना चाहिए। आप स्वयं से पूछिए – क्या आपकी यह छवि दूसरों की इच्छा अनुसार होनी चाहिए… अन्य लोगों के कहे अनुसार होनी चाहिए… क्या अन्य लोग जैसी उम्मीद करते हैं वैसी होनी चाहिए? क्या आपके लिए अन्य लोगों के अनुसार अपने जीवन के नियम बनाएंगे… क्या अन्य लोग यह निर्धारित करेंगे कि आप क्या पहनेंगे, क्य खाएंगे, कैसे कपड़े पहनेंगे? ऐसा जीवन किसी भी व्यक्ति के लिए अहसहनीय हो सकती है। बहुत से लोग निरंतर अपनी छवि निर्धारित करने, उसे गणने के दबाव में रहते हैं. मैं काम के लिए जाऊंगा तो पड़ोसी क्या सोचेंगे… अगर मैंने पार्टी नहीं दी तो लोग क्या कहेंगे… अगर मैंने अपनी बेटी की आलीशान शादी नहीं की तो मेरे परिचित क्या कहेंगे….और यह सिलसिला निरंतर चलता रहता है। जब आप ये सवाल पूछेंगे कि लोग क्या कहेंगे तो मेरा जवाब हमेशा यही होगा कि अन्य लोग क्या कहेंगे इस बारे में आपको परेशान नहीं होना चाहिए। उन्हें जैसा अच्छा लगता है…उन्हें कहने दीजिए… लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं होना चाहिए कि उनक अकुछ भी कहना आपको परेशान करने लगे। लोग क्या कहेंगे ये बात बिल्कुल मायने नहीं रखती… मायने बस यही रखता है कि आप क्या करते हैं.. आपको केवल अपना कर्तव्य करना चाहिए…
वो जो कहते हैं… उन्हें बस कहने दीजिए…
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