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अंग्रेजी शासनकाल में जाने कैसे हुआ था महाकुंभ का आयोजन? मामूली सी रकम खर्च कर किया था हजारों का मुनाफा

BY: Shubham Srivastava • LAST UPDATED : January 25, 2025, 10:25 am IST
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अंग्रेजी शासनकाल में जाने कैसे हुआ था महाकुंभ का आयोजन? मामूली सी रकम खर्च कर किया था हजारों का मुनाफा

Kumbh In British Rule : ब्रिटिश शासन में कुंभ का कैसे होता था आयोजन

India News (इंडिया न्यूज), Kumbh In British Rule : यूपी के प्रयागराज में इस वक्त महाकुंभ का आयोजन चल रहा है। योगी सरकार ने इस बार पहले से भी ज्यादा बड़े पैमाने पर इसे आयोजित किया है। महाकुंभ में की गई तैयारियों को करने के लिए प्रशासनिक को कई महीनों की तैयारी लगती है। वहीं अगर हम कुंभ के इतिहास को देखे तो भारत में सत्ता कोई भी रही है और सल्तनत चाहे किसी की रही हो कुंभ के आयोजनों पर कभी भी कोई असर नहीं पड़ा है। अंग्रेजों से लेकर मुगलों तक सभी ने इसका आयोजन करवाया और जमकर लोगों से कर वसुला। महाकुंभ जैसी व्यवस्था के लिए अंग्रेजों ने पहले कई साल तो सिर्फ उन्होंने अपने कई अफसरों को सिर्फ इसकी रिपोर्ट तैयार करने के लिए लगा दिया।

अंग्रेजो को इस बात का पता चल गया कि इसके आयोजन से उनको काफी रेवेन्यू मिल सकता है। इसके बाद उन्होंने कई कुंभ के आयोजन को देखकर समझा, फिर इसे पर टैक्स भी लगाए। ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने न सिर्फ कुंभ पर टैक्स लगाए, बल्कि इसके आयोजन के लिए धनराशि भी लगाई और फिर इससे रेवेन्यू भी पैदा किया।

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अंग्रेजी शासनकाल ने जमकर वसूला कर

पत्रकार व लेखक धनंजय चोपड़ा अपनी किताब (भारत में कुंभ) में इस बात का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि, ‘कुंभ मेले से राजस्व वसूली की परंपरा मुगलकालीन भारत में शुरू हुई थी। बाद में अंग्रेजों ने इसे न केवल जारी रखा, बल्कि इसका दायरा भी बढ़ा दिया। अंग्रेजी शासनकाल में कर्मकांड कराने वालों से लेकर वेणीदान की परंपरा निभाने वालों तक से कर वसूला गया। इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि जब से कुंभ मेलों में सरकार का दखल बढ़ा, तब से राजस्व का लाभ भी अस्तित्व में आ गया।

अंग्रेजी सरकार को हुआ था लाभ

प्रयागराज के क्षेत्रीय अभिलेखागार में रखे दस्तावेजों में अंग्रेजी शासनकाल में आयोजित कुंभ मेलों से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियां दर्ज हैं। इनमें साल 1862 के कुंभ मेले के खर्च और आय का ब्योरा भी शामिल है। उस रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर-पश्चिम प्रांत के सचिव एआर रीड की रिपोर्ट के अनुसार, इस कुंभ मेले में 20,228 रुपये खर्च हुए थे, जबकि राजस्व के रूप में अंग्रेजी सरकार को 49,840 रुपये हासिल हुए थे। यानी, सरकार को 29,612 रुपये का शुद्ध लाभ हुआ था। इसके अलावा साल 1894 के मेले में विभिन्न स्रोतों से 67,306 रुपये 11 आने 3 पैसे का राजस्व प्राप्त हुआ।

नाइयों से वसूला भारी कर

अंग्रेजी सरकार ने सबसे ज्यादा कर नाइयों से वसूला था। असल में कुंभ में स्नान के बाद बाल मुंडवाने की परंपरा भी रही है। 1870 में ब्रिटिशों ने 3,000 नाई केंद्र स्थापित किए थे और उनसे लगभग 42,000 रुपये आए थे। यही नहीं हर नाई को 4 रुपये टैक्स देना पड़ता था। ब्रिटिश शासन के शुरुआती दौर में मेला उनके लिए एक चुनौतीपूर्ण प्रबंधन का विषय था, लेकिन जल्द ही उन्होंने इसे आर्थिक अवसर के रूप में देखा

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