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Russia's Chemical War Threatens Ukraine : जानिए, कितने खतरनाक हैं केमिकल हथियार?

Suman Tiwari • LAST UPDATED : March 14, 2022, 11:31 am IST
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Russia's Chemical War Threatens Ukraine : जानिए, कितने खतरनाक हैं केमिकल हथियार?

Russia’s Chemical War Threatens Ukraine

Russia’s Chemical War Threatens Ukraine

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
रूस और यूक्रेन का युद्ध आज लगातार 19वें दिन भी जारी है, और कब तक समाप्त होगा अभी इसके बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है। इसी स्थिति को देखते हुए ब्रिटेन-अमेरिका ने अंदेशा जताया है कि रूस यूक्रेन पर केमिकल हथियारों (Chemical Weapons) का प्रयोग कर सकता है। वहीं यूक्रेन की तरफ से रूस को चेतावनी दी गई है कि अगर उसने ऐसा कुछ भी किया तो उसे और प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है। तो आइए जानते है केमिकल हथियार क्या हैं, और कितने घातक होते हैं। किन देशों में इन हथियारों का हो चुका प्रयोग। (Chemical Weapons Russia-Ukraine War)

कैसे होते हैं केमिकल हथियार?

  • आगेर्नाइजेशन फॉर द प्रोहिबिशन आफ केमिकल वेपंस यानी ओपीसीडब्ल्यू अनुसार, केमिकल हथियार ऐसे हथियार होते हैं, जिनमें जहरीले केमिकल का इस्तेमाल जानबूझकर लोगों को मारने या नुकसान पहुंचाने के लिए होता है। ऐसे सैन्य उपकरण जो खतरनाक केमिकल को हथियार बना सकते हैं, उन्हें भी केमिकल हथियार या रासायनिक हथियार माना जा सकता है।
  • केमिकल हथियार इतने घातक होते हैं कि ये पल भर में हजारों लोगों को मौत के मुंह में उतार सकते हैं और साथ ही उन्हें अलग-अलग बीमारियों के प्रभाव से तिल-तिल कर मरने को मजबूर कर सकते हैं। ये हथियार बायोलॉजिकल हथियार से अलग होते हैं। बायोलॉजिकल हथियार में बैक्टीरिया और वायरस के जरिए लोगों को मारा या बीमार किया जाता है। केमिकल हथियार सामूहिक विनाश के हथियारों की कैटेगरी में आते हैं।

केमिकल वेपन एजेंट्स क्या: केमिकल वेपन एजेंट्स यानी सीडब्ल्यूए घातक पदार्थ होते हैं, जिनसे केमिकल हथियार बनाया जाता है। केमिकल वेपन एजेंट्स से शरीर को नुकसान न केवल युद्ध, बल्कि इंडस्ट्रियल एक्सीडेंट से हो सकते हैं।

क्या रूस का है केमिकल हथियारों से कोई कनेक्शन?

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  • रूस ने वैसे तो 2017 में ही अपने केमिकल हथियारों को नष्ट करने का दावा किया था। लेकिन, उसके बाद से मॉस्को में हुए दो केमिकल हमलों ने इन दावों को सवालों के घेरे में ला दिया। 2018 में रूसी खुफिया एजेंसी के पूर्व जासूस सर्गेई स्क्रिपल को उनकी बेटी के साथ नर्व एजेंट नोविचोक जहर दिया गया था। इसमें कथित तौर पर रूस का हाथ था। हालांकि उसने इसे कभी नहीं माना। (Chemical Weapons Russia)
  • अगस्त 2020 में पुतिन के प्रमुख विरोधी नेता एलेक्सी नवलनी को नोविचोक जहर दिया गया था, जिसमें बहुत मुश्किल से उनकी जान बच सकी थी। अक्टूबर 2002 में 40 चेचेन्या आतंकियों ने मॉस्को के एक थिएटर में 850 लोगों को बंधक बना लिया था।
  • वे दूसरे चेचेन्या युद्ध के खत्म होने के बाद चेचेन्या से रूसी सेना को हटाने की मांग कर रहे थे। रूस ने उनकी मांग ठुकराते हुए उस थिएटर में जहरीली गैस छोड़ी थी, जिससे 40 आतंकियों के साथ ही 130 बंधक भी मारे गए थे। रूस ने ये कभी नहीं बताया कि उसने थिएटर में किस गैस का इस्तेमाल किया था।

सबसे घातक केमिकल हथियार कौन से?

केमिकल हथियारों में इस्तेमाल होने वाले केमिकल या गैसों यानी केमिकल वेपन एजेंट्स या तत्वों यानी सीडब्ल्यूए के आधार पर सबसे घातक केमिकल हथियार को पांच कैटेगरीज में बांट सकते हैं।

नर्व एजेंट: नर्व एजेंट्स को अक्सर नर्व गैस भी कहते हैं। इनसे सबसे खतरनाक केमिकल हथियार बनते हैं। ये शरीर के नर्वस सिस्टम पर असर डालते हैं। स्किन या फेफड़ों के जरिए शरीर में प्रवेश करते हैं। इसकी छोटी सी डोज कुछ ही सेकेंड में किसी भी इंसान को मार सकती है। इनमें सरीन, सोमन, ताबुन और साइक्लोसरीन और वीएक्स शामिल हैं। इनमें सबसे घातक है वीएक्स, सरीन और ताबुन। ये लिक्विड, एयरोसोल, वाष्प और धूल के रूप में फैलते हैं।

चोकिंग एजेंट: ये खतरनाक केमिकल तत्व श्वसन अंगों पर असर डालते हैं। ये नाक, गले और खासतौर पर फेफड़ों में जलन पैदा करते हैं। ये फेफड़ों के जरिए शरीर में जाते हैं और इससे फेफड़ों में पानी बनने लगता है, जिससे पीड़ित का दम घुट जाता है। इनमें क्लोरीन, क्लोरोपिक्रिन, डिफोसजीन, फॉस्जीन आदि गैसें शामिल हैं। इसमें सबसे खतरनाक फॉस्जीन और क्लोरीन है। यह गैस के रूप में फैलते हैं।

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ब्लड एजेंट: ये खतरनाक केमिकल शरीर में खून के सेल पर असर डालते हैं और शरीर में आॅक्सीजन ट्रांसफर को रोक देते हैं, जिससे इंसान का दम घुट जाता है। ये सांसों के जरिए प्रवेश करते हैं। इनमें हाइड्रोजन साइनाइड, सायनोजेन क्लोराइड और आर्सिन गैसें शामिल हैं। इनमें सबसे घातक हाइड्रोजन साइनाइड, आर्सिन है। यह गैस के रूप में फैलते हैं।

ब्लिस्टरिंग एजेंट: केमिकल हथियारों में इनका सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। इनमें सल्फर मस्टर्ड, नाइट्रोजन मस्टर्ड, लेविसाइट, और फॉस्जीन आॅक्सीम शामिल हैं। ये स्किन और फेफड़ों के जरिए शरीर में एंट्री करते हैं। ये घातक केमिकल आयली पदार्थ होते हैं, जो आंखों, श्वसन अंगों और फेफड़ों को प्रभावित करते हैं। इससे घातक फफोले पड़ जाते हैं या शरीर में जलने जैसे घाव बन जाते हैं। इससे आदमी अंधा हो सकता है या उसकी मौत भी हो सकती है। इसमें सल्फर मस्टर्ड सबसे खतरनाक है। यह लिक्विड, एयरोसोल, वाष्प और धूल के रूप में फैलते हैं।

रॉयट कंट्रोल एजेंट: ये सबसे कम घातक केमिकल एजेंट्स हैं। इनका इस्तेमाल आंखों, मुंह, गले, फेफड़े या स्किन में अस्थायी जलन पैदा करने के लिए होता है। आंसू गैस और पेपर स्प्रे इस तरह के हल्के केमिकल हथियार के उदाहरण हैं। ये फेफेड़ों और स्किन के जरिए शरीर में घुसते हैं और इससे आंखों में आंसू आना, आंखों, स्किन, नाक और मुंह में जलन होना। कई बार इससे सांस लेने में भी दिक्कत होती है। इसका इस्तेमाल भीड़ को नियंत्रित करने में होता है। ये ब्रोमोएसीटोन का आंसू गैस व कैप्साइसिन पेपर स्प्रे है। यह लिक्विड, एयरोसोल के रूप में फैलता है।

क्या केमिकल हथियारों पर प्रतिबंध का नियम है?

  • जिनेवा प्रोटोकॉल 1925 और जिनेवा प्रोटोकॉल 1949 के जरिए 38 देशों के बीच हुई संधि से केमिकल हथियारों पर प्रतिबंध के साथ युद्ध में इन हथियारों के इस्तेमाल पर भी प्रतिबंध लगाने के लिए समझौता हुआ था। इन संधियों पर हस्ताक्षर के बावजूद सोवियत रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और जापान जैसे ताकतवर देशों ने गुप्त तरीके से केमिकल वेपन बनाना जारी रखा।
  • केमिकल हथियारों पर बैन लगाने के लिए पहला वैश्विक समझौता 1993 में हुए केमिकल वेपंस कन्वेंशन यानी उहउ के तहत हुआ। सीडब्ल्यूसी का मसौदा 1992 में तैयार हुआ। 1993 में इसे हस्ताक्षर के लिए प्रस्तुत किया गया और अप्रैल 1997 से प्रभावी हुआ। इस समझौते से युद्ध में केमिकल हथियारों के यूज, उनके डेवलपमेंट, रखने या उनके ट्रांसफर पर रोक लगा दी गई थी।
  • 2021 तक सीडब्ल्यूसी के 193 सदस्य थे, जिनमें से 165 ने इस पर साइन किए थे। भारत, रूस और अमेरिका ने केमिकल हथियारों पर बैन लगाने वाले सीडब्ल्यूसी पर 1993 में साइन किए थे। यूएन के केवल चार देशों-मिस्र, इजराइल, नॉर्थ कोरिया और साउथ सूडान ने सीडब्ल्यूसी पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
  • सीडब्ल्यूसी समझौते को लागू करवाने के लिए 1997 में आॅगेर्नाइजेश आॅफ प्रोहिबिशन आॅफ केमिकल वेपंस यानी ओपीसीडब्ल्यू नामक एक अंतर सरकारी संगठन बना था। इसका हेडक्वॉर्टर नीदरलैंड के द हेग में है। इसके 193 सदस्य हैं। मिस्र, इजराइल, नॉर्थ कोरिया और साउथ सूडान इससे नहीं जुड़े हैं।
  • आपको बता दें कि ओपीसीडब्ल्यू का काम केमिकल हथियारों के गैरकानूनी इस्तेमाल की निगरानी करना और उनके प्रसार पर रोक लगाना है। 2000 में हुए एक समझौते के तहत ओपीसीडब्ल्यू संयुक्त राष्ट्र संघ को रिपोर्ट करता है।

कब हुआ केमिकल हथियारों का प्रयोग?

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  • Chemical Weapons History: बताया जाता है कि प्रथम विश्व युद्घ जो 28 जुलाई 1914 से 11 नवंबर 1918 तक चला था। इस युद्ध में केमिकल हथियारों का इस्तेमाल किया गया था। इस युद्ध में घातक केमिकल गैसों के इस्तेमाल से करीब एक लाख लोगों की जान गई थी। जर्मन सेना ने 1915 में बेल्जियम के खिलाफ 168 टन क्लोरीन गैस का इस्तेमाल किया था, जिससे कम से कम 5 हजार सैनिक मारे गए थे।
  • प्रथम विश्व युद्ध में क्लोरीन, फॉस्जीन और सल्फर मर्स्टड गैसों जैसे केमिकल हथियार का इस्तेमाल किया गया था। इसमें एक लाख 90 हजार टन केमिकल हथियार का इस्तेमाल किया गया था, जिनमें से 93 हजार टन क्लोरीन और 36 हजार टन फॉस्जीन थी। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान केमिकल हथियार से हुई कुल मौतों में से करीब 80 फीसदी मौतें फॉस्जीन गैस से हुई थी। (Chemical Weapons World Wars)
  • द्वितीय विश्व युद्ध 1939 में जर्मनी ने पोलैंड के वॉरसा शहर पर कुछ मस्टर्ड गैस बम गिराए थे। इसके अलावा जापान ने चीन के खिलाफ काफी कम मस्टर्ड गैस और लेविसाइट से बने केमिकल हथियारों का इस्तेमाल किया था।

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