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When will Kashmiri Pandits Celebrate Diwali at Their Homes? कश्मीरी पंडित अपने घर दिवाली कब मनाएंगे?

PUBLISHED BY: India News Editor • LAST UPDATED : October 16, 2021, 12:02 pm IST
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When will Kashmiri Pandits Celebrate Diwali at Their Homes? कश्मीरी पंडित अपने घर दिवाली कब मनाएंगे?

When will Kashmiri Pandits Celebrate Diwali at Their Homes?

When will Kashmiri Pandits Celebrate Diwali at Their Homes?

कश्मीरी पंडित अपने घर दिवाली कब मनाएंगे?

आलोक मेहता

आईटीवी नेटवर्क इंडिया न्यूज और दैनिक आज समाज के संपादकीय निदेशक

कश्मीरी पंडित डायस्पोरा के एक वेबिनार के बाद लंदन से एक पारिवारिक मित्र की बिटिया का फोन आया। उसने कहा ‘आपके तीन घंटे का कार्यक्रम सुनकर रोना आ गया। इतने बड़े नेता, सांसद, कानूनविद, विशेषज्ञ ने बहुत भावुकता से बड़ी बातें स्वीकारी और कश्मीरी पंडितों के भविष्य के लिए कुछ रास्ते भी सुझाए। लेकिन पहले मेरे दादाजी और फिर पापा भी तो बीस साल से ऐसी उम्मीदें बताते थे। मुझे बताइए हम कश्मीरी पंडित परिवार एक साथ इकट्ठे होकर दीवाली कब मना सकेंगे?

मेरे पास सीधा उत्तर नहीं था। किसी तरह समाज, मोदी सरकार, सुरक्षा तंत्र पर भरोसा कर नए वर्ष के लिए नई आशा रखने की बातें की। बातचीत में उसके इस सवाल ने मुझे और विचलित किया कि ‘कई जिम्मेदार नेता, विधिवेत्ता, पत्रकार मानव अधिकारों की आवाज उठाते हैं। उत्तर प्रदेश, राजस्थान जैसे राज्यों में हत्याओं को लेकर बहुत हंगामा कर देते हैं। आतंकवादी अथवा नक्सली गतिविधियों के आरोप में गिरफ्तारी पर सबूतों और मानव अधिकारों की बात संसद, अदालत, मीडिया में आवाज उठाते हैं, लेकिन तीस साल पहले पंडितों के घरों को जलाने, हत्याओं के आरोपियों को सजा दिलाने, उजड़े हुए लाखों परिवारों को वापस बसाने के लिए कितनी आवाज उठाते हैं?

क्या उनके मानव अधिकार, न्याय पाने के अधिकार नहीं हैं? इसमें कोई शक नहीं कि कश्मीरी पंडितों की पीड़ा और धैर्य की सीमाएं टूट रही हैं। कश्मीर में लोकतंत्र की लड़ाई लम्बी चली है। मैं 1977 से जम्मू कश्मीर जाता रहा हूं। श्रीनगर, जम्मू और दिल्ली में विभिन्न दलों के नेताओं, अधिकारियों, सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों और सेना या पुलिस के अधिकारियों से बात होती रही है। सत्तर, अस्सी और नब्बे के दशकों में स्थितियां बहुत बदली हैं। 1990 में पाकिस्तानी षड्यंत्र ने जैसे झेलम में ही आग लगा दी। हजारों कश्मीरी पंडित परिवारों के घर जला दिए गए, स्त्री पुरुषों को मार दिया गया और बड़ी संख्या में लोग भागकर जम्मू, दिल्ली तथा देश दुनिया में विस्थापितों की तरह रोजी रोटी का इंतजाम करने लगे। एक तरह से दो पीढ़ियों की जिन्दगी बदल गई। एक समय था, जब लगता था कि केंद्र की सत्ता में कश्मीरियों का प्रभुत्व है।

अक्सर, धर, कौल, राजदान, फोतेदार जैसे अनेक सरनेम वाले लोग महत्वपूर्ण पदों पर थे। दूसरी तरफ 1974 में जब इंदिरा गांधी ने एक समझौते के बाद शेख अब्दुल्ला को जेल से रिहा कर जम्मू कश्मीर की सत्ता सौंपी, तब दिल्ली के सप्रू हॉउस में शेख साहब के लिए एक स्वागत सभा का आयोजन हुआ था। एक संवाददाता के रूप में मैं वहां उपस्थित था और मुझे अब तक याद है, उन्होंने जोशीले भाषण में कश्मीर के सामाजिक आर्थिक विकास के बड़े वायदे किए थे। उन्होंने लगभग आठ साल राज किया। फिर उनके बेटे फारूक अब्दुल्ला और पोते ओमर अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर और केंद्र में वर्षों तक सत्ता में रहे हैं।

उनकी तरह मुफ़्ती मोहम्मद और महबूबा मफ्ती ने भी सत्ता सुख लिया। लेकिन कश्मीर के बजाय इन दो परिवारों और उनके नजदीकी लोगों, समर्थकों की ही आर्थिक तरक्की होती रही। अब्दुल्ला मुफ़्ती सत्ता काल में ही आतंकवादी गतिविधियां बढ़ती गई। कश्मीरी पंडितों के पलायन की स्थितियां उस समय बनी, जब मुफ़्ती साहब केंद्र में गृह मंत्री थे। महबूबा के मुख्यमंत्रित्व काल में भ्रष्टाचार के अलावा पक्षपात के कारण आतंकवादियों का समर्थन करने वाले कई अपराधियों को जेल से रिहा किया गया, जिसके दुष्परिणाम अब तक प्रदेश ही नहीं देश भी भुगत रहा है। इस बात को कृपया दिल्ली में बैठे पत्रकारों अथवा नरेंद्र मोदी सरकार का पूर्वाग्रह न समझिए। अमेरिका में बैठे डॉ. सुरेंद्र कौल द्वारा आयोजित वेबिनार में श्रीनगर के मेयर जुनैद अजीम मट्टू ने बहुत भावुक और तीखे शब्दों में कश्मीर की दुर्दशा के लिए उन दो परिवारों की सत्ता को ही जिम्मेदार बताया और उनके चंगुल से प्रदेश को बचाने का आग्रह किया।

इस कार्यक्रम में कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद, पूर्व केंद्रीय मंत्री दिनेश त्रिवेदी, सांसद विधिवेत्ता विवेक तन्खा सहित कश्मीरी विशेषज्ञों ने माना कि कश्मीरी पंडितों को वापस कश्मीर घाटी में बसने के लिए अब बड़े पैमाने पर गंभीर प्रयास करने होंगे। जम्मू कश्मीर से 370 हटाने और राष्ट्रपति शासन के दौरान पिछले एक डेढ़ वर्ष के दौरान लोगों में नया विश्वास पैदा हुआ और कश्मीरी पंडित परिवार वापस आने का सिलसिला भी शरू हुआ, लेकिन पिछले दिनों आतंकवादियों ने व्यापारी माखन लाल बिंद्रू के आलावा एक स्कुल के प्रिंसिपल, शिक्षक और एक सामान्य दुकानदार की ह्त्या कर नए सिरे से भय का माहौल बना दिया और पंडित परिवार कर्मचारी फिर से श्रीनगर छोड़ने लगे। असल में कश्मीरी पंडितों की धीरे धीरे वापसी के बजाय केंद्र, राज्य सरकारों के साथ निजी क्षेत्र के संयुक्त प्रयासों से उनके लिए युद्ध स्तर पर नई बस्ती, नई इमारतें बनाकर सुरक्षा प्रबंध के साथ अधिकाधिक संख्या में परिवारों को उनके पुराने नए घरों में बसाने के प्रयास होने चाहिए। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि इतनी गंभीर घटनाओं के बावजूद फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती कश्मीर की स्थिति सुधारने के लिए पाकिस्तान से वार्ता को ही एकमात्र रास्ता बता रहे हैं। अब तो सारी दुनिया समझ और स्वीकार रही है कि पाकिस्तान की आई एस आई और सेना ही आतंकवादियों को पाल पोसने के साथ कश्मीर और अन्य क्षेत्रों में हिंसक हमले करवा रही हैं। पचासों सबूत मिले हैं। पाकिस्तान खुलकर तालिबान, अल कायदा, जैश ए मोहम्मद, हक्कानी समूह आदि का समर्थन कर रहा है। उसके इस खुले आक्रमण के बीच क्या वार्ता हो सकती है। अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी पिछले वर्षों में सद्भाव मैत्री के कितने सन्देश और प्रयास कर चुके, लेकिन पाकिस्तान का रुख नहीं बदला है। बहरहाल, जम्मू कश्मीर में शांति और व्यवस्था के लिए केंद्र को और अधिक कठोर कदम उठाने पद सकते हैं। सामाजिक सौहार्द और सुरक्षा के इंतजाम से ही कश्मीर की दशा दिशा सुधर सकेगी।

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