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India News (इंडिया न्यूज), Prayagraj Maha Kumbh 2025: महाकुंभ 2025 में आए एक संत चर्चा का विषय बन गए हैं। इन्हीं संतों में से एक संत ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया में कंप्यूटर इंजीनियर की नौकरी छोड़कर संन्यास की दीक्षा ले ली। उन्होंने युवावस्था में ही आरबीआई की नौकरी से वीआरएस ले लिया और लाखों रुपये सालाना पैकेज पर नौकरी की। ये संत वैष्णव संप्रदाय के निर्वाणी अनी अखाड़े से जुड़े हैं और इनका नाम श्री श्री 1008 रामकृष्ण दास जी महाराज है। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के शहर गोरखपुर के चौरी चौरा इलाके के रहने वाले रामकृष्ण दास जी महाराज आजमगढ़ के कोल्हू नाथ राम जानकी मंदिर के महंत हैं।
रामकृष्ण दास जी महाराज ने कंप्यूटर इंजीनियरिंग में बीटेक की डिग्री हासिल करने के बाद 1991 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया में नौकरी की। तीन साल में उन्होंने नासिक-देवास और नोएडा में तीन जगहों पर कंप्यूटर इंजीनियर के तौर पर काम किया। नोएडा में ही उनकी मुलाकात महंत राम प्रसाद से हुई। कुछ दिनों तक उनके सानिध्य में रहने के बाद उन्हें भौतिक संसार से ऊब होने लगी।
इसके बाद रामकृष्ण दास जी महाराज ने महंत राम प्रसाद को अपना गुरु मान लिया और सांसारिक मोह-माया त्यागकर संन्यासी का जीवन जीने का फैसला किया। वर्ष 1994 में उन्होंने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की नौकरी छोड़ दी। कुछ दिनों तक अपने गुरु की सेवा करने के बाद वे वैष्णव संप्रदाय के निर्वाणी अनी अखाड़े में शामिल हो गए। अखाड़े से जुड़कर उन्होंने सनातन की सेवा और प्रचार-प्रसार किया और आजमगढ़ में अपना आश्रम बनाया।
आश्रम द्वारा संचालित कई स्कूल आज भी बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से जुड़े होने के कारण कई लोग उन्हें करेंसी बाबा के नाम से जानते हैं। प्रयागराज महाकुंभ में सेक्टर 5 में महंत रामकृष्ण दास जी महाराज का शिविर लगा हुआ है। शिविर में प्रतिदिन सैकड़ों लोग उनके दर्शन और आशीर्वाद लेने आते हैं।
स्वामी रामकृष्ण दास जी महाराज का कहना है कि भारतीय रिजर्व बैंक की नौकरी में नाम और पैसा तो बहुत था, लेकिन शांति और आराम नहीं था। संन्यासी के जीवन में आकर मुझे दूसरों की सेवा करने का अवसर मिला है। दूसरों की सेवा करना और सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार करना मन को सुखद अनुभूति देता है।
इस अवसर पर स्वामी रामकृष्ण दास जी महाराज ने आगे कहा कि एक बार तो उन्हें लगा कि उन्होंने गलत निर्णय ले लिया है, लेकिन कुछ ही दिनों में उन्हें एहसास हो गया कि दूसरों की सेवा करना ही मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म है। उन्होंने कहा कि वह अपने यहां आने वाले भक्तों को मानव धर्म का पालन करने का संदेश देते हैं।
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