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What is Right to be Funny क्या होता है राइट टु बी फनी?

BY: Sameer Saini • LAST UPDATED : December 26, 2021, 3:10 pm IST
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What is Right to be Funny क्या होता है राइट टु बी फनी?

What is Right to be Funny

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली :

What is Right to be Funny मद्रास हाईकोर्ट ने मजाकिया फेसबुक पोस्ट पर एक युवक के खिलाफ दर्ज हुई एफआईआर रद्द कर दी है। कोर्ट ने कहा कि अगर ये फैसला कार्टूनिस्ट या व्यंग्यकार दे रहे होते तो हो सकता कि वे फंडामेंटल ड्यूटी में ‘ड्यूटी टु लाफ’ को जोड़ते। यानी मौलिक कर्तव्यों में हंसने का कर्तव्य भी जोड़ा जा सकता था। (राइट टु बी फनी यानी मजाकिया होने का अधिकार)। मजाकिया होने का अधिकार संविधान 19 (1) में देखा जा सकता है। आइए जानते हैं राइट टु बी फनी क्या होता है।

जानकारी के अनुसार मद्रास हाईकोर्ट ने सीपीआई (एमएल) के उस पदाधिकारी के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द कर दी है, जिसने छुट्टियों की तस्वीरें अपलोड की थीं और उस पर कैप्शन लिखा था, ‘शूटिंग प्रैक्टिस के लिए सिरुमलाई की यात्रा। एफआईआर रद्द करते हुए मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने ‘हंसने के कर्तव्य’ और ‘मजाकिया होने के अधिकार’ पर कुछ दिलचस्प टिप्पणियां कीं। (What is Right to be Funny)

क्या है मामला?

तमिलनाडु में कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई-एमएल) के नेता मथिवनन अपनी फैमिली के साथ घूमने गए। इस दौरान उन्होंने ट्रिप की फोटोज फेसबुक पर पोस्ट की। फोटो के कैप्शन में लिखा ‘शूटिंग (फोटोग्राफी) प्रैक्टिस के लिए सिरुमलाई की यात्रा’। दरअसल, मथिवनन ने ये कैप्शन फोटोग्राफी के लिए लिखा था, लेकिन पुलिस ने शूटिंग को गोली चलाने से जोड़ते हुए उनपर केस दर्ज कर लिया। (What is Right to be Funny)

मथिवनन पर आपराधिक साजिश रचने, देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने समते कई गंभीर धाराओं में केस दर्ज कर किया गया। पुलिस ने मथिवनन को गिरफ्तार कर रिमांड के लिए मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया। हालांकि, मजिस्ट्रेट ने रिमांड देने से मना कर दिया। इसके बाद दर्ज केस हटाने के लिए मथिवनन ने मद्रास हाईकोर्ट का रुख किया।

क्या कहा हाईकोर्ट ने?

मामले की सुनवाई जस्टिस जीआर स्वामीनाथन की सिंगल बेंच ने की। जस्टिस स्वामीनाथन ने अपने जजमेंट में कहा कि संविधान के आर्टिकल 19(1) (ए) में राइट टु बी फनी को भी जोड़ा जा सकता है। यानी मजाकिया होने का अधिकार। आर्टिकल 19(1)(ए) के तहत हमें राइट टु फ्रीडम एंड एक्सप्रेशन मिला है।

जजमेंट की शुरूआत में ये कहा कि अगर कोई कार्टूनिस्ट या व्यंग्यकार इस फैसले को दे रहे होते, तो वे फंडामेंटल ड्यूटी में ड्यूटी टु लाफ को भी जोड़ते। यानी हंसना भी आपके मौलिक कर्तव्यों की सूची में जोड़ा जाता। कोर्ट ने कहा कि मजाकिया होना और दूसरे का मजाक उड़ाना दो बिल्कुल अलग-अलग बातें हैं। हमें किस बात पर हंसना चाहिए ये एक गंभीर प्रश्न है। किसी भी सामान्य व्यक्ति को मथिवनन की फेसबुक पोस्ट देखकर हंसी ही आई होगी। कोर्ट ने इस आधार पर मथिवनन पर दर्ज एफआरआई रद्द कर दी। (What is Right to be Funny)

दिया जा सकता है मजाकिया होने का अधिकार: हाई कोर्ट

आसान भाषा में समझें तो राइट टु बी फनी यानी मजाकिया होने का अधिकार। हाई कोर्ट का मानना है कि जिस तरह अभी आपको संविधान के तहत कई तरह के अधिकार मिले हुए हैं, उसी तरह मजाकिया होने का अधिकार भी दिया जा सकता है।

कोर्ट ने भारत में रीजनल डाइवर्सिटी का हवाला देते हुए कहा कि हमें किस बात पर हंसना है यह एक गंभीर सवाल है। कोर्ट ने इसको समझाने के लिए अलग-अलग उदाहरण दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि ‘मजाकिया होना’ और ‘दूसरे का मजाक उड़ाना’ अलग है, अदालत ने अलंकारिक रूप से कहा कि “किस पर हंसें?” यह एक गंभीर प्रश्न है। कोर्ट ने बताया कि भारत की क्षेत्रीय विविधता की पृष्ठभूमि में यह प्रश्न प्रासंगिक क्यों हो जाता है।

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