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India News (इंडिया न्यूज), Naga Sadhu: देश में जब भी कुंभ मेला लगता है, तो साधु-संतों की खूब चर्चा होती है। इनमें सबसे ज्यादा चर्चा नागा साधुओं की होती है, क्योंकि सदियों से नागा साधुओं को आस्था के साथ-साथ आश्चर्य और रहस्य की दृष्टि से भी देखा जाता रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि वे आम जनता के लिए कौतूहल का विषय होते हैं, क्योंकि उनकी वेशभूषा, क्रियाकलाप, साधना-पद्धति आदि सभी रहस्य से भरे होते हैं। कोई नहीं जानता कि वे कब प्रसन्न होंगे और कब नाराज।
कहते हैं कि प्राचीन काल में मंदिरों और मठों की रक्षा के लिए नागा साधुओं को योद्धाओं की तरह प्रशिक्षित किया जाता था। धार्मिक स्थलों की रक्षा के लिए उन्होंने कई युद्ध भी लड़े हैं। लेकिन किसी व्यक्ति के लिए नागा साधु बनना आसान नहीं होता, क्योंकि उनकी ट्रेनिंग किसी कमांडो की ट्रेनिंग से कम कठिन नहीं होती। इतना ही नहीं, परंपरा के अनुसार, नागा साधु के रूप में दीक्षा लेने से पहले उन्हें अपना पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण करना होता है।
आजीवन ब्रह्मचर्य की शपथ नागा साधु बनने की पहली शर्त है। इसके लिए साधक को ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। संयम की स्थिति को कई तरह से परखा जाता है। वासना और इच्छाओं से पूरी तरह मुक्त साधक ही नागा साधु बन सकते हैं।
वस्त्रों का त्याग नागा साधु बनने की दूसरी शर्त है। हालांकि, कुछ नागा भगवा वस्त्र भी पहनते हैं, जो अखाड़ों के नियमों के अनुसार तय होता है। लेकिन, वह भी सिर्फ एक भगवा वस्त्र होता है, इससे ज्यादा वस्त्र पहनने की मनाही नागा साधु को होती है। वस्त्रों का त्याग जीवन के प्रति उनकी उदासीनता का प्रतीक है।
ज्यादातर नागा साधु सिर्फ राख को ही अपना वस्त्र मानते हैं। उन्हें शिखा सूत्र (चोटी) का त्याग करना होता है। उन्हें या तो अपने पूरे बालों का त्याग करना होता है या फिर सिर पर पूरी जटा धारण करनी होती है, जिसे वे कभी काट या छांट नहीं सकते।
सिर्फ कपड़े और बाल ही नहीं, बल्कि उन्हें भोजन के लिए भीख भी मांगनी होती है। परंपरा के अनुसार, वे एक दिन में अधिकतम सात घरों से भीख मांग सकते हैं।
सबसे कठिन बात यह है कि मौसम कोई भी हो, वे केवल जमीन पर ही सो सकते हैं। वे बिस्तर, खाट, स्टूल आदि का उपयोग नहीं कर सकते। वे सोने के लिए मोटे बिस्तर यानी गद्दे का उपयोग नहीं कर सकते। वर्षों के प्रशिक्षण से उनका शरीर ऐसा बन जाता है कि उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
नागा साधु किसी सन्यासी के अलावा किसी के आगे सिर नहीं झुकाते। लिंग को काटना भी नागा साधुओं की एक रहस्यमयी प्रथा है, जिसका उद्देश्य पूर्ण ब्रह्मचर्य है।
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