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Peasant Movement Who gave Edge to the Struggle किसान आंदोलन के महारथी जिन्होंने दी संघर्ष को धार

India News Editor • LAST UPDATED : November 19, 2021, 4:18 pm IST

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Peasant Movement Who gave Edge to the Struggle

इंडिया न्यूज नई दिल्ली।

गत एक साल से चले आ रहे किसान आंदोलन के बारे में तो आप भली भांति जानते ही होंगे। किस प्रकार किसानों ने पुलिस के भारी भरकम इंतजामों को धत्ता बताते हुए बेरिकेड तोड़ दिल्ली की ओर कूच किया। इस दौरान पंजाब हरियाणा के किसानों का एक नहीं बल्कि कई जगह पुलिस के साथ टकराव भी हुआ। करनाल में तो दिल्ली कूच के लिए निकले किसानों पर लाठियां तक भांजी गई। लेकिन किसान नहीं मानें और दिल्ली की सीमाओं को चारों तरफ से घेर लिया। वहीं आंदोलन को गति देने के लिए कई किरदार ऐसे हैं जो पर्दे के पीछे से किसानों को साथ जोड़ने के लिए दिन रात प्रयासरत रहे। इनमें युवा से लेकर उम्र दराज तक किसान हितैषी शामिल रहे हैं। जिन्होंने हर पल किसान आंदोलन को जिंदा रखने के लिए काम किया है।

भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत(Peasant Movement Who gave Edge to the Struggle)

शुरू में कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब और हरियाणा के किसानों ने सिर उठाया और दिल्ली कूच के लिए निकल पड़े । इस दौरान जब किसानों पर पुलिस ने लाठियां बरसाई। तब तक इस आंदोलन को हरियाणा-पंजाब का आंदोलन बताया जा रहा था। किसानों की कॉल दिल्ली पहुंचने की थी। यह देख भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत भी यूपी से आंदोलन लेकर दिल्ली के लिए निकल पड़े, और गाजीपुर बॉर्डर को पूरी तरह से घेर लिया गया। अब यह आंदोलन दो नहीं बल्कि तीन राज्यों का हो गया था। इसके बाद जब मंच से राकेश टिकैत के आंसू टपके तो सोए हुए किसानों के दिलों में भी आग लग गई और किसान भारी संख्या में दिल्ली की ओर निकल पड़े। इस तरह से राकेश टिकैत फ्रंटफुट पर आकर आंदोलन की अगुवाई करने वाले नेताओं में सबसे आगे हो गए।

भाकियू अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी(Peasant Movement Who gave Edge to the Struggle)

वैसे तो हरियाणा में कई किसान संगठन चल रहे हैं। लेकिन भारतीय किसान यूनियन के हरियाणा के अध्यक्ष 60 वर्षीय गुरनाम सिंह चढूनी ऐसे नेता हैं जिन्होंने आंदोलन को मजबूत करने के लिए जी तोड़ मेहनत की और गांव-गांव जाकर किसानों को अपने साथ मिलाया। यही नहीं हरियाणा के किसानों को दिल्ली सीमा तक पहुंचाने के लिए उन्होंने ने गांव स्तर पर कमेटियां बनाई और उनकी ड्यूटियां लगाई। गांव से राशन एकत्र कर दिल्ली तक पहुंचने लगा और किसान चढूनी के लिए मर मिटने को तैयार होते चले गए। बताते चलें कि गुरनाम सिंह एक बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं।

भाकियू के संविधान निर्माता बलबीर राजेवाल(Peasant Movement Who gave Edge to the Struggle)

जानकारी के लिए बता दें कि पंजाब से आने वाले 77 वर्षीय बलबीर सिंह राजेवाल वह व्यक्ति हैं जो भारतीय किसान यूनियन के संस्थापकों में से एक हैं। यही नहीं भाकियू का संविधान लिखने वाले राजेवाल ने पंजाब से दिल्ली की और कूच कर रहे किसानों की सहायता के लिए  अंबाला के शंभू बॉर्डर पर छह महीने तक लंगर चलाए रखा। बलबीर सिंह ने किसान आंदोलन को मजबूती देने के लिए किसानों को वैचारिक धार दी और सरकार से बैठक के दौरान शर्ताें पर भी अंकुश लगाने में अहम भूमिका निभाई थी।

डॉक्टर से किसानी तक का दर्शन पाल का सफर(Peasant Movement Who gave Edge to the Struggle)

किसान नेता दर्शन पाल पेशे से एक डॉक्टर थे लेकिन यहां उन्हें संतुष्टि नहीं मिली और नौकरी छोड़ खेतीबाड़ी करने लगे। क्रांतिकारी किसान यूनियन के अध्यक्ष डॉक्टर दर्शन पाल आॅल इंंडिया किसान संघर्ष को-आॅर्डिनेशन कमेटी के सदस्य भी हैं। दर्शन पाल ने ही किसान संगठनों में बेहतर तालमेल बिठाने में अहम रोल अदा किया है। यहीं नहीं किसान आंदोलन को डॉक्टर पाल ने अंग्रेजी भाषा के साथ-साथ क्षेत्रिय भाषाओं में भी दुनिया के सामने रखने का काम किया है।

जोगिंद्र सिंह उगराहां की मौजूदगी से मिली आंदोलन को संजीवनी(Peasant Movement Who gave Edge to the Struggle)

किसान आंदोलन में जोगिंद्र सिंह उगराहां की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। भाकियू उगराहां के अध्यक्ष वास्तव में सेवानिवृत फौजी हैं। जोगिंंद्र सिंह की कार्यशैली को देखते हुए संगठन पंजाब में इतना लोकप्रिय हो गया कि महिला किसान भी इनके साथ हो ली। दिल्ली बॉर्डर पर जारी आंदोलन में जोगिंद्र सिंह ने महिला किसान संगठनों को दिल्ली आने को कहा और सिंघु बॉर्डर से लेकर कुंडली बॉर्डर तक पहुंचने वाले किसानों में इजाफा होने लगा।

30 से अधिक किसान संगठनों पर जगमोहन की पकड़(Peasant Movement Who gave Edge to the Struggle)

पंजाब के ही जगमोहन सिंह वह व्यक्ति हैं जो सामाजिक कार्यक्रता के रूप में जाने जाते हैं। वहीं भारतीय किसान यूनियन (डकौंदा) के नेता भी हैं। सन 84 के दंगों के बाद जगमोहन सिंह पूरी तरह से समाजिक कार्यों से जुड़ गए। इनकी नियत और नीति को देखते हुए पंजाब के करीब सभी किसान संगठन इनके मुरीद हो गए। किसान आंदोलन में भीड़ जुटाने और किसान संगठनों को साधने में इनकी भी अहम भूमिका रही है। जानकारी के अनुसार जगमोहन सिंह ने करीब ढाई दर्जन किसान संगठनों को एकजुट किए रखा और नए संगठनों को अांदोलन से जोड़ते चले गए।

योगेंद्र यादव की भूमिका(Peasant Movement Who gave Edge to the Struggle)

किसान आंदोलन में भागीदारी निभाने वाले योगेंद्र यादव ने हरियाणा के कई जिलों में दौरा करते हुए सरकार से टक्कर ली और आंदोलनरत किसानों के साथ डटे रहे। हालांकि वह बाद में किसान आंदोलन से अलग हो गए थे। लेकिन योगेंद्र यादव ने किसान आंदोलन में जान फूंकने में कोई कसर नहीं छोड़ी

अंबाला का नवदीप बना युवा किसानों को चहेता(Peasant Movement Who gave Edge to the Struggle)

गत वर्ष जब पंजाब की और से किसान जत्थेबंदियां  दिल्ली की तरफ कूच कर रही थी तो हरियाणा पुलिस ने शंभू बॉर्डर पर बेरकेडिंंग करते हुस सुरक्षा के कड़ इंतजाम कर रखे थे। इस दौरान पुलिस प्रदर्शनकारी किसानों को रोकने के लिए आंसु गैस के गोले दाग रही थी वहीं वाटर कैनन के जरिए पानी की बौछारों को सहारा भी ले रही थी। तब किसान नेता जय सिंह का बेटा नवदीप पुलिस के वॉटर कैनन वाहन पर चढ़ गया और पानी बरसा रही गन का मुंह मोड़ दिया। जिसके बाद नवदीप पर पुलिस ने जान कई गंभीर धाराओं के तहत केस दर्ज किए थे।

सुरजीत कौर ने जीता किसानों का दिल(Peasant Movement Who gave Edge to the Struggle)

सुरजीत कौर किसान आंदोलन में वह काम कर दिखाया जो बड़े-बड़े नहीं कर पाए। सुरजीत कौर ने आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी इतनी कर दी की जिसे देख संयुक्त किसान मोर्चा के पदाधिकारी भी देखते रह गए। यही नहीं सुरजीत कौर कई बार खुले मंचों से सरकार पर हमले भी करती रही। जिसके कारण वह आंदोलन में एक सशक्त महिला नेता के रूप में जानी जाने लगी। आंदोलन में एक समय ऐसा भी आया जब धरनास्थल पर पुरूषों की संख्या कम होने लगी, यह वह समय था जब खेतों में रोपाई और कटाई का समय था। तब सुरजीत कौर ने आंदोलन को मजबूत करने के लिए भारी संख्या में पहुंचाने का काम किया था।

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